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यूसीसी पर एनडीए में मतभेद उभरे, मेघालय के सीएम का खुला विरोध

यूसीसी पर एनडीए में मतभेद उभरे, मेघालय के सीएम का खुला विरोध

देश में प्रस्तावित यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) का विरोध और समर्थन जारी है। सत्तारूढ़ भाजपा के सहयोगी दलों में इस पर एकराय नहीं है। भाजपा समेत ये सभी दल एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं। मेघालय के सीएम कोनराड संगमा ने यूसीसी का खुलकर विरोध कर दिया है। 

पीएम मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की जोरदार वकालत तो कर दी है लेकिन खुद भाजपा के सहयोगी दलों में भी इस पर गंभीर मतभेद है। एनडीए में भाजपा और कई दल पार्टनर हैं। लेकिन कुछ की राय भाजपा और पीएम मोदी से बिल्कुल अलग है। इस असहमति से लगता है कि भाजपा को इस कानून को लागू करने में कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा। अन्यथा इस पर बहस छेड़ने से पहले यूसीसी का ड्राफ्ट पेश किया जाता ताकि सभी को पता लग जाता कि केंद्र सरकार किस तरह का बदलाव चाहती है। एनडीए के सदस्य और भाजपा के सहयोगी दल मेघालय की नेशनल पीपुल्स पार्टी ने इसका पुरजोर विरोध किया है। मेघालय में भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी सत्ता में हैं।

मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के संगमा ने यूसीसी को भारत के विचार (आइडिया ऑफ इंडिया) के खिलाफ बताया है। नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) प्रमुख संगमा ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि विविधता भारत की ताकत है और उनकी पार्टी को लगता है कि यूसीसी अपने मौजूदा स्वरूप में इस विचार के खिलाफ है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड या यूसीसी सभी नागरिकों के विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने के लिए पूरे देश में एक कानून की सिफारिश करता है।  

मेघालय के मुख्यमंत्री संगमा ने कहा- 

पूर्वोत्तर (नॉर्थ ईस्ट) को एक अनूठी संस्कृति और समाज मिला है और वह ऐसा ही रहना चाहेगा। यह देखते हुए कि मेघालय में मातृसत्तात्मक समाज है और पूर्वोत्तर में विभिन्न संस्कृतियाँ हैं। इन्हें बदला नहीं जा सकता।


-कोनराड संगमा, मुख्यमंत्री मेघालय और एनपीपी प्रमुख, 30 जून 2023 सोर्सः प्रेस कॉन्फ्रेंस

हालाँकि, एनपीपी प्रमुख ने यह भी कहा कि यूसीसी ड्राफ्ट को देखे बिना विवरण में जाना मुश्किल है। क्योंकि इसका ड्राफ्ट अभी तक सामने नहीं आया है। इसलिए क्या बदलाव होंगे, कोई नहीं जानता है। उन्होंने कहा, "एनपीपी को लगता है कि यूसीसी भारत के एक विविध राष्ट्र होने के विचार के खिलाफ है। भारत की विविधता हमारी ताकत और पहचान है।"   

इस बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता और कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति के प्रमुख सुशील मोदी ने शुक्रवार को कहा था कि पैनल 3 जुलाई यानी सोमवार को अपनी बैठक में यूसीसी के मुद्दे पर सभी स्टेकहोल्डर के विचार मांगेगा। समिति की बैठक गैर-राजनीतिक है क्योंकि पैनल में सभी राजनीतिक दलों के सदस्य हैं।

बता दें कि भोपाल में एक रैली में यूसीसी के लिए प्रधानमंत्री की ताजा वकालत की विपक्षी दलों ने आलोचना की है। विपक्ष का कहना है कि इसके पीछे पीएम मोदी और भाजपा की "ध्रुवीकरण" की रणनीति है। 

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने कहा कि उनकी पार्टी सरकार द्वारा कुछ चीजें स्पष्ट करने के बाद यूसीसी पर अपना रुख तय करेगी। एनसीपी प्रमुख ने कहा कि सिखों, जैनियों और ईसाइयों के रुख का पता लगाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें पता चला है कि सिख समुदाय का एक अलग नजरिया है। पवार ने कहा, "वे यूसीसी का समर्थन करने के मूड में नहीं हैं... इसलिए सिख समुदाय की राय के बिना यूसीसी पर निर्णय लेना उचित नहीं होगा।"

उधर, आम आदमी पार्टी (AAP) ने यूसीसी को अपना "सैद्धांतिक" समर्थन दिया है। इस पर शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी पर पंजाबियों को "गुमराह" करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए अपना रुख स्पष्ट करने को कहा। अकाली दल ने कहा कि यूसीसी संवेदनशील मुद्दा है। अकाली नेता चीमा ने कहा कि यह आप का "सरासर पाखंड" है। यह स्पष्ट है कि आप आलाकमान ने अपने पंजाब के मुख्यमंत्री या पंजाब यूनिट से पूछे बिना यूसीसी का समर्थन करने का निर्णय लिया है। आप ने सिख समुदाय को विश्वास में नहीं लिया।

इस बीच, महाराष्ट्र कांग्रेस ने प्रस्तावित यूसीसी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बालचंद्र मुंगेकर के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया है। राज्य इकाई के प्रमुख नाना पटोले द्वारा गठित नौ सदस्यीय समिति में पत्रकार और राज्यसभा सदस्य कुमार केतकर, वरिष्ठ नेता वसंत पुरके, हुसैन दलवई, अनीस अहमद, किशोरी गजभिये, अमरजीत मन्हास, जेनेट डिसूजा और रवि जाधव भी शामिल होंगे।  

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि यूसीसी भाजपा के "चुनावी एजेंडे" में है। केरल के मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया, "समान नागरिक संहिता के इर्द-गिर्द बहस छेड़ना सांप्रदायिक विभाजन को गहरा करने के लिए अपने बहुसंख्यकवादी एजेंडे पर दबाव डालने के लिए संघ परिवार की एक चुनावी चाल है। आइए भारत के बहुलवाद को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का विरोध करें और समुदायों के भीतर लोकतांत्रिक चर्चाओं के माध्यम से सुधारों का समर्थन करें।"

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