क्या शिवसेना को ख़त्म करने की कोशिश; मिटेगी या वापसी करेगी?
ईडी द्वारा गिरफ़्तारी के बाद अदालत कक्ष के अंदर ले जाने से पहले संजय राउत ने मीडिया से कहा, 'यह हमें (पार्टी को) ख़त्म करने की साजिश है।' उद्धव ठाकरे ने भी कहा है कि यह कार्रवाई हमें बर्बाद करने की साज़िश है। उन्होंने कहा, 'जो भी हमारे खिलाफ बोलता है उसका हमें सफाया करना होगा, ऐसी मानसिकता के साथ प्रतिशोध की राजनीति चल रही है।' तो क्या सच में शिवसेना को मिटा देने की कोशिश है और वह इस स्थिति में पहुँच जाएगी?
एकनाथ शिंदे खेमे के साथ अधिकतर विधायक और सांसद चले गए हैं। यानी उद्धव के सामने जमीनी स्तर पर काडर की बड़ी चुनौती है। पार्टी के तौर पर शिवसेना पर उद्धव का एकाधिकार रहेगा या नहीं, यह भी साफ़ नहीं है। उद्धव के दाहिना हाथ कहे जाने वाले संजय राउत को गिरफ़्तार कर लिया गया है। राउत के परिवार के सदस्य व क़रीबी मुक़दमे में फँसे हुए हैं। खुद उद्धव ठाकरे के रिश्तेदार और उनके दूसरे क़रीबी भी कई मामलों का सामना कर रहे हैं और संभव है कि उनके ख़िलाफ़ भी ऐसी कार्रवाई की जाए। तो सवाल है कि पार्टी को कौन संभालेगा या आगे बढ़ाएगा? वे अपने लोगों को जेल से बाहर निकालेंगे, मुक़दमे लड़ेंगे या राजनीति करेंगे? क्या अब उद्धव की शिवसेना के सामने अस्तित्व की लड़ाई है?
अब कुछ हफ़्तों पहले तक जो ठाकरे परिवार पूरे महाराष्ट्र पर राज करता था, जो शक्तिशाली बीजेपी से दो-दो हाथ को तैयार था वह आख़िर ऐसी स्थिति में कैसे पहुँच गया?
शिवसेना के क़रीब ढाई साल पहले कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के साथ ही आरोप लगने शुरू हो गए थे कि केंद्रीय एजेंसियों के सहारे उनकी सरकार को गिराने का प्रयास किया जा रहा है। जब केंद्रीय एजेंसियों ने संजय राउत, उनके परिवार और फिर उद्धव ठाकरे के परिवार के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू की तो ये आरोप और जोर शोर से लगने शुरू हो गए। लेकिन इसी बीच एकनाथ शिंदे के साथ कई विधायक जब बीजेपी शासित गुजरात चले गए और वे उद्धव की पहुँच से दूर हो गए तो शिवसेना में बड़े संकट के ख़तरे की घंटी बज गई। उद्धव खेमे से ऐसे आरोप लगाए जाने लगे कि केंद्रीय एजेंसियों से डरा-धमकाकर व खरीद-फरोख्त कर विधायकों को पहले गुजरात और फिर असम के होटल में रखा गया।
बागी शिंदे खेमे ने अब महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली है। उद्धव के सामने अब चुनौती शिवसेना को पार्टी के रूप में अपने पाले में बचाए रखने की आ गई है।
उनकी पार्टी के ही बाग़ी एकनाथ शिंदे के साथ अधिकतर विधायक चले गए हैं। अधिकतर सांसद भी शिंदे खेमे के साथ हैं। पार्टी पर एकाधिकार का मामला कोर्ट में लंबित है। राउत जेल में हैं। खुद उद्धव ठाकरे के रिश्तेदार और क़रीबी कई मामलों में फँसे हैं।
इसी साल अप्रैल में ईडी ने जांच के तौर पर ही संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत और उनके दो सहयोगियों की 11.15 करोड़ से अधिक की संपत्ति अटैच की थी। उन संपत्तियों में वर्षा राउत के दादर में एक फ्लैट और अलीबाग में किहिम समुद्र तट पर आठ भूखंड शामिल हैं, जो संयुक्त रूप से वर्षा राउत और संजय राउत के करीबी सहयोगी सुजीत पाटकर की पत्नी स्वप्ना पाटकर के पास हैं।
एजेंसी संजय राउत से प्रवीण राउत और पाटकर के साथ उनके 'व्यापार व अन्य संबंधों' के बारे में और उनकी पत्नी से जुड़े संपत्ति सौदों के बारे में जानना चाहती है। फरवरी में प्रवीण राउत को गिरफ्तार करने के बाद ईडी ने कहा था कि वह किसी प्रभावशाली व्यक्ति (व्यक्तियों) के साथ मिलीभगत में काम कर रहे हैं।
प्रवीण राउत को गोरेगांव क्षेत्र में पात्र चॉल के पुनर्विकास से संबंधित 1,034 करोड़ रुपये के कथित भूमि घोटाले से जुड़ी जांच में गिरफ्तार किया गया था। वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं।
संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत पीएमसी मनी लॉउंड्रिंग मामले में भी आरोपी बनाई गई हैं और ईडी उनसे पूछताछ कर चुकी है। तभी राउत ने कहा था कि उद्धव ठाकरे की नेतृत्व वाली सरकार को अस्थिर करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
इतना ही नहीं, ईडी के निशाने पर उद्धव ठाकरे के क़रीबी भी आए थे। ईडी ने मार्च महीने में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बहनोई की 6.45 करोड़ की प्रॉपर्टी फ्रीज कर दी। उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया गया। इससे दो हफ़्ते पहले ही आयकर विभाग ने उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे, एक मंत्री और सहयोगी अनिल परब से जुड़े ठिकानों पर कई छापे मारे थे।
अब ऐसी कार्रवाइयों के बाद से उद्धव खेमा लगातार यह बताने की कोशिश कर रहा है कि बदले की राजनीति से उनको निशाना बनाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर कुछ हद तक मराठी मानुस में यही संदेश जाता भी दिख रहा है। टिप्पणियों में यह भी देखा जा सकता है कि कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या शिंदे को स्थापित करने के लिए यह सब किया जा रहा है और क्या इसके लिए राउत को जेल भेजना ज़रूरी था? सवाल है कि उद्धव की शिवसेना इस संकट से पार पाएगी या फिर ये घटनाक्रम कहीं उद्धव खेमे के लिए जान फूँगने वाले न साबित हो जाएँ?