उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 'हम लेके रहेंगे आज़ादी' का नारा लगाने की वजह से छह छात्रों पर राजद्रोह का मामला दर्ज कर दिया है। इतना ही नहीं, इन छात्रों पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) भी लगा दिया गया।
मामला क्या है?
मामले की शुरुआत अयोध्या स्थित के. एस. डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल एन. डी. पांडेय की शिकायत से हुई। उन्होंने पुलिस में शिकायत की कि कुछ छात्रों ने 'ले के रहेंगे आज़ादी' जैसे 'अभद्र' और 'राष्ट्रद्रोही' नारे लगाए हैं।
छात्रों का कहना है कि छात्र संघ के चुनाव की माँग को लेकर उन्होंने प्रिंसिपल और प्रॉक्टर के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था, जिसमें उन्होंने यह नारा लगाया था।
प्रिंसिपल का कहना है कि 'इस तरह के नारे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगाए जाते हैं' और वे 'इस तरह की राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों' की इजाज़त कतई नहीं देंगे।
बहरहाल, पुलिस ने न सिर्फ एफ़आईआर दर्ज किया है, बल्कि इन छात्रों पर राजद्रोह के अलावा एनएसए भी लगा दिया है। एफ़आईआर में सुमित तिवारी, शेष नारायण पांडेय, इमरान हाशमी, सात्विक पांडेय, मोहित यादव और मनोज मिश्रा के नाम हैं।
जाँच शुरू
अयोध्या के थाना प्रभारी आशुतोष मिश्र ने कहा कि वे इस मामले की जाँच कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "हम सीसीटीवी फुटेज देखेंगे, सबकुछ साफ हो जाएगा। यदि किसी ने अपराध किया होगा तो कार्रवाई की जाएगी।"
कॉलेज में एम. कॉम कर रहे आभाष कृष्ण यादव ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, "प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना था कि उन्हें प्रिंसिपल और चीफ़ प्रॉक्टर से आज़ादी चाहिए। प्रिंसिपल इसे ही राष्ट्र-विरोधी गतिविधि बता रहे हैं।"
प्रिंसिपल की भूमिका पर सवाल
इससे जुड़े कई सवाल एक साथ उठते हैं। प्रिंसिपल को निष्पक्ष और छात्रों का अभिभावक माना जाता है। वे छात्रों को डाँट-डपट देते हैं, अनुशासन की कार्रवाई करते हैं, लेकिन खुद पुलिस में इसकी शिकायत नहीं कराते। अमूमन विरोधी छात्र संघ शिकायत करता है, लेकिन इस मामले में ख़ुद प्रिंसिपल ने ऐसा किया। इसकी वजह यह है कि उनके ख़िलाफ़ नारे लगाए गए थे।
यह प्रिंसिपल की गरिमा के ख़िलाफ़ और अधिकार के दुरुपयोग का मामला है कि अपने ख़िलाफ़ नारे लगाने को वे राष्ट्र-विरोधी गतिविधि मानते हैं और ऐसा करने वाले छात्रों के ख़िलाफ़ पुलिस में मामला दर्ज कराते हैं।
नारा लगाना राजद्रोह?
एक अहम सवाल है राजद्रोह का। क्या नारे लगाने से ही राजद्रोह का मामला बनता है? सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर क्या कहा है? दो मामले हैं। एक है केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) और दूसरा है 1995 में देशविरोधी और अलगाववादी नारों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला।
केदारनाथ सिंह मामले में निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि धारा 124 (क) के तहत किसी आदमी के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला तभी बनता है जब उसने सरकार के ख़िलाफ़ हिंसा की हो या हिंसा के लिए उकसाया हो।
1995 का फ़ैसला था उन दो लोगों के बारे में जिनपर आरोप था कि उन्होंने 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 'खालिस्तान ज़िंदाबाद' और 'हिंदुस्तान मुर्दाबाद' के नारे लगाए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में साफ कर दिया था कि केवल नारे लगाने से राजद्रोह का मामला नहीं बनता, क्योंकि उससे सरकार को कोई ख़तरा पैदा नहीं होता है।
एनएसए का दुरुपयोग
इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो क्या उत्तर प्रदेश पुलिस का एफ़आईआर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का उल्लंघन नहीं है?
इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि क्या यह नारे लगाने से ही राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा है? स्पष्ट तौर पर यह एनएसए के दुरुपयोग का उदाहरण है।
'हम लेके रहेंगे आज़ादी' नारे का सच
जेएनयू छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार और सदस्यों ने 2018 में परिसर में जब ये नारे लगाए थे, तो बवाल मचा था। बीजेपी, उसके छात्र संग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और उससे जुड़े लोगों ने कहा था कि आज़ादी की माँग करना देशद्रोह है क्योंकि देश तो आज़ाद है।
उनका कहना था कि देश को टुकड़े-टुकड़े करने की साजिश की जा रही है क्योंकि देश के अलग-अलग हिस्सों को आज़ाद करने की मांग की जा रही है।
यह बात हास्यास्पद इसलिए थी कि इस नारे में ग़रीबी, बेरोज़गारी और असमानता जैसी बुराइयों से आज़ादी की बात की गई है। कन्हैया कुमार ने कहा था कि इन चीजों से आज़ादी सबको चाहिए।
बाद में यह नारा इतना लोकप्रिय हुआ कि जेएनयू से बाहर निकल कर पूरे देश में फैल गया और तमाम तरह के विरोध प्रदर्शनों में इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।
बीजेपी ने ख़ुद किया नारे का इस्तेमाल
जोया अख़्तर के निर्देशन में बनी एक फिल्म 'गलीबॉय' में इस नारे का इस्तेमाल एक दृष्य में किया गया था, जिसमें कांग्रेस शासन के दौरान हुए कई तरह के कथित भ्रष्टाचार के मामलों से जुड़े विजुअल का इस्तेमाल किया गया था। कांग्रेस पर हमला करते हुए खुद बीजेपी ने इस नारे का इस्तेमाल किया था और 'कांग्रेस से आज़ादी' का नारा दिया था।
बीजेपी शासित राज्य सरकारें राजद्रोह का किस तरह दुरुपयोग कर रही हैं, इसे समझने के लिए देखें वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का कार्यक्रम 'आशुतोष की बात'।
बहरहाल, अयोध्या के इस मामले ने एक बार फिर इस नारे को खबरों में ला दिया है। इसके साथ ही राजद्रोह और एनएसए के दुरुपयोग के मामले भी सुर्खियों में है।
राजद्रोह और एनएसए के दुरुपयोग के बढ़ते मामले के रूप में सबसे चौंकाने वाला उदाहरण केरल के चार पत्रकारों की गिरफ़्तारी का मामाला है। अक्टूबर में अतीक-उर-रहमान, सिद्दिक़ कप्पन, मसूद अहमद और आलम जिस समय हाथरस बलात्कार घटना की रिपोर्टिंग के लिए दिल्ली से जा रहे थे, उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें मथुरा के पास से हिरासत में ले लिया। उन पर राजद्रोह और एनएसए लगा दिया गया। सिद्दिक़ कप्पन को अभी भी ज़मानत नहीं मिली है।