राम मंदिर : कोर्ट में तारीख़ पर तारीख़, अयोध्या में बेचैनी
अयोध्या विवाद में 10 जनवरी को 5 सदस्यीय संविधान पीठ से इस केस की सुनवाई शुरू होने की उम्मीद को झटका लगा जब सुनवाई बढ़ाकर 29 तारीख़ कर कर दी गई। अयोध्या में राम मंदिर को लेकर मंदिर-मसजिद मामले के पैरोकारों और लोगों में बेचैनी है। यही कारण है कि जब भी इस केस की सुनवाई पर तारीख़ दी जाती है तो नाराज़गी के स्वर उठने लगते हैं।
सबसे ज़्यादा प्रतिक्रिया विहिप समर्थक संतों में दिखी, जिन्होंने सारा ग़ुस्सा कांग्रेस व सेंट्रल सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड पर उतारा। इनके वकील राजीव धवन ने जस्टिस यू.यू. ललित पर सवाल खड़े किए और उन्होंने ख़ुद को इस संविधान पीठ से अलग कर लिया। विहिप के फ़ायर ब्रांड संत व राम जन्म भूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य डॉ. राम विलास वेदांती ने तो यहाँ तक कह डाला कि अगर जजों पर सवाल उठेंगे तो चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई को भी इस संविधान पीठ से अलग हो जाना चाहिए क्योंकि उनके पिता कांग्रेस की ओर से सीएम रह चुके हैं और कांग्रेस इस महत्वपूर्ण केस के फ़ैसले को टलवाने की मुहिम में जुटी है। वेदांती ने कहा कि अब कोर्ट से जल्द फ़ैसले की उम्मीद क्षीण हो गई है। उन्होंने आगे कहा कि तारीख़ पर तारीख़ का क्रम जो मंदिर मसजिद केस में चल रहा है वह जारी रहेगा। उन्होंने माँग की कि राष्ट्रपति को इस केस की सुनवाई जल्द पूरी करवाने को लेकर दख़ल देनी चाहिए। लेकिन उन्होंने संसद में क़ानून बना कर मंदिर का निर्माण करने की विहिप व संघ की माँग से पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने राय रखी कि कोर्ट के आदेश के बाद ही संसद में मंदिर पर बिल लाया जा सकता है।
बाबरी मसजिद के मुद्दई मो. इकबाल अंसारी बेबाक़ी से कहते हैं कि अगर किसी पक्ष का वकील ग़लत माँग कर रहा है तो कोर्ट को मानना नहीं चाहिए। 10 जनवरी को वकीलों ने जो पक्ष रखा अगर वह विधिक नहीं था तो कोर्ट और जज ने क्यों माना कि हम जल्द फ़ैसला चाहते हैं। पर कोर्ट विधिक प्रक्रिया के तहत जब भी फ़ैसला देगा उसे मानेंगे। बाबरी मसजिद के दूसरे पक्षकार हाजी महबूब ने संविधान पीठ में मुसलिम जस्टिस की भागीदारी पर सवाल खड़ा कर कहा कि सभी वर्ग के जजों की भागीदारी होनी चाहिए। पहले ऐसा होता रहा है। विहिप के प्रवक्ता शरद शर्मा का कहना है कि मंदिर पर फ़ैसला टाला जा रहा है, आखिर कब होगा फैसला।
आपसी सुलह ही आखिरी विकल्प : वेदांती
डॉ. वेदांती ने कहा कि बिना कोर्ट के किसी फ़ैसले के पहले राम मंदिर के भव्य मंदिर को लेकर क़ानूनी तौर पर कोई अध्यादेश नहीं लाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस का जिस तरह से इस मुद्दे पर उपेक्षा पूर्ण रवैया दिख रहा है, इससे साफ़ है कि चुनाव के पहले तक तारीख़ ही मिलनी है। कांग्रेस मंदिर पर कोर्ट का फ़ैसला जल्द होने नहीं देगी। ऐसे में सरकार के पास इस विवाद को सुलझाने के लिए आपसी सुलह का रास्ता ही आख़िरी विकल्प है।
‘सुलह के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बातचीत’
डॉ. वेदांती के मुताबिक़ इस दिशा में गंभीर प्रयास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे हैं जिसमें उनकी प्रमुख भागीदारी है। उन्होंने कहा, ‘यह समझौता देश-विदेश के प्रमुख मुसलिम धर्म गुरुओं की सहमति पर तय होगा। जिसे सभी मुसलिम मानने के लिए बाध्य होंगे। उम्मीद है कि मकर संक्रांति के बाद कुछ परिणाम इस प्रयास का निकल आए। अब तक कई प्रांतों के दोनों क़ौमों के धर्म गुरुओं से सुलह अजेंडे पर बात कर चुके हैं। मुसलिम उलेमा भी चाहते हैं कि मुसलिम समाज के हित के लिए राम मंदिर का निर्माण हो जाना चाहिए।’ उन्होंने बताया कि समझौते के मसौदे में जहाँ राम लला विराजमान हैं वहाँ भव्य राम मंदिर का निर्माण व लखनऊ या किसी अन्य मुसलिम बहुल इलाक़े में भव्य मसजिद अमन के निर्माण का प्रस्ताव है।
मोदी पर क्या बोले वेदांती
वेदांती राम जन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य के साथ ही ‘मोदी पीएम अगेन’ अभियान के संयोजक भी हैं। उन्होंने बताया कि ‘मोदी पीएम अगेन’ अभियान को लेकर बैठकें चल रही हैं। सभी बूथों पर 11 कार्यकर्ताओं की टीम तैयार किया जा रहा है, जबकि प्रत्येक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में 11 हज़ार ‘मोदी पीएम अगेन’ की टीम के कार्यकर्ता उनकी योजनाओं का प्रचार कर मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने की अपील करेंगे। वेदांती ने बताया कि यूपी, दिल्ली, बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा सहित कई राज्यों में इसको लेकर इकाइयाँ गठित हो रही हैं जो चुनावी मुहिम शुरू कर देंगी।
‘कुंभ से मोदी के ख़िलाफ़ मोर्चा नहीं’
वेदांती ने बताया कि संत समाज की बैठक 31 जनवरी व 2 फ़रवरी को प्रयाग कुंभ में होने जा रही है जिसमें राम मंदिर पर प्रस्ताव पारित होगा। पीएम मोदी के ख़िलाफ़ कोई मोर्चा चुनाव के पहले नहीं खोला जाएगा। केवल राम मंदिर पर अध्यादेश लाकर क़ानून बनाने की माँग ज़रूर उठ सकती है। मुझे भी इस महत्वपूर्ण बैठक में शामिल होना है।