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ख़राब हवा: दिल्ली ही निशाने पर क्यों, दूसरे शहर 'गैस चैंबर' नहीं?

ख़राब हवा: दिल्ली ही निशाने पर क्यों, दूसरे शहर 'गैस चैंबर' नहीं?

प्रदूषण क्या सिर्फ़ दिल्ली में है और क्या इस ख़राब हवा से एक साल में ही 17 लाख लोग दिल्ली में ही मर जाते हैं? यदि ऐसा नहीं है तो फिर प्रदूषण के लिए सिर्फ़ दिल्ली का ही नाम क्यों आता है?

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बुधवार को ख़राब हवा को लेकर दिल्ली को 'गैस चैंबर' क़रार दे दिया है। तो क्या देश में दिल्ली ही इतनी ख़राब स्थिति में शहर है? या फिर दूसरे शहर भी ऐसे हैं? यदि दूसरे शहरों में भी ऐसी ही जहरीली हवा है तो क्या आपने इन शहरों के बारे में कभी ऐसी टिप्पणी सुनी है?

हफ़्ते भर पहले विश्व वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार, एशिया के शीर्ष 10 सबसे ख़राब हवा वाले शहरों में आठ भारत के थे। लेकिन इसमें दिल्ली नहीं थी। ख़राब हवा के मामले में 23 अक्टूबर को हरियाणा का गुरुग्राम शीर्ष पर था। इसके बाद रेवाड़ी और फिर मुजफ्फरपुर। इनके अलावा लखनऊ, बेगूसराय, देवास जैसे शहर थे। तो सवाल है कि आख़िर इन शहरों को लेकर वैसा हंगामा क्यों नहीं होता है जैसा कि दिल्ली को लेकर होता है?

दिल्ली में ख़राब हवा को लेकर पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक गहमागहमी बनी हुई है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने दिल्ली के वायु प्रदूषण के चौंकाने वाले स्तर को लेकर आम आदमी पार्टी पर तीखा हमला किया और पार्टी पर राजधानी को 'गैस चैंबर' में बदलने का आरोप लगाया।

उन्होंने बुधवार को ट्वीट किया, 'आज तक आप सरकार द्वारा संचालित राज्य पंजाब में पराली जलाने में 2021 की तुलना में 19% से अधिक की वृद्धि हुई है। हरियाणा में 30.6% की गिरावट देखी गई है। आज ही पंजाब में 3,634 जगह आग लगीं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कौन दिल्ली को गैस चैंबर में बदल दिया है।'

उन्होंने ट्विटर थ्रेड में आप पर आरोप लगाया, 'घोटाला वहाँ है जहाँ आप है। पिछले 5 वर्षों में केंद्र सरकार ने पंजाब को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के लिए ₹1,347 करोड़ दिए। राज्य ने 1,20,000 मशीनें खरीदीं। उनमें से 11,275 मशीनें गायब हो गई हैं। धन का उपयोग साफ़ तौर पर अक्षमता को दिखाता है।'

इस पर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी पर ज़िम्मेदारी डाली है। उन्होंने कहा है कि 'प्रदूषण पूरे उत्तर भारत की समस्या- यूपी, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश सब जगह एक्यूआई लगभग बराबर। क्या दिल्ली-पंजाब ने पूरे देश में प्रदूषण फैलाया? प्रधानमंत्री मीटिंग क्यों नहीं कर रहे?'

बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 24 अक्टूबर को ट्वीट कर उससे एक दिन पहले की हवा की गुणवत्ता की एक रिपोर्ट बताई थी। उन्होंने बताया था कि एशिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली का नाम नहीं है, जबकि इस सूची में भारत के 8 शहर हैं।

केजरीवाल ने इंडिया टुडे की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि 'कुछ साल पहले तक दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था, लेकिन अब नहीं है। ...आज हमने बहुत सुधार किया है। इसके बावजूद अभी हमें एक लंबा रास्ता तय करना है।' 

वैसे, साल 2020 में ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट-2018 आई थी। उसमें देश के शीर्ष दस प्रदूषित शहरों में दिल्ली 10वें स्थान पर थी। इस सूची में झारखंड का झरिया नंबर वन रहा था।  झरिया में पीएम-10 का स्तर 322 रहा, जो तय मानक से कई गुना ज्यादा था। झरिया के बाद धनबाद दूसरे स्थान पर रहा था। 

देश के कई शहरों में या कई हिस्सों में प्रदूषण का हाल क्या है, इसको लेकर लैंसेट की एक रिपोर्ट भी सचेत करने वाली है। इसी साल मई में 'द लैंसेट' प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित द लैंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हेल्थ ने कहा है कि 2019 में सभी तरह के प्रदूषणों के कारण भारत में 23 लाख से अधिक लोगों की अकाल मृत्यु हुई। यह दुनिया में सबसे ज़्यादा है। दुनिया भर में ऐसी 90 लाख मौतों में से एक चौथाई से अधिक भारत में हुई हैं।

लैंसेट की रिपोर्ट में भी चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि 2019 में प्रदूषण से भारत में हुई कुल मौतों में से 16.7 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण यानी ख़राब हवा ज़िम्मेदार थी। देश में उस वर्ष सभी मौतों में से 17.8% मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं।

द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित उस रिपोर्ट के अनुसार किसी भी देश में वायु प्रदूषण से संबंधित मौतों की यह सबसे बड़ी संख्या है।

रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में वायु प्रदूषण से संबंधित 16.7 लाख मौतों में से अधिकांश 9.8 लाख PM2.5 प्रदूषण के कारण हुईं। अन्य 6.1 लाख घरेलू वायु प्रदूषण के कारण मौतें हुईं।

बता दें कि PM2.5 का एक्यूआई से सीधा संबंध है। एक्यूआई यानी हवा गुणवत्ता सूचकांक से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है। पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आँखों से नहीं देख सकते। 'पीएम10' मोटे कण होते हैं। लेकिन स्वास्थ्य के लिए ये बेहद ख़तरनाक होते हैं। कई बार तो ये कण जानलेवा भी साबित होते हैं।  201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘ख़राब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत ख़राब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है।

मोटे तौर पर कहें तो दो तरह के प्रदूषण फैलाने वाले तत्व हैं। एक तो पराली जलाने, वाहनों के धुएँ व पटाखे जलाने के धुएँ से निकलने वाली ख़तरनाक गैसें और दूसरी निर्माण कार्यों व सड़कों से उड़ने वाली धूल। 

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