महाराष्ट्र: बाढ़ ने उघाड़ दिया बेतरतीब शहरी विकास का सच!
सिंधु घाटी सभ्यता का विकास सिंधु नदी के किनारे हुआ था। पुरातत्व के जानकारों ने उसी को आधार मानकर देश में हुए सभ्यता के विकास को जोड़ा और गंगा, यमुना, कृष्णा, गोदावरी जैसी नदियों के किनारे बसे सैकड़ों शहरों की एक तसवीर हमारे सामने रखी। देश में समय-समय पर नदियों को बचाने, उनको आपस में जोड़ने की बातें की जाती हैं। नेता से लेकर अभिनेता, साधू-संत और अब तो कुछ बाबाओं ने भी नदियों को लेकर चिंता जतानी शुरू कर दी है। लेकिन नदियों से खिलवाड़ बदस्तूर जारी है। जब नदी अपनी ताक़त दिखाती है तो सबके चेहरे सामने आने लगते हैं।
कुछ ऐसा ही संकेत महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली व सातारा ज़िले में आयी बाढ़ ने भी दिया है। मुंबई में पानी भरना अब आम बात हो गयी है। अनियंत्रित विकास और बिल्डर लॉबी के दबाव में आकर सरकारें नियम-क़ानून को कैसे तोड़ती-मरोड़ती हैं यह चेहरा भी बाढ़ के पानी में धुलकर सामने आ गया है। बातें तो सरकारें स्मार्ट सिटी, थ्री स्टार सिटी बनाने की करती हैं लेकिन शहर का विस्तार करने के लिए बाढ़ रेखा के नीचे करने की अनुमति दी जाए तो उसे क्या कहेंगे या कोई बिल्डर अपने राजनीतिक ताक़त के दम पर नदी का रुख बदलकर इमारतें बनाने लगे या भराव क्षेत्र को पाटकर शहर बसाने लगे तो क्या होगा वह भी तब जब राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने आदेश देकर चेताया हो।
27 मार्च 2015 को ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह कोल्हापुर की पंचगंगा नदी की बाढ़ की रेखा का निर्धारण करे। कोल्हापुर में 1984, 1989 और 2004 में भी बाढ़ आयी थी और महानगरपालिका ने जो शहर के विस्तार का नया मास्टर प्लान बनाया उसमें नदी की बाढ़ रेखा का जो आधार बनाया वह साल 1989 में बाढ़ के पानी की ऊँचाई को लेकर था। बाँध निर्माण विभाग के कोल्हापुर के कार्यकारी अधिकारी ने इस सम्बन्ध में महानगरपलिका को पत्र लिखकर एतराज़ भी जताया था कि वह जिस तरीक़े से नदी की बाढ़ रेखा तय कर रही है वह ग़लत है, क्योंकि उसको तय करने में कोई तकनीकी अध्ययन या सर्वे नहीं किया गया है।
इस पत्र के बाद स्थानीय बिल्डर्स लॉबी जिसका राजनीति में बड़ा दखल है उसने दिल्ली की यात्रा शुरू कर दी। क्योंकि यदि बाँध निर्माण विभाग की सलाह पर अमल हो जाता तो उस क्षेत्र की क़रीब 500 हेक्टेयर ज़मीन पर निर्माण कार्य रुक जाते। बिल्डर्स के राष्ट्रीय संगठन क्रेडाई (कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया) ने साल 2018 में सरकार को पत्र लिखा कि 1989 में कोल्हापुर में जो बाढ़ आयी थी वही अब तक की सबसे बड़ी बाढ़ है, लिहाज़ा उसी को आधार मानते हुए निर्माण कार्यों को मंज़ूरी दी जाए। फिर राज्य सरकार ने भी यही आदेश जारी कर दिया। ऐसा यह पहली बार नहीं हुआ है।
मुंबई में 2005 की जानलेवा बाढ़
26 जुलाई 2005 की तारीख़ मुंबई के लोग कभी नहीं भूल सकते। इस साल भी 26 जुलाई पर जब शहर के अनेकों इलाक़ों में पानी भरने लगा तो लोग भय ग्रस्त हो गए। इस समस्या के पीछे भी बिल्डर्स लॉबी और राजनेताओं की साँठगाँठ जुड़ी है जिसने इस शहर को ऐसा दर्द दे दिया जो हमेशा नासूर बनकर सालता रहेगा। शहर का सबसे बड़ा आलिशान क्षेत्र बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स आज जहाँ खड़ा है किसी ज़माने में वहाँ से होकर मीठी नाम की नदी बहकर समुद्र में जाती थी। उस नदी को पाटकर उस पर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के विकास की कहानी लिखने के लिए वह ज़मीन बिल्डर्स को बेची गयी।
मुंबई में एक से एक शानदार कॉम्प्लेक्स खड़े हुए लेकिन साल 2005 में जब जल प्रलय की स्थिति बनी तो मीठी नदी की याद आयी। उस जल प्रलय ने क़रीब एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान ले ली थी।
उसका गुनहगार किसे ठहराया जाए, क्योंकि यहाँ पर ज़मीन बेचने का काम एमएमआरडीए (मुंबई मेट्रोपोलिटन रिजनल डवलपमेंट अथॉरिटी) ने ही किया और उससे हज़ारों करोड़ रुपये जमा किये।
कोल्हापुर में इस सरकार ने भी इसी तरह का एक प्राधिकरण बनाया है और उसका नाम कोल्हापुर शहरी क्षेत्र विकास प्राधिकरण रखा है। इस प्राधिकरण के तहत महानगरपालिका क्षेत्र से सटे 42 गाँवों को दिया गया है। यानी इन गाँवों के शहरीकरण की रूपरेखा यह प्राधिकरण तय करेगा। प्राधिकरण को इस क्षेत्र की ज़मीन के उपयोग और उसका ज़ोन बदलने का अधिकार भी दे दिया गया है। पहले यह सब बदलाव राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री या शहरी विकास मंत्री के अधिकार क्षेत्र में हुआ करते थे। महाराष्ट्र सरकार ने कोल्हापुर के अलावा पुणे, नागपुर और औरंगाबाद शहर के लिए भी इसी प्रकार के स्वतंत्र प्राधिकरण बनाए हैं। लेकिन सवाल यह है कि ये प्राधिकरण शहरों के किस तरह के विकास का पैमाने तय करने वाले हैं ये प्लानिंग के नाम पर ज़मीन बेचने वाली कंपनियाँ बनने वाले हैं या शहर को विस्तारित करते समय प्राकृतिक पहलुओं का भी ध्यान रखने वाले हैं
कोल्हापुर में बाढ़ के हालात क्यों
कोल्हापुर में जो बाढ़ के भयावह हालात हैं वह पुराने शहर में नहीं, शहर के विस्तारित क्षेत्र में ज़्यादा हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि एक तरफ़ तो सरकारें स्मार्ट सिटी की बातें करती हैं तो दूसरी तरफ़ वे शहरी विकास के पैमानों के साथ खिलवाड़ करके नए शहर की जगह नयी झोपड़पट्टियाँ निर्माण कर रही हैं। तेज़ी से बढ़ता हुआ शहरीकरण हमारे देश में बहुत सारी समस्याएँ पैदा कर रहा है, लेकिन उसके नियोजन के स्थान पर यदि सिर्फ़ कंक्रीट का जाल बिछाया जाएगा तो दस साल बाद फिर से चुनावों में स्मार्ट सिटी के अलावा बदहाल होते शहरों को कोई नए नाम से नारा देना पड़ेगा