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अमानतुल्ला की जीत का जश्न मनाते संबंधियों पर योगी की पुलिस की बर्बरता क्यों?

अमानतुल्ला की जीत का जश्न मनाते संबंधियों पर योगी की पुलिस की बर्बरता क्यों?

क्या जीत का जश्न मनाना गुनाह है? यदि नहीं तो दिल्ली में आप विधायक अमानतु्ल्ला ख़ान की जीत की ख़ुशी मना रहे उनके रिश्तेदारों को पुलिस ने क्यों पीटा? क्यों लड़की को घसीटा गया, धक्का दिया गया और गालियाँ दी गईं?

क्या जीत का जश्न मनाना गुनाह है? यदि नहीं तो दिल्ली में आप विधायक अमानतुल्ला ख़ान की जीत की ख़ुशी मना रहे उनके रिश्तेदारों को पुलिस ने क्यों पीटा? क्यों लड़की को घसीटा गया, धक्का दिया गया और गालियाँ दी गईं? यहाँ तक कि एफ़आईआर भी दर्ज की गई है? 

यह घटना घटी विधायक अमानतुल्ला ख़ान के मूल गाँव मेरठ ज़िले के अगवानपुर गाँव में। जब मंगलवार शाम को दिल्ली की ओखला विधानसभा सीट पर अमानतुल्ला ख़ान की रिकॉर्ड 71 हज़ार से ज़्यादा वोटों से जीत की घोषणा हुई तो उनके रिश्तेदारों ने अगवानपुर गाँव में मिठाइयाँ बाँटनी शुरू कर दीं। तभी परीक्षितगढ़ थाने की पुलिस पहुँच गई। उन्होंने विधायक के रिश्तेदारों को तितर-बितर करने के लिए कथित रूप से लाठीचार्ज कर दिया। पुलिस ने कथित रूप से लड़कियों से दुर्व्यवहार किया और क़रीब घंटे भर सड़क पर चलाया।

ऐसा क्यों हुआ? क्या इसलिए कि वे दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेता की जीत की ख़ुशियाँ मना रहे थे और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश पुलिस को यह नागवार गुज़री? क्या यह इसलिए है कि योगी की पार्टी बीजेपी के उम्मीदवार दिल्ली में अमानतुल्ला से हार गए थे?

बता दें कि योगी ने दिल्ली में बीजेपी के लिए जमकर प्रचार किया था और शाहीन बाग़ को मुद्दा बनाया था। शाहीन बाग़ अमानतुल्ला ख़ान के विधानसभा क्षेत्र में ही आता है।

अब ज़ाहिर है उत्तर प्रदेश की पुलिस इन सवालों से बचने की कोशिश करेगी और पुलिस अपनी कार्रवाई को सही साबित करने का आधार भी बताएगी। पुलिस ने इस संबंध में जो एफ़आईआर दर्ज की है, उसमें यही बात साफ़ होती है। इस मामले में धारा 144 के उल्लंघन की बात कही गई है और 13 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआकर दर्ज की गई है। रिपोर्ट में अमानतुल्ला ख़ान के रिश्तेदार नूर उल्ला का नाम प्रमुखता से लिया गया है। परीक्षितगढ़ थाने के एसएचओ कैलाश चंद भी यही तर्क देते हैं। 'द स्टेट्समैन' की रिपोर्ट के अनुसार कैलैश चंद ने कहा, 'ग्रामीण जुलूस निकाल रहे थे और हमने उन्हें इसलिए रोक दिया क्योंकि ज़िले में धारा 144 लागू है।' उन्होंने कहा कि उन पर धारा 144 के उल्लंघन करने पर रिपोर्ट दर्ज की गई है। हालाँकि उन्होंने इससे इनकार किया कि ग्रामीणों पर कोई ज़्यादती की गई है। 

'द स्टेट्समैन' की रिपोर्ट के अनुसार, घटना की प्रत्यक्षदर्शी और एमए की छात्रा नज़मा ने कहा, 'पुलिस कर्मियों ने नूर उल्ला की 17 साल की बेटी के साथ दुर्व्यवहार किया। पुलिस कर्मियों ने उसे घसीटा जिससे वह फ़र्श पर गिर गई। फिर उन्होंने उसके बाल पकड़कर उठाया और दूसरे ग्रामीणों के साथ उसे गलियों में क़रीब एक घंटे तक इसलिए घुमाया कि वह उन्हें पहचान सके जो जीत की ख़ुशियाँ मना रहे थे।' उन्होंने कहा कि एक पुलिसकर्मी ने उसको धक्का दिया, घसीटा, गालियाँ दीं और उसका दुपट्टा इस तरह से खींचा कि उसकी गर्दन पर निशान पड़ गए। रिपोर्टों में कहा गया है कि दूसरे ग्रामीणों को भी पुलिस ने पीटा। एक ग़रीब दुकानदार हकीमुद्दीन अपनी दुकान बंद कर बीमार पत्नी को देखने जा रहे थे उन्हें भी पीटा गया।

योगी की नफ़रत की राजनीति: अमानतुल्ला

अमानतुल्ला ख़ान ने इस पर प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि वह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि हमारी जीत की रिश्तेदारों द्वारा ख़ुशी मनाने में आख़िर ग़लत क्या है। उन्होंने साफ़ कहा कि इस तरह की घटनाएँ बीजेपी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नफ़रत की राजनीति का नतीजा है। 

अमानतुल्ला ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम इसलिए लिया क्योंकि जब वह दिल्ली चुनाव में बीजेपी के लिए सभाएँ कर रहे थे तब उन्होंने काफ़ी भड़काऊ बयान दिए थे। योगी ने एक रैली में कहा था कि कश्मीर में आतंकवादियों का समर्थन करते हैं, वे लोग शाहीन बाग़ में धरना दे रहे हैं और आज़ादी के नारे लगा रहे हैं। योगी ने अरविंद केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाया था कि वह शाहीन बाग़ में बैठे प्रदर्शनकारियों को बिरयानी की सप्लाई कर रही है। एक अन्य रैली में योगी ने कहा था, 'अभी तो केजरीवाल जी ने हनुमाना चालीसा ही पढ़नी शुरू की है, आप देखना आगे आगे होता क्या है, ओवैसी भी एक दिन हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ता दिखाई देगा।’

अपनी एक सभा में योगी ने यह भी कहा था कि हम आतंकवादियों को बिरयानी नहीं खिलाते, गोली खिलाते हैं। काँवड़ियों की चर्चा करते हुए उन्होंने धमकी भरी भाषा में कहा था कि काँवड़ियों का विरोध करने वालों पर बोली नहीं, गोली से जवाब दिया जाएगा।

बहरहाल, अमानतुल्ला ख़ान का यह आरोप कि यह योगी के नफ़रत की राजनीति का नतीजा है, काफ़ी गंभीर है। यदि ऐसा नहीं है तो योगी सरकार को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए क्योंकि पुलिस की इस कार्रवाई पर जिस तरह के आरोप लग रहे हैं वे काफ़ी गंभीर हैं। यदि जश्न मनाना धारा 144 का उल्लंघन था तो भी क्या दुर्व्यवहार को सही कहा जा सकता है?

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