यूपी : दो से अधिक बच्चों वाले परिवारों को नहीं मिलेंगी सरकारी सुविधाएँ?
उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग एक ऐसे क़ानून का मसौदा तैयार कर रहा है जिसके तहत राज्य सरकार की योजनाओं का फ़ायदा उन्हें ही मिलेगा जिन परिवारों में दो या उससे कम बच्चे हों।
हालांकि आयोग ने ज़ोर देकर कहा है कि किसी धर्म से इसका कोई मतलब नहीं है, पर यह सवाल उठने लगा है कि क्या बीजेपी की राज्य सरकार समुदाय विशेष को निशाना बनाने की कोशिश में है।
राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष ए. एन. मित्तल ने कहा है कि जनसंख्या नियंत्रण हर हाल में किया जाना चाहिए ताकि आगे आने वाली पीढियों को बेहतर सुविधाएँ और संसाधनों का लाभ मिल सके।
इलाहाबाद के इस पूर्व जज ने कहा कि आयोग दो महीनों में क़ानून का मसौदा तैयार कर लेगा और उसके बाद उसे राज्य सरकार को सौंप दिया जाएगा।
उन्होंने कहा संसाधनों की कमी पहले से ही है। स्वास्थ्य सेवाएँ, खाद्यान्न, नौकरियाँ, हर मामले में संसाधनों की कमी है क्योंकि जनसंख्या बढ़ती ही जा रही है। मित्तल ने कहा,
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उस स्थिति का कल्पना कीजिए कि अगले 20 साल में राज्य की जनसंख्या 22-23 करोड़ पर ही रुकी रह जाए, तो राज्य का क्या होगा। आने वाली पीढ़ियों के लिए तमाम चीजें पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहेंगी।
ए. एन. मित्तल, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश विधि आयोग
असम में भी ऐसी ही व्यवस्था
उन्होंने यह भी कहा कि क़ानून का मसौदा तैयार करते वक़्त हर मामले को ध्यान में रखा जाएगा।
इसके ठीक पहले यानी 18 जून को असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा था कि दो बच्चों के नियम को लागू किया जाएगा और सरकारी सुविधाएँ सिर्फ उन्हीं परिवारों को मिलेंगी जिनमें अधिकतम दो बच्चे होंगे। लेकिन चाय बागानों में काम करने वालों और अनसूचित जाति-जनजाति को इससे बाहर रखा जाएगा।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्द्धन ने 20 जून को कहा था कि 'अधिक जनसंख्या का मतलब है अधिक संसाधनों और चीजों की ज़रूरत। बढ़ती जनसंख्या से प्रकृति, पृश्वी और मानव जाति पर बुरा असर पड़ रहा है।' उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि 'भारत उन चुनिंदा देशों में है, जिसने 1952 में ही जनसंख्या नियंत्रण की नीति बनाई थी और इसके लिए अलग मंत्रालय बनाया था, बाद में इसमें परिवारण कल्याण भी जोड़ दिया गया।'
मकसद पर सवाल
सवाल यह उठता है कि क्या यह महज संयोग है कि उत्तर प्रदेश और असम दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार है? यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि बीजेपी ने अधिक जनसंख्या के लिए हमेशा मुसलिम समुदाय को ज़िम्मेदार माना है।
बीजेपी का प्रचार तंत्र यह प्रचारित करता रहा है कि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि की दर हिन्दुओं से बहुत ज़्यादा है और जल्द ही उनकी संख्या हिन्दुओं से अधिक हो जाएगी और हिन्दू भारत मे ही अल्पसंख्य बन कर रह जाएंगे।
हालांकि जनसंख्या वृद्धि दर का विश्लेषण करने से पाया गया है कि यह थ्योरी ग़लत है और आँकड़े इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।
क्या कहा था मोदी ने?
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से भाषण देते हुए जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताई थी। उन्होंने सीधे इसे देशभक्ति से जोड़ दिया और कहा कि छोटा परिवार रखना भी देशभक्ति है।
इसके बाद मुख्यधारा की मीडिया और सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर बहस छिड़ गई। यह सवाल उठाया जाने लगा कि जनसंख्या बढ़ते रहने के लिए कौन ज़िम्मेदार है। कुछ लोगों ने इस बहस में मुसलमानों को निशाना बनाया और कहा कि उनकी जनसंख्या बहुत ही तेज़ी से बढ़ रही है। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कह दिया कि जल्द ही मुसलमानों की संख्या हिन्दुओं से ज़्यादा हो जाएगी।
जनसंख्या का सच
जनगणना 2011 की रिपोेर्ट के आधार पर कहा जा सकता है कि देश की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ गया है। 2001 में कुल आबादी में मुसलमान 13.4 प्रतिशत थे, जो 2011 में बढ़ कर 14.2 प्रतिशत हो गये! असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, केरल, उत्तराखंड, हरियाणा और यहाँ तक कि दिल्ली की आबादी में भी मुसलमानों का हिस्सा पिछले दस सालों में काफ़ी बढ़ा है! असम में 2001 में क़रीब 31 प्रतिशत मुसलमान थे, जो 2011 में बढ़ कर 34 प्रतिशत के पार हो गये।
पश्चिम बंगाल में 25.2 प्रतिशत से बढ़ कर 27, केरल में 24.7 प्रतिशत से बढ़ कर 26.6, उत्तराखंड में 11.9 प्रतिशत से बढ़ कर 13.9, जम्मू-कश्मीर में 67 प्रतिशत से बढ़ कर 68.3, हरियाणा में 5.8 प्रतिशत से बढ़ कर 7 और दिल्ली की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा 11.7 प्रतिशत से बढ़ कर 12.9 प्रतिशत हो गया।