वर्षों तक रहा तो कोरोना मौसमी बीमारी बन सकता है: यूएन
कोरोना क्या मौसमी बीमारी की तरह अब वर्षों तक रहेगा? क्या यह वायरस अब कभी भी ख़त्म नहीं होगा? ये सवाल इसलिए कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की कमिटी ने रिपोर्ट ही कुछ ऐसी दी है। इसने कहा है कि धीरे-धीरे कोरोना के मौसमी बीमारी की तरह हो जाने की आशंका है। इसका मतलब है कि कोरोना लंबे समय तक रहा तो दुनिया को कोरोना जैसे वायरस से फैलने वाली एक और मौसमी बीमारी के लिए तैयार रहना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने विशेषज्ञों की एक कमेटी को यह ज़िम्मेदारी सौंपी थी कि वह उस रहस्य का पता लगाए कि मौसम और हवा की गुणवत्ता का कोरोना के फैलने पर क्या असर होता है। कमेटी में 16 विशेषज्ञ शामिल थे।
इस टीम ने कोरोना संक्रमण के फैलने के शुरुआती समय से लेकर अब तक की स्थिति का अध्ययन किया। 2019 में दिसंबर महीने में कोरोना संक्रमण के पहले मामले की पुष्टि चीन के वुहान शहर में हुई थी। उसके बाद यह चीन के दूसरे प्रांतों और दुनिया के दूसरे देशों में फैलना शुरू हुआ। अब तक 12 करोड़ से ज़्यादा कोरोना संक्रमण के मामले आ चुके हैं और 26 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अब हर रोज़ 5 लाख से ज़्यादा संक्रमण के मामले आने लगे हैं और कहा जा रहा है कि यूरोप में तो कोरोना की तीसरी लहर शुरू हो गई है। दुनिया फिर से कोरोना की चपेट में है।
पिछले एक साल से ज़्यादा समय से फैल रहे संक्रमण के मामले का अध्ययन कर संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन की कमेटी ने कहा है कि कोरोना फैलने पर मौसम और हवा की गुणवत्ता के असर की पड़ताल करने पर कुछ संकेत मिले हैं कि यह मौसमी बीमारी में बदल जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र की गठित कमेटी ने एक बयान में कहा है कि इससे आशंका बढ़ गई है कि अगर यह कई सालों तक बना रहता है तो कोरोना एक गंभीर मौसमी बीमारी साबित होगा।
कमेटी ने यह भी कहा है कि साँस से जुड़े वायरल संक्रमण अक्सर मौसमी होते हैं, विशेष रूप से इन्फ्लूएंजा शरद ऋतु-सर्दियों में शिखर पर होता है।
तो सवाल है कि अब तक क्या कोरोना संक्रमण के मामले मौसम के अनुसार कम या ज़्यादा होते रहे हैं? संक्रमण के मामलों को देखने पर ऐसा नहीं लगता है। दुनिया के किसी भी देश को लेकर ऐसी रिपोर्ट नहीं मिली है कि मौसम से कोरोना संक्रमण का कितना लेना-देना है। संयुक्त राष्ट्र की कमेटी भी यही कहती है। इसने कहा है कि मौसम की बजाए मास्क का इस्तेमाल, लॉकडाउन, यात्रा पर पाबंदियों से कोरोना संक्रमण की रफ़्तार प्रभावित होती रही है।
एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के पृथ्वी और ग्रह विज्ञान विभाग और समिति के कार्य दल के सह-अध्यक्ष बेन ज़ैचिक ने कहा, 'इस स्तर पर इसके सबूत नहीं है कि मौसम और वायु की गुणवत्ता का असर कोरोना संक्रमण पर है और इसलिए सरकारों को संक्रमण कम करने के लिए इस पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।'
उन्होंने कहा कि महामारी के पहले वर्ष के दौरान कुछ स्थानों पर संक्रमण गर्म मौसम में बढ़ गया था और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह आने वाले वर्ष में फिर से नहीं हो सकता।