भारत में बेरोजगारी दर अक्टूबर में 10 प्रतिशत के पार हुई
भारत में बेरोजगारी की दर में बढ़ोतरी हुई है। इसको लेकर सामने आये ताजा आंकड़े इस बात को साबित करते हैं। द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट कहती है कि निजी सर्वेक्षण और अनुसंधान समूह सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, देश में बेरोजगारी दर अक्टूबर में 10 प्रतिशत को पार कर गई है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एक श्रम अर्थशास्त्री ने इस स्थिति के लिए धीमी पोस्ट-कोविड रिकवरी को जिम्मेदार ठहराया है। सीएमआईई, जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में घरेलू सर्वेक्षण करता है, के अनुसार अक्टूबर में बेरोजगारी दर 10.05 प्रतिशत थी, जो कि सितंबर में 7.09 थी। पिछले साल अक्टूबर का आंकड़ा 7.8 फीसदी था। बेरोजगारी दर कार्यबल में बेरोजगार लोगों का प्रतिशत है जो कार्यरत हैं या नौकरी की तलाश में हैं।
सीएमआईई सर्वेक्षण में इस साल अक्टूबर में ग्रामीण बेरोजगारी दर 10.82 प्रतिशत और शहरी बेरोजगारी दर 8.44 प्रतिशत आंकी गई है। 2023-24 के पहले छह महीनों में बेरोजगारी दर लगभग 7-8 प्रतिशत थी।
द टेलीग्राफ की इस रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में बाथ विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर और श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि संगठित क्षेत्र ने कोविड के प्रभाव को दूर कर लिया है, लेकिन असंगठित क्षेत्र, जो देश के लगभग 90 प्रतिशत कार्यबल को आजीविका प्रदान करता है, ने नहीं किया है।
सरकार के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर), नियोजित या नौकरी की तलाश में व्यक्तियों का अनुपात, 2017-18 में 49.8 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 57.9 प्रतिशत हो गया।
युवा बेरोजगारी की स्थिति अभी भी बहुत गंभीर है
अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा कहते हैं कि एलएफपीआर में वृद्धि मुख्य रूप से नौकरीपेशा के बजाय नौकरी की तलाश करने वालों की संख्या में वृद्धि के कारण हुई है। नोटबंदी के प्रभाव और जीएसटी को गलत तरीके से लागू करने के कारण देश में रोजगार सृजन पहले से ही कम था और फिर कोविड का प्रकोप हुआ इसके कारण रोजगार सृजन में अभी भी तेजी नहीं आई है।उन्होंने कहा कि "हम देख रहे हैं कि गैर-कृषि क्षेत्र, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग कोविड से पहले के अपने प्रदर्शन पर अब तक लौट नहीं सका है।
वहीं दूसरी ओर नौकरी चाहने वालों की संख्य में वृद्धि हुई है। युवा बेरोजगारी की स्थिति अभी भी बहुत गंभीर है। सरकार के प्रोत्साहन के बावजूद निजी निवेश नहीं बढ़ रहा है। वह कहते हैं कि निजी निवेश स्थिर है, विनिर्माण क्षमता का उपयोग 75 प्रतिशत पर बना हुआ है, जिसका मतलब है कि खपत की मांग कम है। इस स्थिति ने गैर-कृषि क्षेत्र के पुनरुद्धार को लम्बा खींच दिया है।
मांग गिर गई और बड़े पैमाने पर हो रहा पलायन
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली के द्वारका इलाके में कांच बनाने वाली एक छोटी सी कंपनी ने मेहरोत्रा के दावे को सच साबित कर दिया। इसके मालिक ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि कंपनी दिल्ली के बाहरी इलाके में छोटे अपार्टमेंट बनाने वाले ठेकेदारों को ग्लास की आपूर्ति करती है। कांच की मांग गिर गई है। हमारी आपूर्ति (ठेकेदारों को) कोविड से पहले के समय की तुलना में 50 प्रतिशत कम हो गई है।वह कहते हैं कि अब भुगतान बिल्कुल नियमित नहीं हैं। मुझे कोविड से पहले एक महीने के भीतर भुगतान प्राप्त हो जाता था। अब मुझे कम से कम छह महीने इंतजार करना पड़ता है। फ्लैटों की बिक्री कम हो गई है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय रोजगार योजना मनरेगा के उचित कार्यान्वयन के लिए अभियान चलाने वाले नागरिक समाज समूह नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्य तपोजय मुखर्जी ने कहा कि नौकरियों की कमी के कारण बंगाल के जिलों से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है।
उन्होंने कहा, ''बंगाल में स्थिति बदतर है क्योंकि मनरेगा लागू नहीं किया जा रहा है। नियमित नौकरियों की गुंजाइश सीमित बनी हुई है, और इस सीजन के लिए कृषि कार्य समाप्त हो गया है। शिक्षित युवाओं सहित लोग नौकरियों की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।