आख़िर क्यों ट्रंप चुनाव के पहले चाहते हैं एक कंज़रवेटिव जज की नियुक्ति?
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट की जानी मानी जज रूथ बाडेर गिन्सबर्ग के निधन के बाद उनकी सीट पर नए जस्टिस की नियुक्ति को लेकर गहमागहमी जारी है। चूँकि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं इसलिए न्यायाधीशों की नियुक्ति को हमेशा से एक राजनीतिक क़दम के रूप में देखा जाता रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में अब तक दो न्यायाधीश नियुक्त हो चुके हैं जिनमें से एक न्यायाधीश ब्रेट कावाना (Brett Kavanaugh) की नियुक्ति पर डेमोक्रेटिक पार्टी ने कड़ी आपत्ति जताई थी क्योंकि उनके ख़िलाफ़ यौन शोषण के आरोप सामने आए थे।
अब रूथ बाडेर के निधन के बाद एक और सीट खाली हुई है। राष्ट्रपति ट्रंप चाहते हैं कि चुनाव से पहले ही इस सीट के लिए वह न्यायाधीश नियुक्त कर दें। अगर ऐसा हुआ तो वह रोनाल्ड रीगन के बाद पहले राष्ट्रपति होंगे जो तीन न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे। साथ ही अगर ऐसा हुआ तो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों में कंज़रवेटिव न्यायाधीशों का 6-3 से भारी बहुमत हो जाएगा।
चूँकि अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति जीवन भर के लिए होती है इसलिए ये नियुक्तियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। अगले कुछ समय में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र भी सुप्रीम कोर्ट में अगले न्यायाधीश की नियुक्ति का मसला पेचीदा हो चुका है।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने पिछले दिनों चुनावों के बाद सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण पर सहमति जताने की बजाय कहा कि वह देखेंगे क्या होता है। इसके बाद जज की नियुक्ति को लेकर तलवारें खींच चुकी हैं। विश्लेषकों का मानना है कि चुनावों में अगर ट्रंप हारते हैं तो यह मामला 2000 के चुनावों की तरह ही कोर्ट में जा सकता है और मामला आगे बढ़ा तो सुप्रीम कोर्ट तक। अगर यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया तो ज़ाहिर है कि ट्रंप चाहेंगे कि वहाँ रिपब्लिकन मूल्यों को मानने वाले या उनके समर्थक जज बहुमत में हों।
राष्ट्रपति चुनावों के परिणामों को कोर्ट में घसीटे जाने को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी इतनी चिंतित है कि उसने अभी से ही वकीलों की एक टीम तैयार कर ली है जो उन संभावनाओं पर काम कर रही है जिसमें चुनावी परिणाम कोर्ट में ले जाए जा सकते हैं। कहा जाता है कि वर्ष 2000 में चुनावों के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस मामले में परंपरा का निर्वाह किया था और सत्ता रिपब्लिकन्स को सौंपी थी जबकि रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज बुश और उनकी टीम ने वकीलों की पूरी फौज तैयार कर ली थी और हार मानने को तैयार नहीं थे।
इस बार ट्रंप स्पष्ट कह चुके हैं कि वो हार नहीं सकते। यहाँ तक कि ट्रंप ने बार-बार कहा है कि पोस्टल बैलेट में फ्रॉड हो सकता है। ज़ाहिर है कि कोरोना के कारण लाखों की संख्या में अमेरिकी जनता घरों से निकलना नहीं चाह रही है और पोस्टल बैलेट के ज़रिए वोट देने वाली है।
सर्वेक्षणों में यह बात बहुत स्पष्ट रूप से सामने आ रही है कि अगर पोस्टल बैलेट की संख्या बढ़ी तो उसका लाभ डेमोक्रेटिक पार्टी को होगा। इसी कारण ट्रंप ने पोस्टल विभाग का बजट काट दिया था जिसे कांग्रेस के हस्तक्षेप के बाद बढ़ाया गया।
ट्रंप की चुनावी रणनीति पर देखिए मुकेश कुमार की विशेष रिपोर्ट...
रूथ बाडेर के निधन के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने तुरंत ट्वीट कर के भी अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी थी कि वो जल्दी ही नया न्यायाधीश नियुक्त कर देंगे। हालाँकि इसके लिए समय बहुत अधिक नहीं है पर राजनीति में जैसा कहते हैं कि सबकुछ जायज़ है तो परंपराओं को तोड़ कर भी तुरत-फुरत में नया न्यायाधीश नियुक्त होने की पूरी संभावनाएँ हैं।
कौन हैं एमी कोनी बैरेट
ट्रंप ने नए न्यायाधीश के तौर पर एमी कोनी बैरेट (Amy Coney Barrett) को चुना है और उनकी नियुक्ति के लिए सुनवाई बारह अक्टूबर से शुरू होगी। एमी इस समय फ़ेडरल अपील कोर्ट में जज हैं। एमी कोनी बैरेट कंज़रवेटिव राजनेताओं की पसंदीदा रही हैं और उनके विचार बेहद कंज़रवेटिव रहे हैं। निचले कोर्ट में उनकी नियुक्ति के दौरान दिए अपने भाषण में एमी कह चुकी हैं कि वो भगवान की सत्ता में यक़ीन रखती हैं और मानती हैं कि क़ानून भगवान की सत्ता को स्थापित करने का एक माध्यम मात्र हैं। समलैंगिकता के मसले पर एमी के विचार विवादित रहे हैं क्योंकि वह मानती हैं कि विवाह सिर्फ़ एक पुरुष और स्त्री के बीच ही हो सकता है। साथ ही अबॉर्शन और तमाम ऐसे क़ानून जिन पर कंज़रवेटिव और लिबरलों के बीच तनातनी रही है, एमी कंज़रवेटिव मूल्यों के साथ खड़ी रही हैं। वह एंटी अबॉर्शन की पक्षधर रही हैं यानी वह मानती हैं कि किसी भी महिला को अबॉर्शन कराने का अधिकार नहीं है।
सात बच्चों की माँ एमी हालाँकि शपथ लेकर कह चुकी हैं कि उनकी धार्मिक भावनाओं का प्रभाव उनके फ़ैसलों पर नहीं पड़ता है लेकिन आलोचक मानते हैं कि गन राइट्स, इमिग्रेशन और अबॉर्शन के मामले में निचली कोर्टों में लिए गए फ़ैसले एमी के कंज़रवेटिव विचारों की ताकीद करते हैं।
इतना ही नहीं, सीनेट में होने वाली सुनवाई के बाद अगर एमी सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हो जाती हैं तो फिर कई पुराने फ़ैसलों को भी पलटा जा सकता है जिसमें ग़रीबों को मेडिकल सेवाएँ देने के लिए बने ‘ओबामाकेयर’ क़ानून को पलटने की भी बात हो रही है। यह जगजाहिर है कि ट्रंप लगातार ओबामा के समय लिए गए महत्वपूर्ण फ़ैसलों को ख़त्म करने की कोशिश करते रहे हैं मानो वो ओबामा की विरासत को ही पूरी तरह मिटा देना चाहते हों। ऐसे में एक कंज़रवेटिव न्यायाधीश उनके लिए बेहद मददगार साबित हो सकती हैं।
बारह अक्टूबर से शुरू होने वाली सीनेट न्यायिक समिति की सुनवाई लंबी चली तो भी चुनावों से पहले पूरी हो जाएगी और पूरी संभावना है कि एमी की नियुक्ति हो जाए। ऐसे में चुनावों से पहले यह ट्रंप की छोटी सी जीत तो मानी ही जाएगी।