उत्तराखंड: मुख्यमंत्री पद के ये हैं चार बड़े दावेदार
आबादी के लिहाज से कम लेकिन राजनीतिक सक्रियता के लिहाज से काफी चुस्त रहने वाला राज्य उत्तराखंड एक बार फिर नेशनल मीडिया की सुर्खियां बटोर रहा है। कारण है मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का इस्तीफ़ा देना और इस पद के लिए नए दावेदारों की दौड़ तेज़ होना। 22 साल की लंबी लड़ाई के बाद बना पर्वतीय राज्य उत्तराखंड नेताओं के कुर्सी मोह के कारण हमेशा ही राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है। एनडी तिवारी को छोड़कर कोई दूसरा राजनेता वहां मुख्यमंत्री पद का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद चार नाम मीडिया के गलियारों में घूम रहे हैं। इनमें पहला नाम धन सिंह रावत दूसरा सतपाल महाराज, तीसरा अनिल बलूनी और चौथा अजय भट्ट का है। लेकिन उससे पहले जो ज़रूरी बात है, वह है जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों की।
जातीय-क्षेत्रीय समीकरणों का रखना होगा ध्यान
बीजेपी को जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए ही अगले मुख्यमंत्री का चुनाव करना होगा। राज्य में दो मंडल हैं- कुमाऊं और गढ़वाल और दो प्रमुख जातियां हैं- ब्राह्मण और राजपूत। मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर बीजेपी को इन जातियों और मंडलों के बीच संतुलन बनाना ही होगा, वरना अगले साल होने वाले चुनाव में उसे नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ब्राह्मण जाति से हैं और कुमाऊं मंडल से आते हैं तो त्रिवेंद्र सिंह रावत राजपूत हैं और गढ़वाल मंडल से आते हैं। अब तक यह संतुलन ठीक काम कर रहा था। इन समीकरणों के लिहाज से त्रिवेंद्र सिंह रावत के हटने के बाद उनकी जगह गढ़वाल मंडल के राजपूत जाति के किसी नेता को ही बैठाना होगा। इसमें दो नाम-धन सिंह रावत और सतपाल महाराज फिट बैठते हैं।
संघ के नज़दीकी धन सिंह रावत
धन सिंह रावत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विद्यार्थी परिषद की राजनीति से बीजेपी में आए हैं और उत्तराखंड बीजेपी के संगठन मंत्री रहे हैं। 2017 में पहला विधानसभा चुनाव जीतने वाले रावत राज्य सरकार में (स्वतंत्र प्रभार) सहकारिता, उच्च शिक्षा महकमे के मंत्री हैं। रावत के पक्ष में संघ का समर्थन है और उनकी उम्र भी 49 वर्ष ही है। ऐसे में किसी युवा चेहरे को आगे करने के लिहाज से इस पद के लिए वह फिट बैठते हैं।
आध्यात्मिक गुरू सतपाल महाराज
दूसरे दावेदार सतपाल महाराज भी जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के लिहाज से दावेदार हैं। सतपाल महाराज आध्यात्मिक गुरू हैं। एनडी तिवारी के कांग्रेस से बग़ावत कर तिवारी कांग्रेस बनाने पर वह उनके साथ चले गए थे और केंद्र में रेल राज्य मंत्री रह चुके हैं। हरीश रावत को नापसंद करने वाले महाराज 2013 में उत्तराखंड कांग्रेस में हुई बग़ावत के बाद बीजेपी के साथ चले गए थे। 2017 में बीजेपी ने उन्हें टिकट भी दिया और वह जीतकर विधायक और मंत्री भी बने।
सतपाल महाराज के पास सियासी अनुभव है और आध्यात्मिक गुरू होने के नाते फ़ॉलोवर्स भी हैं लेकिन उनके ख़िलाफ़ यही बात जाती है कि वह कुछ साल पहले ही बीजेपी में आए हैं और ऐसे में उन्हें तरजीह देने से बाक़ी नेता नाराज़ हो सकते हैं।
अनिल बलूनी की सियासी ख़्वाहिश
तीसरा नाम अनिल बलूनी का है। 50 साल के बलूनी उत्तराखंड से ही राज्यसभा के सांसद हैं और कहा जाता है कि उनकी सियासी ख़्वाहिश उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने की है। बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी होने के चलते बलूनी के केंद्र सरकार के मंत्रियों के साथ अच्छे संबंध हैं और इस दम पर उन्होंने राज्य में कई विकास कार्य कराए हैं। उनके समर्थक उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं।
बलूनी हैं तो गढ़वाल मंडल से लेकिन उनकी जाति ब्राह्मण है और उनको मुख्यमंत्री बनाने पर प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री का पद एक ही जाति के पास चला जाएगा। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष को भी हटाना होगा और चुनावी साल में दोनों पदों पर बदलाव करना ख़तरे से खाली नहीं होगा।
अजय भट्ट भी दौड़ में
चौथे दावेदार अजय भट्ट हैं जो कई सालों तक प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। इन दिनों नैनीताल-उधम सिंह नगर के सांसद हैं। सौम्य स्वभाव के भट्ट के साथ दो मुश्किल हैं कि वह कुमाऊं मंडल से भी हैं और ब्राह्मण भी हैं। ऐसे में उनकी संभावना थोड़ी कम हो जाती भी है। 2017 में प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए वह मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार थे लेकिन विधानसभा चुनाव हार गए थे।