क़ानून बदलने के बावजूद नहीं रुक रहे अपराध, यूपी में 13 साल की लड़की से बलात्कार, हत्या
साल 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया बलात्कार व हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोड़ कर रख दिया था, जिसके बाद जस्टिम वर्मा आयोग बना, बलात्कार क़ानून में संशोधन हुआ, निर्भया के हत्यारों को फाँसी की सज़ा हुई। लेकिन इतना होने के बावजूद देश में निर्भया जैसे कांड नहीं रुके।
ताज़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी का है, जहाँ 13 साल की एक लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार हुआ, उसकी हत्या कर दी गई और उसकी आँखें निकाल ली गईं।
पुलिस ने की पुष्टि
पुलिस ने बलात्कार और गला घोंट कर हत्या किए जाने की पुष्टि कर दी है, लेकिन आँखें निकालने के आरोप से इनकार कर रही है। इस मामले में दो लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया है।खीरी के पुलिस सुपरिटेंडेंट सतेंद्र कुमार ने एनडीटीवी से कहा,
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‘पोस्टमॉर्टम से बलात्कार की पुष्टि होती है, दो अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया गया है, उनके ख़िलाफ़ और हत्या का मुक़दमा चलाया जाएगा, एनएसए भी लगाया जाएगा।’
सतेंद्र कुमार, पुलिस सुपरिटेंडेंट, खीरी
लड़की के पिता ने एनडीटीवी से कहा कि ‘वह शुक्रवार दोपहर से गायब थी, बाद में उसका शव गन्ने के खेत में मिला, उसकी आँखें निकाली हुई थी, जीभ कटी हुई थी और दुपट्टे से गला घोंटा गया था।’
क्या कहा मायावती ने?
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने इस पर राज्य सरकार की तीखी आलोचना करते हुए इस वारदात को शर्मनाक बताया। उन्होंने एनडीटीवी से कहा, ‘यदि इस तरह की वारदात होती रहीं तो पहले की समाजवादी पार्टी और मौजूदा बीजेपी सरकार में क्या अंतर है?’दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ ने कहा,
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‘बीजेपी सरकार में दलित उत्पीड़न चरम पर है। यह जंगल राज नहीं हो और क्या है? हमारी बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं, हमारे घर सुरक्षित नहीं हैं, हर ओर डर का वातावरण है।’
चंद्रशेखर आज़ाद 'रावण', दलित नेता
क्या कहते है आँकड़े?
नैशल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2018 में पूरे देश में बलात्कार की 33,356 घटनाएं हुईं, जिनमें से 31,320 वारदाओं में अभियुक्त पीड़िता के परिचित थे। ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार इस दौरान उत्तर प्रदेश में बलात्कार की 3,946 घटनाएं हुईं, इनमें से 1,411 नाबालिग थीं।याद दिला दें कि 16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में चलती बस में निर्भया से छह लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था। 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर के अस्पताल में इलाज के दौरान निर्भया की मौत हो गई थी।
इस मामले में चार लोगों को दिल्ली के तिहाड़ जेल मे फाँसी की सजा दी गयी।
वर्मा आयोग
वर्ष 2013 की शुरुआत में न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा समिति ने लैंगिक कानूनों पर सौपी गई अपनी ऐतिहासिक रिपोर्ट में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) विधेयक में महत्त्वपूर्ण बदलाव करते हुए आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) की बजाय राज्य स्तरीय रोज़गार अधिकरण की स्थापना की सिफारिश की थी।इस समिति का गठन 16 दिसंबर के निर्भया गैंगरेप और उसके प्रतिरोध में हुए राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद हुआ था तथा 23 जनवरी, 2013 को समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट जमा कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति लीला सेठ और वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम समेत, न्यायमूर्ति वर्मा की अध्यक्षता वाली इस समिति ने यौन उत्पीड़न विधेयक को ‘असंतोषजनक’ बताया था और कहा था कि यह विशाखा दिशानिर्देशों की भावना को प्रतिबिंबित नहीं करता है।
उत्तर प्रदेश के ताज़ा कांड के बाद एक बार फिर यह बहस उठना स्वाभाविक है कि दोषियों को मृत्युदंड जैसी सजा दिए जाने के बावजूद इस तरह की वारदात हो रही है। निर्भया कांड के बाद जस्टिस वर्मा आयोग का गठन किया गया था, आयोग ने बलात्कार क़ानून में व्यापक सुधार की सिफ़ारिशें दी थीं, कई सिफ़ारिशें लागू भी की गईं। पर बलात्कार की वारदात रुक नहीं रही है। लखीमपुर खीरी के कांड ने इसे एक बार फिर साबित कर दिया।