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'सात सेक्टरों में ही 5 साल में 3.64 करोड़ नौकरियाँ गईं', आगे क्या होगा?

'सात सेक्टरों में ही 5 साल में 3.64 करोड़ नौकरियाँ गईं', आगे क्या होगा?

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पाँच साल में सात प्रमुख सेक्टरों से 3.64 करोड़ लोगों की नौकरियाँ चली गईं। यानी इतने लोग सीधे-सीधे बेरोज़गार हो गए।

पिछले साल जनवरी में जब यह रिपोर्ट आई थी कि देश में बेरोज़गारी दर 6.1 फ़ीसदी हो गई है और यह 45 साल में सबसे ज़्यादा है तो लगा था कि इस पर सरकार नये सिरे से ध्यान देगी और स्थिति सुधरेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दिसंबर महीने में बेरोज़गारी दर 7.6 फ़ीसदी रही है। इसका साफ़ मतलब यह है कि बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियाँ गई हैं। इसका एक मतलब यह भी है कि सरकार की तरफ़ से नयी नौकरियों के जो दावे किए गए वे बेहद ही मामूली होंगी। हाल की एक मीडिया रिपोर्ट में भी कुछ ऐसा ही आँकड़ा आया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पाँच साल में सात प्रमुख सेक्टरों से 3.64 करोड़ लोगों की नौकरियाँ चली गईं। यानी इतने लोग सीधे-सीधे बेरोज़गार हो गए।

अब आने वाले समय में क्या होगा, इसकी भी उम्मीद सकारात्मक नहीं दिखती क्योंकि अर्थव्यवस्था के किसी भी मोर्चे पर कोई ख़ास सुधार होता नहीं दिख रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी वृद्धि की दर 4.5 प्रतिशत दर्ज की गई। ऐसा तब है जब आरबीआई ने 2019-20 के लिए जीडीपी विकास दर 6.1 का अनुमान लगाया था। अब इसी आरबीआई ने दूसरी छमाही की रिपोर्ट आने के बाद जीडीपी विकास दर का अनुमान 6.1 प्रतिशत से कम कर 5 प्रतिशत कर दिया है। इसका मतलब साफ़ है कि स्थिति के अभी सुधरने की गुँज़ाइश नहीं है, बल्कि ख़राब ही होगी। 

अब एक हफ़्ते में बजट पेश होने को है, ऐसे में रोज़गार पर सरकार का रवैया क्या रहता है, यह देखने वाली बात होगी। बेरोज़गारी के आँकड़ों को लेकर 'दैनिक भास्कर' ने अलग-अलग सेक्टर के विशेषज्ञों, इंडस्ट्री बॉडी और सरकारी रिपोर्टों के आधार पर एक रिपोर्ट छापी है। इसके अनुसार, देश में बीते पाँच सालों में 3.64 करोड़ नौकरियाँ सिर्फ़ 7 प्रमुख सेक्टरों में ही जा चुकी हैं। इनमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार शामिल हैं। सबसे ज़्यादा 3.5 करोड़ नौकरियाँ टेक्सटाइल सेक्टर में गई हैं। अख़बार ने क्लोथिंग मैन्यूफ़ैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के मुख्य संरक्षक राहुल मेहता के हवाले से टेक्सटाइल क्षेत्र का यह आँकड़ा दिया है। हालाँकि उन्होंने अब इस क्षेत्र में सुधार की उम्मीद जताई है। 

अख़बार के अनुसार, इसके अलावा जेम और ज्वैलरी में पाँच लाख, ऑटो सेक्टर में 2.30 लाख, बैंकिंग में 3.15 लाख, टेलिकॉम में 90 हज़ार, रियल एस्टेट में 2.7 लाख और एविएशन में 20 हज़ार नौकरियाँ गई हैं। हालाँकि इस रिपोर्ट में अगले पाँच साल में पाँच करोड़ नौकरियाँ आने की उम्मीद भी जताई गई है। लेकिन यह उम्मीद कितनी सही साबित होगी 

हालाँकि पहले की ही दूसरी मीडिया रिपोर्टों की मानें तो कहीं ज़्यादा नौकरियाँ गई होंगी। 'दैनिक भास्कर' की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑटो सेक्टर में 2.30 लाख नौकरियाँ गईं, जबकि 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की जुलाई 2019 की रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ़ ऑटो कल-पुर्जे सेक्टर में ही क़रीब 10 लाख नौकरियाँ चली गईं। तब ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ से ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एसीएमए) के महानिदेशक विन्नी मेहता ने बताया था, ‘यह संकट है और हम पिछले एक साल से अधिक दबाव में हैं, जिसके परिणामस्वरूप कारख़ानों में उत्पादन में बड़ी कटौती हुई है। हमारा अनुमान है कि नौकरी का नुक़सान 8 लाख से 10 लाख के बीच है। ये नौकरियाँ हरियाणा, पुणे, चेन्नई, नासिक, उत्तराखंड और जमशेदपुर जैसे प्रमुख ऑटोमोबाइल विनिर्माण स्थानों से गई हैं।’

इसके बाद ऑटो सेक्टर की ख़राब हालत पर अगस्त महीने में सोसाइटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफ़ैक्चरर्स (एसआईएएम यानी सियाम) ने कहा था कि यही हाल रहा तो इस सेक्टर में लगभग 10 लाख लोगों को बेरोज़गार होना पड़ सकता है। तब यह ख़बर भी आई थी कि पिछले 18 महीनों में 286 डीलरों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ी थीं। वाहनों की बिक्री बेतहासा गिरी है। घरेलू यात्री वाहनों की बिक्री सितंबर में 23.69 प्रतिशत घटकर 2,23,317 तक रह गई, जो एक साल पहले की अवधि में 2,92,660 थी। तब की यह रिपोर्ट थी कि वाहनों की बिक्री में गिरावट का यह सिलसिला 11 महीने से जारी रहा। 

दूसरे सेक्टरों की हालत भी कुछ ऐसी ही है। नवंबर महीने में आई अर्थव्यवस्था और रोज़गार पैदा करने में अहम भूमिका निभाने वाले कोर सेक्टर की रिपोर्ट निराश करने वाली है। सबसे अहम 8 कोर औद्योगिक क्षेत्रों में विकास दर शून्य से नीचे तो रही ही है, इसके साथ ही यह पहले से भी नीचे गई है। पिछली तिमाही में यह -5.2 प्रतिशत थी तो अब यह और गिर कर -5.8 प्रतिशत पर पहुँच गई है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद देश की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है, ऐसे में रोज़गार की स्थिति सुधरने की गुँज़ाइश कितनी होगी

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