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यूपी: उपचुनाव में बीजेपी के सामने टिक पाएगा बिखरा हुआ विपक्ष?

यूपी: उपचुनाव में बीजेपी के सामने टिक पाएगा बिखरा हुआ विपक्ष?

उत्तर प्रदेश में 11 सीटों के विधानसभा उपचुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी आत्मविश्वास के भरपूर है। लेकिन विपक्ष बिखरा और सुस्त पड़ा है। ऐसे में क्या वह चुनौती दे भी पाएगा? 

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले सेमीफ़ाइनल माने जा रहे 11 सीटों के उपचुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी आत्मविश्वास के भरपूर है। इस चुनाव के ठीक पहले शुक्रवार को संपन्न हुए हमीरपुर विधानसभा के उपचुनाव के नतीजों ने उसकी उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं। हमीरपुर के नतीजों ने विपक्ष को आईना दिखाने का भी काम किया है। हमीरपुर में बीजेपी प्रत्याशी युवराज सिंह ने 74409 वोट पाकर सपा प्रत्याशी से 17000 से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की है। हालाँकि यहाँ सपा और बसपा प्रत्याशी दोनों को मिले कुल क़रीब 85000 वोट, बीजेपी से कहीं ज़्यादा हैं। अभी चार महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन कर मैदान में उतरी थीं। लोकसभा चुनाव ख़त्म होते ही बसपा प्रमुख मायावती ने एक-दूसरे के वोट ट्रांसफर न होने का आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ दिया था।

हमीरपुर के नतीजों ने जहाँ मायावती को सोचने को मजबूर किया है वहीं सपा के लिए भी यह सबक है कि बिना गठबंधन के अपराजेय बीजेपी से पार पाना मुश्किल काम है। सबसे हैरतअंगेज परिणाम कांग्रेस के लिए रहा है जिसे उम्मीदों से कहीं ज़्यादा 17000 से ज़्यादा वोट मिले।

हालाँकि उसका प्रत्याशी चौथे स्थान पर रहा। इस चुनाव में ख़ुद को पहले से मुक़ाबले से बाहर मान रही कांग्रेस ने एक मामूली कार्यकर्ता को मैदान में उतारा था।

प्रदेश में अक्टूबर के तीसरे हफ़्ते में 11 विधानसभा सीटों के उपचुनाव होने हैं, इनमें से 9 सीटें बीजेपी और इसके सहयोगियों के पास रही हैं। बीजेपी की नज़रें इन चुनावों में सभी सीटें जीतने पर हैं तो विपक्ष अपनी खोयी ज़मीन को वापस लेने के लिए कम से कम पहले से बेहतर करना चाहती है। इन 11 सीटों में से सपा व बसपा के पास एक-एक सीटें थीं। बीजेपी के सहयोगी अपना दल के पास एक प्रतापगढ़ सदर की सीट थी।

उपचुनावों में ज़्यादातर सीटें विधायकों के सांसद चुने जाने के चलते खाली हुई हैं। बीजेपी से रीता बहुगुणा जोशी के इलाहाबाद के सांसद चुने जाने से लखनऊ कैंट, बाराबँकी से प्रदीप रावत के सांसद बनने के बाद जैदपुर, मुज़फ़्फ़रनगर से प्रदीप चौधरी के सांसद बनने के चलते सहारनपुर की गंगोह, कानपुर से सत्यदेव पचौरी के लोकसभा के लिए चुने के जाने के बाद गोविंदनगर, चित्रकूट-बांदा से आरके सिंह पटेल के सांसद बनने के बाद मानिकपुर, अक्षयवर गोंड के बहराइच से चुने जाने के बाद बलहा, रामपुर से आज़म ख़ान के सांसद बनने के चलते सदर सीट, आम्बेडकरनगर से रितेश पांडे के कारण जलालपुर, घोसी, अलीगढ़ में इगलास व फिरोजाबाद में एसपी सिंह बघेल के कारण टूंडला सीट खाली हुई है। इनमें से रामपुर व जलालपुर सीट ही विपक्ष के पास थी।

बीजेपी में पुराने चेहरे, विपक्ष में नए 

रविवार को बीजेपी प्रत्याशियों की जो सूची जारी हुई है उनमें लखनऊ कैंट से सुरेश तिवारी, जलालपुर से राजेश सिंह, गोविंदनगर से सुरेंद्र मैथानी, घोसी से विजय राजभर, बलहा से राजेश सोनकर, जैदपुर से अमरीष रावत, मानिकपुर से आनंद शुक्ला, इगलास से राजकुमार, रामपुर से भारतभूषण गुप्ता व गंगोह से कीरत सिंह को टिकट दिया गया है। बीजेपी ने सांसद चुने गए किसी के परिजन को टिकट न देते हुए पुराने कार्यकर्ताओं पर भरोसा किया है। प्रदेश बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी लहर में किसी अन्य के बजाय पुराने लोगों को ही टिकट देना बेहतर समझा गया।

इसी तरह का प्रयोग समाजवादी पार्टी ने भी किया है जहाँ अपेक्षाकृत नए चेहरों को इस बार मैदान में उतारा गया है। सपा ने रविवार को घोसी से सुधाकर सिंह, मानिकपुर से निर्भय सिंह पटेल, जैदपुर से गौरव रावत, गोविंदनगर कानपुर से सम्राट विकास, जलालपुर से सुभाष राय व प्रतापगढ़ से ब्रजेश पटेल को मैदान में उतारा है। रामपुर में प्रत्याशी चयन का ज़िम्मा आज़म ख़ान पर छोड़ दिया गया है जबकि लखनऊ कैंट से आशीष चतुर्वेदी को उतारा गया है।

कांग्रेस की निगाहें वोट बढ़ाने पर

चार महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में अपनी बची-खुची ज़मीन भी गँवा बैठी कांग्रेस के पास इस विधानसभा उपचुनावों में उम्मीदों के नाम पर कुछ भी नहीं है। जिन 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं उनमें से गंगोह, लखनऊ कैंट और जैदपुर में कुछ बेहतर करने का भरोसा कांग्रेस को है। इन सभी सीटों पर बीते विधानसभा और हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को ख़ासे वोट मिले थे। तीनों ही विधानसभा सीटों पर 2012 में कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीती थी। प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी महासचिव प्रियंका गाँधी ने इस बार लीक से हटकर पार्टी प्रत्याशियों के नाम पहले से घोषित किए हैं और चुनाव प्रचार भी औरों के मुक़ाबले पहले शुरू कर दिया है। जैदपुर में तनुज पुनिया और गंगोह में नौमान मसूद को छोड़कर सभी सीटों पर कांग्रेस ने नए और उत्साही नौजवानों को मैदान में उतारा है। 

पार्टी का ज़ोर जीत से ज़्यादा वोट प्रतिशत बढ़ाने और संगठन मज़बूत करने पर है। हमीरपुर में नए कार्यकर्ता हरदीपक निषाद को मिले 17000 वोटों ने इसमें आत्मविश्वास भी भरा है। कांग्रेस ने बलहा से मुन्नी देवी, लखनऊ कैंट से दिलप्रीत सिंह, रामपुर से अरशद अली, इगलास से उमेश दिवाकर, मानिकपुर से रंजना पांडे, कानपुर के गोविंदनगर से दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रसंघ महामंत्री रहीं करिश्मा ठाकुर, जलालपुर से सुनील मिश्रा, घोसी से राजमंगल यादव और प्रतापगढ़ से नीरज त्रिपाठी को टिकट दिया।

बसपा की नज़र बस मुख्य विपक्षी दल होने पर

सपा से अपनी राहें जुदा कर लेने के बाद बसपा के लिए जीत हार से भी ज़्यादा बीजेपी से मुख्य मुक़ाबले में दिखना और अखिलेश यादव से ज़्यादा वोट हासिल करना भर है। उपचुनाव में बसपा ने भी अपने प्रत्याशी समय से काफ़ी पहले घोषित कर दिए। हालाँकि मुसलिम वोटों के लिए आगे बढ़कर दावेदारी कर रही मायावती ने अपने कई प्रत्याशी इसी समुदाय से उतार कर बीजेपी नहीं सपा को झटका देने की रणनीति तैयार की है। हमीरपुर उपचुनाव के नतीजे ज़रूर मायावती को बौखला देने के लिए काफ़ी रहे जहाँ उसके मुसलिम प्रत्याशी को सपा की तुलना में आधे ही वोट मिले। हमीरपुर नतीजों के बाद मायावती ने एक बार फिर से ईवीएम पर ग़ुस्सा उतारा पर इतना तय हो गया है कि लोकसभा में सपा से ज़्यादा सीटें हासिल करने के बाद भी अल्पसंख्यक मतदाताओं में उनकी स्वीकार्यता बढ़ी नहीं बल्कि घटी है।

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