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मौसम असामान्य, खेती
पर संकट, घट सकता है फसलों का उत्पादन

मौसम असामान्य, खेती पर संकट, घट सकता है फसलों का उत्पादन

स साल फरवरी की शुरुआत में ही तापमान असमान्य रहा जिसके चलते गेहूं की फसल में फल आने में दस से पंद्रह दिन की देरी की संभावनाएं जताई जा रही हैं।

मौसम विभाग ने फरवरी, 2023 को जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद में हल्की से मध्यम बारिश और ऊंचे इलाकों में बर्फबारी का अनुमान लगाया है। इसके साथ ही 20 और 21 फरवरी को पंजाब और 21 फरवरी को उत्तरी हरियाणा में हल्की बारिश होने या गरज के साथ छींटे पड़ने का अनुमान भी जताया है।

इसके उलट पंजाब, पश्चिम राजस्थान के अधिकांश इलाकों, उत्तराखंड के कई हिस्सों, पूर्वी उत्तर प्रदेश, गुजरात, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल और सिक्किम के कुछ हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य से 5.0 डिग्री सेल्सियस यानी काफी ऊपर रहा।

भरवरी का महीना है, और काई भागों में तापमान आसमान है, देश के अलग-अलग भागों में तापमान 37 डिग्री तक पहुंच चुका है। मौसम विभाग इसे हीट वेब कह रहा है। फरवरी के मौसम में हीट वेब बड़ी असामान्य घटना है। जिसको क्लाइमेट चेंज के असर के तौर पर देखा जा रहा है। इसका असर रबी की फसल पर देखा जा रहा है। 

पूरे उत्तर भारत में इस साल गेहूं की रिकॉर्ड बुआई हुई है। किसान से लेकर सरकार तक खुश थी की इस साल गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन होगा जिससे की पिछले साल की कमी इस साल पूरी कर ली जाएगी। लेकिन अब उसकी उम्मीदों पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है।

मौसम में आ रहे इस बदलाव का सबसे ज्यादा असर खेती पर पड़ रहा है। जिसने किसानों को सबसे ज्यादा चिंता में डाल दिया है। फरवरी की शुरुआत आम तौर पर गेहूं की फसल में फल आने के दिन होते हैं। लेकिन इस साल फरवरी की शुरुआत में ही तापमान असमान्य रहा जिसके चलते गेहूं की फसल में फल आने में दस से पंद्रह दिन की देरी की संभावनाएं जताई जा रही हैं। जबकि बुआई के समय मौसम अनुकूल था। इस देरी का परिणाम गेहूं की फसल का दाना कमजोर और उत्पादन में कमी हो सकती है।  

हिंदुस्तान में छपी खबर के मुताबिक राघोपुर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक मनोज कुमार के अनुसार गेहूं की फसल आम तौर पर 115 से 135 दिनों में तैयार होती है। जिसमें बाली आने के बाद दो महीने के समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। लेकिन इस बार गेंहूं में बाली ही दस से पंद्रह दिन की देरी से आ रही है। ऐसे में गहूं का दाना कमजोर होने से लेकर उत्पादन में कमी तक हो सकती है।

मौसम के इस बदलाव की मार केवल गेहूं पर ही नहीं, मटर, मसूर और दलहन की फसलों पर भी पड़ेगा। जिनकी खेती उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है। मसूर और मटर की फसलों में यह फल लगने का समय होता हैं जिसके लिए कम तापमान की जरूरत होती है। लेकिन बड़े हुए तापमान के कारण पौधे पर आया फूल गिर जा रहा है, जिससे फल में कमी आ रही है। जिससे किसानों को चिंता है कि इस बार मसूर और मटर का उत्पादन होगा भी की नहीं।

सरकार की चिंता गेहूं की फसल को लेकर ज्यादा हैं क्योंकि सरकार ने इस साल के उत्पादन अनुमानों के आधार पर ही गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों से निपटने के लिए सरकारी भंडार से तीस टन गेहूं बाजार में बेचने का फैसला किया था। लेकिन मौसम में आए बदलाव ने उसकी परेशानी बढ़ा दी है। क्योंकि पिछले साल के कम उत्पादन और रूस-युक्रेन युद्ध के चलते पहले ही सरकारी खजाने में गेहूं की कमी थी। सरकार ने पहले इससे निपटने के लिए सरकारी राशन में गेहूं की बजाए चावल को प्राथमिकता दी जिससे की नई फसल आने तक गेहूं को बचा कर रखा जाए।

पिछले साल गेहूं की कमी उत्पादन का सीधा असर उसके भावों में देखने को मिला था, जब खुदरा बाजार में गेहूं 25-28 रुपये किलो तक बिकने लगा। आम आदमी के लिए सबसे जरूरी आटा आज की तारीख में 30-35 रुपए किलो तक मिल रहा है। जबकि खुदरा बाजार में गेंहू का भाव भी 25 से 28 रुपए किलो तक है।  

मंहगाई बढ़ने से सबसे ज्यादा मुसीबत आम आदमी को तब हुई जब सरकार ने सरकार ने गेहूं की कमी को पूरा करने के लिए राशन की दुकानों पर गेंहू की जगह चावल की सप्लाई बढ़ा दी। इससे सबसे ज्यादा असर उतर भारत के लोगों पर पड़ा जहां रोटी मुख्य आहार है। ऐसे में गरीब और निचले तबके के लोगों ने जिनका मुख्य भोजन रोटी था उसके लिए सरकारी राशन की दुकानों पर मिलने वाले चावल को बेचकर गेंहू खरीदने का जुगाड़ किया। लेकिन उसके बाद भी गेंहू उनकी पहुंच से दूर ही रहा क्योंकि बाजार में चावल को बेचने के बाद भी उनको इतना पैसा नहीं मिल रहा था कि वे जरूरत के मुताबिक गेंहू खरीद सकें।  

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