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यूपी इन्वेस्टर मीटः कितना निवेश, कितनी राजनीति

यूपी इन्वेस्टर मीटः कितना निवेश, कितनी राजनीति

जिन सम्मेलनों को सहारे मोदी प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे और योगी आदित्यनाथ अपने लिए रास्ता तलाश रहे हैं, वह रास्ता इतना आसान तो नहीं है। क्योंकि जिस वॉयब्रेंट गुजरात को बेचकर मोदी प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे हैं उसके आंकड़े कुछ और ही गवाही दे रहे हैं। 

उत्तर प्रदेश में विकास को रफ्तार देने के लिए ग्लोबल इनवेस्टर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इसके प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं। शनिवार को लखनऊ में आयोजित एक इवेंट में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए। सम्मेलऩ में उद्योगपति मुकेश अंबानी का पहुंचनी खासा चर्चा का विषय रहा। उत्तर प्रदेश सरकार इस सम्मेलन से राज्य में बड़े निवेश को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। सरकार के ही अनुमान से इस दौरान 32 लाख करोड़ का निवेश आने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। राज्य में कितना निवेश आएगा और कितने लोगों को फाएदा होगा इस सवाल का जवाब तो भविष्य के गर्भ में है। सरकार के लाख प्रचार से कुछ नहीं होता।

इससे पहले एक और राज्य गुजरात में इस तरह के निवेश सम्मेलन आयोजित किए जाते रहे हैं। दरअसल इस तरह के सम्मेलनों की शुरुआत ही गुजरात से हुई जब नरेंद्र मोदी, राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। नरेंद्र मोदी ने इस तरह के सम्मेलनों का शुरुआत 2003 में की, जब वह 2001 में राज्य के मुख्यमंत्री चुने गये। बाद में वहां वॉयब्रेंट गुजरात को हर दो साल में आयोजित किये जाने की परंपरा बन गई, जो अभी तक जारी है। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भी राज्य के दूसरे मुख्यमंत्रियों ने इसको जारी रखा। नरेंद्र मोदी ने इसके बहाने विकास के गुजरात मॉडल का प्रचार किया और इसके सहारे वे देश के प्रधानमंत्री तक बने।

अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उसी मॉडल पर चलकर आने वाले भविष्य में अपने लिए देश के शीर्ष राजनीतिक पद के लिए उम्मीदवारी जता रहे हैं। योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के चेहरे के साथ कई तबकों अत्यधिक लोकप्रिय हैं, लेकिन विकास को लेकर उनका रुख बहुत साफ नहीं हो पाने के कारण उनके शीर्ष पद तक पहुंचने में कुछ कठिनाई आ रही है। इसके उलट उनकी खुद की पार्टी और पार्टी के बाहर मोदी के बाद योगी के नाम की चर्चा अक्सर सुनने को मिलती रहती है। योगी इन सम्मेलनों के बहाने हिंदुत्व की छवि के अलावा विकासोन्मुख छवि बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह देखने वाली बात होगी की वह इसमें कितना सफल होते हैं।

जिन सम्मेलनों को सहारे मोदी प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे और योगी आदित्यनाथ अपने लिए रास्ता तलाश रहे हैं, वह रास्ता इतना आसान तो नहीं है। क्योंकि जिस वॉयब्रेंट गुजरात को बेचकर मोदी प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे हैं उसके आंकड़े कुछ और ही गवाही दे रहे हैं।  

2003 में आयोजित पहले सम्मेलन में 14 बिलियन डॉलर के 76 निवेश समझौतों पर दस्खत किये गये। जिसमें 200 से ज्यादा विदेशी निवेशकों ने भाग लिय। वॉयब्रेंट गुजरात का दूसरा सम्मेलन 2005 में आयोजित किया गया। इसमें 1060 बिलियन के 226 निवेश समझौतों पर दस्तखत किये गये। इन समझौतों का सबसे बड़ा हिस्सा गैस और पोर्ट विकास के हिस्से में आया। वॉयब्रेंट गुजरात का तीसरा सम्मेलन 2007 में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में निवेशकों को लुभाने के लिए रेड टेप की बजाए रेड कारपेट जैसे नारों को उछाला गया। दो बार आयोजित किये जा चुके सम्मेलन के बाद तीसरी बार के आयोजन ने ज्यादा लोगों का ध्यान खींचा और 152 विलियन के 675 निवेश समझौतों पर दस्तखत किये गये।

चौथा वॉयब्रेंट गुजरात सम्मेलन खासा चर्चा में रहा इसका कारण पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा के नैनो प्लांट के लिए आवंटित जमीन को ममता बनर्जी के विरोध के बाद जमीन का आवंटन रद्द कर दिया गया। जबकि टाटा इस पर फैक्टरी के निर्माण का काम शुरु कर चुका था। आवंटन रद्द होने के बाद तत्कालीन गुजरात सरकार ने रातोंरात टाटा को नैनो फेक्टरी के लिए जमीन आवंटित कर दी। जिसका खूब प्रचार किया गया। जिसको राज्य की तत्कालीन मोदी सरकार ने वाइव्रेंट गुजरात सम्मेलन में खूब भुनाया।

पांचवा वॉयब्रेंट  गुजरात सम्मेलन 2011 में गांधी नगर में आयोजित किया। यह पिछले सभी सम्मेलनों से ज्यादा सफल रहा। इस सम्मेलन में गुजरात सरकार ने 462 बिलियन डॉलर के 7936 निवेश प्रस्तावों पर दस्तखत किये गये।

सवाल ये है कि हर दो साल पर आयोजित होने वाले निवेशक सम्मेलन के बाद सरकार अपनी पीठ थपथपाती है कि राज्य में इतना निवेश होगा, उतना निवेश होगा। लेकिन सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है। 2011 तक आंकड़ों का अध्ययन करने पर पता चलता है, निवेशक सम्मेलनों जो जो घोषणा की गई थी राज्य में उसका केवल आठ प्रतिशत निवेश हुआ जो कि बहुत कम है। इस दौरान राज्य में हर साल लगभग एक लाख लोगों को नौकरियां मिलीं, जबकि इस दौरान राज्य 11 लाख की आबादी बढ़ गई। इससे समझा जा सकता है कि राज्य में नौकरी पाने वालों की संख्या में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई है, क्योंकि इससे दस गुना लोग राज्य की आबादी में जुड़ रहे हैं।  

गुजरात सरकार की 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में बताया गया था कि राज्य में 1983 से अगस्त 2016 तक 13 लाख 85 हजार करोड़ 700 करोड़ रुपये निवेश के वादे किये गये थे जबकि इस दौरान राज्य में हुआ कुल निवेश 2 लाख 75 हजार 880 करोड़ रुपये का ही निवेश हुआ है। यह राज्य मे निवेश के वादे का 19.9 प्रतिशत है। गुजरात में निवेश का ये हाल तब है, जबकि पिछले डेढ़ दशक से हर दो साल पर सरकार की तरफ से भारी भरकम निवेश सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। 

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