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त्रिपुरा हिंसा: पुलिस के दबाव में आया ट्विटर!, अकाउंट और ट्वीट्स हटाए

त्रिपुरा हिंसा: पुलिस के दबाव में आया ट्विटर!, अकाउंट और ट्वीट्स हटाए

त्रिपुरा पुलिस का कहना है कि कई लोगों ने हिंसा को लेकर फ़ेक न्यूज़ फैलाई और राज्य की छवि ख़राब करने की कोशिश की। 

त्रिपुरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई ट्वीट्स किए थे। त्रिपुरा पुलिस ने दो हफ़्ते पहले ट्विटर से ऐसे 68 हैंडल्स को ब्लॉक करने और उनके बारे में जानकारी देने के लिए कहा था। 

ट्विटर ने अब ऐसे 24 हैंडल्स और 57 ट्वीट्स को हटा दिया है। त्रिपुरा पुलिस ने हिंसा को लेकर ट्वीट करने वाले लगभग 70 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर यूएपीए जैसा कठोर क़ानून लगा दिया था। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जल्द ही सुनवाई करने जा रहा है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, जिन हैंडल्स को हटाया गया है, उनमें से 12 ऐसे थे, जिनके 10 हज़ार से ज़्यादा फ़ॉलोवर्स थे। हटाए गए इन हैंडल्स में से अधिकतर ऐसे थे जो बीजेपी, इसके नेताओं और इनकी विचारधारा की आलोचना करते थे। इनमें से कुछ हैंडल्स को चलाने वालों ने ख़ुद को पत्रकार बताया था जबकि कुछ ने ख़ुद को विपक्षी दलों- कांग्रेस, टीएमसी आदि से जुड़ा बताया था। इस मामले में चार वकीलों को भी नोटिस जारी किया जा चुका है। 

त्रिपुरा पुलिस ने इस मामले में फ़ेसबुक, ट्विटर और यू ट्यूब से संपर्क किया था और उनसे 100 से ज़्यादा सोशल मीडिया अकाउंट्स की जानकारी मांगी थी। पुलिस ने कहा था कि इन अकाउंट्स का इस्तेमाल फ़ेक और भड़काऊ पोस्ट करने के लिए किया गया। इसके बाद पुलिस ने 70 से ज़्यादा लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था। 

पुलिस ने कहा था कि फर्जी फ़ोटोग्राफ़, झूठे न्यूज़ कटेंट के जरिये राज्य के लोगों के बीच दरार डालने की कोशिश की गई। पुलिस के मुताबिक़, एक सोशल मीडिया पोस्ट ऐसी थी जो तालिबान का समर्थन करती थी और पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के साथ मिलकर भारत के ख़िलाफ़ लॉबीइंग करने के मक़सद वाली थी। 

पुलिस की ओर से आरोप लगाया गया था कि पत्रकार श्याम मीरा सिंह और कुछ अन्य लोगों ने फ़ेक न्यूज़ फैलाई और आपत्तिजनक कंटेंट को शेयर किया जबकि राज्य सरकार ने किसी भी मसजिद में तोड़फोड़ के आरोपों और स्थानीय मुसलिम समुदाय पर हमले के आरोपों को खारिज कर दिया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को त्रिपुरा पुलिस से कहा था कि वह उन वकीलों और एक पत्रकार के ख़िलाफ़ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करे, जिन पर राज्य में सांप्रदायिक हिंसा को लेकर टिप्पणी करने के लिए कार्रवाई की जा रही है। 

इस मामले में दो महिला पत्रकारों समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा के ख़िलाफ़ भी त्रिपुरा पुलिस ने सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने का मुक़दमा दर्ज किया था और उन्हें हिरासत में ले लिया था। लेकिन सोमवार शाम को दोनों को जमानत मिल गई थी। 

त्रिपुरा सरकार का कहना है कि कुछ बाहरी लोगों ने अपने फ़ायदे के लिए सोशल मीडिया पर मसजिद जलाने के फर्जी फ़ोटो अपलोड किए। 

विहिप की रैली 

त्रिपुरा के पानीसागर और कुछ अन्य इलाक़ों में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को लेकर सोशल मीडिया पर ख़ासी बहस हुई थी। हिंसा की ये घटनाएं पानीसागर के साथ ही ऊनाकोटी और सिपाहीजाला जिलों में भी हुई थीं। हिंसा की ये घटनाएं विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की रैली के बाद हुई थीं। विहिप ने यह रैली बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों और दुर्गा पूजा के पंडालों पर हुए हमलों के विरोध में 26 अक्टूबर को निकाली थी। 

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