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बुलेट ट्रेन पर महाराष्ट्र सरकार का ब्रेक? किसानों की क़र्ज़ माफ़ी प्राथमिकता!

बुलेट ट्रेन पर महाराष्ट्र सरकार का ब्रेक? किसानों की क़र्ज़ माफ़ी प्राथमिकता!

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बुलेट ट्रेन की महत्वाकांक्षी परियोजना पर ब्रेक लग गया है? सत्ता परिवर्तन के बाद महाराष्ट्र सरकार क्यों पीछे हटती दिख रही है?

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बुलेट ट्रेन की महत्वाकांक्षी परियोजना पर ब्रेक लग गया है 2022 में पूरी होने के लिए प्रस्तावित यह रेल परियोजना अब तक ज़मीन अधिग्रहण विवाद को लेकर ही अटकी थी लेकिन अब महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन इसके मार्ग में नयी बाधा बनता दिख रहा है। महाराष्ट्र में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद यह कयास ज़ोरों से लगने शुरू हो गए थे, लेकिन अब इस मुद्दे पर राज्य सरकार ने अपना आधिकारिक रुख़ ज़ाहिर कर दिया है। नव निर्वाचित मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने साफ़ कर दिया है कि वे विकास कार्यों का विरोध नहीं कर रहे लेकिन विकास कार्यों की प्राथमिकता तय करनी होगी। साथ ही उन्होंने कहा कि मुंबई और प्रदेश में क्या-क्या विकास कार्य शुरू हैं तथा उन पर कितना पैसा ख़र्च किया जा चुका है और कितना किया जाना है इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के बाद उस पर विचार होगा। 

सरकार प्रदेश की आर्थिक स्थिति, जिस पर क़रीब साढ़े चार लाख करोड़ का क़र्ज़ चढ़ चुका है, पर श्वेत पत्र लाने की तैयारी में है। प्रदेश पर बढ़ते क़र्ज़ का मुद्दा कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के दौरान जमकर उठाया था लिहाज़ा इसे न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शामिल किया गया।

बता दें कि इस सरकार के गठन से पूर्व जब शिवसेना-कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच न्यूनतम साझा कार्यक्रम बन रहा था उस समय भी बुलेट ट्रेन का मुद्दा उठा था। उस समय सर्वसम्मति यह बनी थी कि प्राथमिकता किसानों की क़र्ज़ माफ़ी है न कि बुलेट ट्रेन। बुलेट ट्रेन को लेकर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस ही नहीं शिवसेना भी शुरू से ही मुखर विरोध करती रही है। शिवसेना हर बार यह तर्क देती रही है कि इस ट्रेन से महाराष्ट्र के मराठी लोगों का कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। यह सिर्फ़ गुजरात के सूरत और अहमदाबाद के व्यापारियों को बेहतर सुविधा के हिसाब से बनायी जा रही है। 

शिवसेना इसको मुंबई के व्यापार व व्यवसाय में गुजराती व्यापारियों के दखल को बढ़ावा देने के नज़रिये से भी देखती है। एक और तर्क वे देते हैं कि 500 किलोमीटर से भी लम्बे इस रेल प्रोजेक्ट में सूरत, भरूच और अहमदाबाद ये तीनों रेलवे स्टेशन भी गुजरात में पड़ते हैं। यदि यह रेल मार्ग पुणे तक ले जाया गया तो लोनावला और पुणे दो स्टेशन ही महाराष्ट्र में आएँगे। ऐसे में शिवसेना का यह तर्क है कि जब बुलेट ट्रेन का अधिकतम फ़ायदा गुजरात को मिलने वाला है तो उसका भार महाराष्ट्र पर नहीं पड़ना चाहिए। वैसे जब से बुलेट ट्रेन की घोषणा हुई है यह विवादों में ही रही है।

बार-बार इस बारे में सवाल उठाए जाते रहे हैं कि केंद्र सरकार देश के रेल नेटवर्क को सुधारने की बजाय क्यों एक ऐसी रेल शुरू करने जा रही है जो रेलवे की वर्तमान स्थिति को देखते हुए व्यावहारिक नहीं है

पिछले साल इस परियोजना की फ़ंडिंग करने वाली जापानी कंपनी ‘जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी’ (जीका) ने बुलेट ट्रेन नेटवर्क के लिए फ़ंडिंग को रोक दिया था। फ़ंडिंग रोकने को लेकर जापान की कंपनी ने कहा कि सरकार पहले परियोजना को लेकर होने वाले भूमि अधिग्रहण विवाद को सुलझाए। बता दें कि एक लाख करोड़ रुपये की लागत वाली बुलेट ट्रेन योजना के निर्माण में गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों से ज़मीन अधिग्रहण का मामला विवादों में पड़ा हुआ है। इस विवाद को देखते हुए केंद्र सरकार ने एक स्पेशल कमेटी का गठन किया है।

किसानों का विरोध

मुआवज़े के अलावा दोनों राज्यों में किसानों ने ज़मीन देने के लिए शर्त रखी है कि सरकार इन इलाक़ों में सामान्य सुविधाओं के साथ-साथ साझा तालाब, स्कूल, सोलर लाइट समेत गाँव स्तर पर हॉस्पिटल और डॉक्टर की व्यवस्था भी सुनिश्चित करे। गुजरात में भी सरकार को लगभग हज़ारों हेक्टेयर ज़मीन का अधिग्रहण करना है। इस परियोजना से आठ ज़िलों में फैले 5000 किसान परिवारों की ज़मीन अधिग्रहित की जानी है। यह ट्रेन गुजरात के 195 और महाराष्ट्र के 104 गाँवों से गुज़रेगी। इसके लिए नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन (एनएचएसआरसीएल) के पास भूमि अधिग्रहण का ज़िम्मा है। उसे 10 हज़ार करोड़ की लागत से ज़मीन ख़रीदना है। समस्या यह है कि कंपनी को किसानों और आदिवासियों के विरोध को झेलना पड़ रहा है। 508 किलोमीटर की बुलेट ट्रेन परियोजना में लगभग 110 किलोमीटर का सफर महाराष्ट्र के पालघर ज़िले से गुजरता है और केंद्र सरकार को यहाँ के किसानों से ज़मीन लेने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

कई और अड़चनें

एनएचएसआरसीएल को दिसंबर 2018 तक भूमि अधिग्रहण का काम पूरा करना था लेकिन अब तक मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में केवल 0.9 हेक्टेयर भूमि को ही सौंपा गया है। इस सम्बन्ध में गोदरेज समूह भी अपनी ज़मीन के अधिग्रहण को बचाने के लिए अदालती लड़ाई लड़ रहा है। महाराष्ट्र और गुजरात में अलग-अलग क़ानूनों के कारण एनएचएसआरसीएल ने दोनों राज्यों में मुआवज़े की अलग व्यवस्था अपनाई है और इसी को लेकर विवाद भी खड़ा है। हालाँकि गुजरात उच्च न्यायालय ने अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली किसानों की 120 से अधिक याचिकाओं को खारिज कर दिया है लेकिन ये किसान अब मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जा रहे हैं।

यह मामला पूरा अटका हुआ है ज़मीन के अधिग्रहण को लेकर मुआवज़ा राशि पर। किसान यह तर्क दे रहे हैं कि परियोजना केंद्र की है और एक से अधिक प्रदेश में उसका विस्तार है तो मुआवज़ा केंद्र के क़ानून के तहत होना चाहिए।

बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट जहाँ केंद्र सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है वहीं इसकी फ़ंडिंग करने वाली जापानी एजेंसी ने अभी तक महज़ 125 करोड़ रुपये जारी किए हैं। भारत और जापान के बीच हुए समझौते के मुताबिक़ इस प्रोजेक्ट को 2022 तक पूरा करने के लिए क़रार हुआ है। इस परियोजना की लागत का अनुमान 1.08 लाख करोड़ रुपये (17 अरब अमेरिकी डॉलर) है। लागत में आयात शुल्क और निर्माण के दौरान ब्याज शामिल है। जेआईसीए ने 0.1% की ब्याज दर पर 50-वर्षीय ऋण के माध्यम से कुल परियोजना लागत का 81% निधि रुपये 79,087 करोड़ देने पर सहमति जताई है। भारतीय रेलवे हाई स्पीड रेल परियोजना में 9,800 करोड़ रुपये (1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) निवेश करेगा और बाक़ी लागत महाराष्ट्र और गुजरात की राज्य सरकारों द्वारा वहन की जाएगी। भूमि अधिग्रहण से बचने के लिए और अंडरपास के निर्माण की आवश्यकता के कारण अधिकतर लाइन का निर्माण एक ऊँची कॉरिडोर पर किया जाएगा। ऊँची लाइन बनाने के फ़ैसले ने परियोजना के लिए अतिरिक्त 10,000 करोड़ (1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक की लागत बढ़ा दी है।

अब सवाल यही खड़ा हो रहा है कि महाराष्ट्र सरकार पहले प्रदेश के किसानों को बेमौसम बारिश की वजह से होने वाले नुक़सान और किसानों की क़र्ज़ माफ़ी का निर्णय करेगी या बुलेट ट्रेन का। सरकार ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि वह पहले किसानों का एक मुश्त क़र्ज़ माफ़ करेगी और बेमौसम बारिश से हुए नुक़सान की भी शीघ्र भरपाई करेगी। एक अनुमान के अनुसार यह राशि क़रीब 25 हज़ार करोड़ से भी ज़्यादा होगी। ऐसे में यह निश्चित है कि राज्य सरकार बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट में अपनी हिस्सेदारी के प्रस्ताव को इतनी जल्दी स्वीकृति नहीं देने वाली है।

प्रदेश के ऊपर बढ़ते क़र्ज़ की चुनौती से निपटना भी उसकी प्राथमिकता में है। ऐसे में केंद्र-राज्य विवाद का नया अध्याय भी शुरू होने की आशंका है।

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