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असम समझौते की धारा 6 की रिपोर्ट को लेकर बढ़ेंगी मोदी सरकार की मुश्किलें!

असम समझौते की धारा 6 की रिपोर्ट को लेकर बढ़ेंगी मोदी सरकार की मुश्किलें!

असम समझौते की धारा 6 को लेकर केंद्र सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। 

असम समझौते की धारा 6 को लेकर केंद्र सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। धारा 6 को लागू करने के लिये बनाई गई उच्च स्तरीय कमेटी जल्द ही अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप देगी। राज्य सरकार इस रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिये राजी हो गई है। केंद्र सरकार की ओर से असम के मूल निवासियों की भाषाई और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिये इस कमेटी का गठन किया था। नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ असम में हो रहे प्रदर्शनों के दौरान कमेटी के कई सदस्यों ने इस्तीफ़ा दे दिया था। जुलाई, 2019 में कमेटी का पुनर्गठन किया गया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पर 10 फ़रवरी को काम पूरा कर लिया था। 

अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, केंद्र सरकार कमेटी की इस रिपोर्ट को लेकर असहज महसूस कर रही है क्योंकि कमेटी ने असमिया लोगों को परिभाषित करने के लिये 1951 की कट ऑफ़ डेट निर्धारित की है। कमेटी ने इस बात का भी सुझाव दिया है कि राज्य में इनर लाइन परमिट की व्यवस्था को लागू किया जाये। कमेटी ने असमिया लोगों के लिये राज्य की विधानसभा में, शिक्षण संस्थानों में और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सिफ़ारिश की है। यह रिपोर्ट सीलबंद लिफ़ाफे में असम सरकार के असम समझौता विभाग में रखी गई है। 

असम समझौते की धारा 6 में कहा गया है कि असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत की रक्षा, संरक्षण और इसे बढ़ावा देने के लिए संवैधानिक, वैधानिक तथा प्रशासनिक सुरक्षा से जुड़े उपाय किए जाएंगे। 

असम सरकार के वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, ‘25 फ़रवरी को कमेटी अपनी रिपोर्ट को मुख्यमंत्री को सौंप देगी। मुख्यमंत्री इसे भारत सरकार की ओर से प्राप्त करेंगे।’ अख़बार के मुताबिक़, जस्टिस (रिटायर्ड) बिप्लब कुमार सरमा ने कहा कि उन्हें भी इस बारे में जानकारी मिली है लेकिन अभी तक इसके लिये औपचारिक निमंत्रण नहीं मिला है। सरमा इस उच्च स्तरीय कमेटी के चेयरमैन हैं। 

अख़बार के मुताबिक़, रिपोर्ट को लेकर केंद्र सरकार के अधिकारियों का कहना है कि अगर रिपोर्ट को खारिज किया जाता है या स्वीकार नहीं किया जाता है तो इससे असम में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ पहले से चल रहे प्रदर्शनों के और उग्र होने का ख़तरा रहेगा। अधिकारियों का कहना है कि 1951 की कट-ऑफ़ डेट न केवल बंगाली हिंदुओं को बल्कि कई असमियों को भी देश से बाहर कर देगी। 

अख़बार के मुताबिक़, एक अधिकारी ने कहा, ‘हमें बताया गया है कि असमी लोगों की परिभाषा के लिये 1951 से पहले की एनआरसी को तय किया गया है। इसका मतलब यह है कि अगर हम इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लेते हैं तो हमें असम में एक और एनआरसी की ज़रूरत होगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा हम असम में इनर लाइन परमिट व्यवस्था के पक्ष में भी नहीं हैं। 

देश में असम इकलौता राज्य है जहाँ एनआरसी  की व्यवस्था लागू है। एनआरसी के मुताबिक़, जिस व्यक्ति का नाम सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसमें यहाँ के हर गाँव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और परिवार के सदस्यों की संख्या दर्ज की गई है। असम की एनआरसी की फ़ाइनल सूची से 19 लाख लोग बाहर रह गये हैं। 

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ असम में जोरदार प्रदर्शन हुए हैं। असम के लोगों का कहना है कि नागरिकता क़ानून से बांग्लादेशी हिंदुओं को भारत की नागरिकता मिलने से असम बर्बाद हो जाएगा। असम के लोगों का कहना है कि नागरिकता क़ानून की वजह से असम समझौता, 1985 के प्रावधान निरस्त हो जाएंगे। असम समझौता, 1985 के मुताबिक़, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्‍य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा। लेकिन कमेटी ने असमिया लोगों को परिभाषित करने के लिये 1951 की कट ऑफ़ डेट निर्धारित की है। 

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