नागरिकता क़ानून मूल रूप से भेदभावपूर्ण, संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने कहा
सरकार भले ही कहे कि नागरिकता संशोधन अधिनियम पर चल रहे आन्दोलन के पीछे कांग्रेस का हाथ है, पर इसकी चौतरफा आलोचना हो रही है। अमेरिका के बाद अब संयुक्त राष्ट्र ने भी इस पर अपनी असहमति जताई है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार से जुड़े संगठन ने इस अधिनियम को भेदभाव करने वाला बताते हुए इस पर चिंता जताई है।
यूएन ह्यूमन राइट्स ने ट्वीट कर कहा है, ‘हमें इस बात पर चिंता है कि नागरिकता संशोधन क़ानून मूल रूप से अपने चरित्र से ही भेदभाव करने वाला है। उत्पीड़ित समूहों को सुरक्षा देने के लक्ष्य का हम स्वागत करते हैं, पर इस नए क़ानून में मुसलमानोें को शामिल नहीं किया गया है।’
#India: We are concerned that the new #CitizenshipAmendmentAct is fundamentally discriminatory in nature. Goal of protecting persecuted groups is welcomed, but new law does not extend protection to Muslims, incl. minority sects: https://t.co/ziCNTWvxc2#FightRacism #CABProtests pic.twitter.com/apWbEqpDOZ
— UN Human Rights (@UNHumanRights) December 13, 2019
क्या है इस क़ानून में?
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019, में यह प्रावधान है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014, तक भारत आए हुए हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदायों के लोगों को नागरिकता दी जा सकती है। इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। सरकार का तर्क है कि इन देशों में इन धार्मिक समुदायों के लोगों का उत्पीड़न होता है, इसलिए मानवता के आधार पर उन्हें नागरिकता दी जाएगी। लेकिन ये मुसलिम बहुल राज्य हैं, लिहाज़ा यहाँ मुसलमानों के उत्पीड़न का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए मुसलमानों को इस अधिनियम में शामिल नहीं किया गया है।संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी ने शुक्रवार को एक बयान जारी कर कहा :
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ऐसा लगता है कि संशोधित क़ानून भारत के संविधान में क़ानून की नज़र में सबको बराबरी का हक़ देने की प्रतिबद्धता को कमज़ोर करता है। यह नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय समझौते और नस्लीय भेदभाव को ख़त्म करने के लिए हुए समझौते का उल्लंघन है। भारत इन क़रारों का सदस्य देश है। हालाँकि नागरिकता देने से जुड़ा भारत का क़ानून अपनी जगह कायम है, पर लोगों को राष्ट्रीयता हासिल करने के मामले में इस संशोधन से भेदभाव होगा।
यूएन ह्यूमन राइट्स के बयान का अंश
संयुक्त राष्ट्र के इस बयान के एक दिन पहले ही अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भारत के इस नए क़ानून पर चिंता जताते हुए नसीहत दी थी कि नई दिल्ली अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा करे।
पूरे पूर्वोत्तर समेत देश के कई हिस्सोें में इस अधिनियम के ख़िलाफ़ लोग सड़कों पर उतर आए हैं। भारी तादाद में सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं, पर कई जगहों पर हिंसक वारदात हो रही हैं। अब तक इस तरह की हिंसक घटनाओं में असम में दो लोगों की मौत हो चुकी है।