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यूएन पॉपुलेशन रिपोर्टः भारत इस साल आबादी में चीन को पीछे छोड़ देगा

यूएन पॉपुलेशन रिपोर्टः भारत इस साल आबादी में चीन को पीछे छोड़ देगा

संयुक्त राष्ट्र ने आज बुधवार को अपनी आबादी रिपोर्ट जारी कर दी है। जिसमें सबसे दिलचस्प जानकारी यही है कि भारत इस साल आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। भारत की आबादी इस समय 142.8 करोड़ है। जिसमें पिछले साल के मुकाबले 1.56 बढ़ोतरी हुई है। पढ़िए पूरी रिपोर्टः

संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को आबादी के आंकड़े जारी किए। यूएन पॉपुलेशन रिपोर्ट (UN Population Report) से बता रही है कि भारत इस साल के मध्य में लगभग 3 मिलियन अधिक लोगों के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने की राह पर है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के "स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट, 2023" के डेटा का अनुमान है कि चीन की 1.4257 बिलियन की तुलना में भारत की जनसंख्या 1,428.6 मिलियन या 1.4286 बिलियन है। 

जनसंख्या विशेषज्ञों ने संयुक्त राष्ट्र के पिछले आंकड़ों के हिसाब से अनुमान लगाया है कि भारत इस महीने चीन को पीछे छोड़ देगा। लेकिन यूएन की इस नई रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि यह बदलाव कब होगा।

बहरहाल, 340 मिलियन की अनुमानित आबादी के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका का नंबर तीसरा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि डेटा फरवरी 2023 तक उपलब्ध जानकारी के आधार पर है।   

भारत में 68 फीसदी लोग कामकाजी

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक पिछले साल भारत की जनसंख्या में 1.56 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और इसके 1,428,600,000 मिलियन (142.86 करोड़) होने का अनुमान है, और इसकी आबादी के दो-तिहाई से अधिक या 68 फीसदी में 15 से 64 वर्ष के बीच के लोग शामिल हैं, जिन्हें कामकाजी माना जाता है।

भारत में बस दो बच्चे और 71-74 साल की जिन्दगी

नवीनतम रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि भारत की कुल प्रजनन दर 2.0 है। यानी भारत में एक महिला 2 बच्चे पैदा कर रही है। एक भारतीय पुरुष के लिए औसत जीवन 71 साल और महिलाओं के लिए 74 साल है।

कुछ खास बातें

  • आठ देशों- भारत, ब्राजील, मिस्र, फ्रांस, हंगरी, जापान, नाइजीरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के 7,797 लोगों से जनसंख्या के मुद्दों पर उनके विचार ऑनलाइन पूछे गए थे। भारत से 1,007 का सर्वेक्षण ऑनलाइन किया गया था।
  • जनसंख्या से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण मामलों की पहचान करने पर, 63 प्रतिशत भारतीयों ने जनसंख्या परिवर्तन के बारे में सोचते समय विभिन्न आर्थिक मुद्दों को शीर्ष चिंता के रूप में पहचाना। इसके बाद पर्यावरण संबंधी चिंताएं 46 प्रतिशत और यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों और मानवाधिकारों की चिंताएं 30 प्रतिशत थीं।
  •  भारत में उत्तरदाताओं की राय थी कि उनके देश में जनसंख्या बहुत अधिक है और प्रजनन दर बहुत अधिक है। राष्ट्रीय प्रजनन दर पर भारत में पुरुषों और महिलाओं के विचारों में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था।

निष्कर्षः भारतीय सर्वेक्षण के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि जनसंख्या की चिंता आम जनता के बड़े हिस्से में फैल गई है। यानी आम जनता भी मान रही है कि भारत में आबादी बढ़ रही है।

भारत महिलाओं को मौके दे

यूएनएफपीए इंडिया के प्रतिनिधि और भूटान के कंट्री डायरेक्टर एंड्रिया वोजनार ने रिपोर्ट पर कहा- चूंकि दुनिया 8 अरब लोगों तक पहुंचने वाली है, हम यूएनएफपीए में भारत के 1.4 अरब लोगों को 1.4 अरब अवसरों के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि भारत की कहानी काफी पावरफुल है। इसने शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, आर्थिक विकास के साथ-साथ तकनीक में प्रगति की है। सबसे बड़े युवा समूह वाले देश के रूप में - इसके 254 मिलियन युवा (15-24 वर्ष) नई सोच और स्थायी समाधान के स्रोत हो सकते हैं। अगर महिलाओं और लड़कियों को विशेष रूप से समान शैक्षिक और कौशल-निर्माण के अवसर दिए जाएं तो तरक्की की रफ्तार और तेज हो सकती है। महिलाओं को प्रजनन अधिकारों और विकल्पों का पूरी तरह से इस्तेमाल करने के लिए उन्हें सूचना और पावर से लैस किया जाए तो इसमें तेजी आएगी।

बाकी दुनिया की स्थिति

इंडियन एक्सप्रेस ने यूएन पॉपुलेशन रिपोर्ट के हवाले से कहा कि 68 देशों में 44 फीसदी भागीदार महिलाओं और लड़कियों को यौन संबंध बनाने, गर्भनिरोधक का उपयोग करने और स्वास्थ्य देखभाल की मांग करने पर अपने शरीर के बारे में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। यह बताता है कि दुनिया भर में अनुमानित 257 मिलियन महिलाओं को सुरक्षित, विश्वसनीय गर्भनिरोधक की आवश्यकता है।

दुनिया करे सवाल

UNFPA की कार्यकारी निदेशक, डॉ. नतालिया कानेम ने एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि दुनिया गलत सवाल पूछ रही है: क्या दुनिया में बहुत सारे लोग हैं? क्या दुनिया में बहुत कम लोग हैं? क्या जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है या बहुत धीमी है? उन्होंने कहा- जो सवाल पूछा जाना चाहिए वह यह नहीं है कि लोग कितनी तेजी से बच्चे पैदा कर रहे हैं, लेकिन क्या सभी व्यक्ति और कपल अपने बुनियादी मानव अधिकार का इस्तेमाल करने में सक्षम हैं कि वे कितने बच्चों को चुनना चाहते हैं। कनीम ने कहा कि इस सवाल का जवाब नहीं है।

रिपोर्ट बताती है कि जनसंख्या संबंधी चिंताएँ बड़ी हैं और तमाम सरकारें प्रजनन दर को बढ़ाने, कम करने या बनाए रखने के मकसद से नीतियों को तेजी से अपना रही हैं। कानेम ने कहा कि प्रजनन दर को प्रभावित करने के प्रयास अक्सर अप्रभावी होते हैं और महिलाओं के अधिकारों को खत्म कर सकते हैं। महिलाओं के शरीर को जनसंख्या लक्ष्य के लिए बंधक नहीं बनाया जाना चाहिए।

महिलाएं तय करें कितने बच्चे पैदा करेंगी

कानेम ने नेताओं और मीडिया से जनसंख्या में उछाल और गिरावट के बारे में बेतुकी बातों को छोड़ने का आग्रह किया गया है। कानेम ने कहा, लोग कितनी तेजी से बच्चे पैदा कर रहे हैं, यह पूछने के बजाय, नेताओं को यह पूछना चाहिए कि क्या व्यक्ति, विशेष रूप से महिलाएं स्वतंत्र रूप से अपने प्रजनन विकल्प तय करने में सक्षम हैं। फिलहाल तो उन्हें बच्चे पैदा करने के बारे में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।

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