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<u></u>त्रिपुरा चुनाव: 81% से ज्यादा वोटिंग, 2 मार्च को आएंगे नतीजे

त्रिपुरा चुनाव: 81% से ज्यादा वोटिंग, 2 मार्च को आएंगे नतीजे

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए गुरुवार को वोट डाले गए। राज्य में 3,328 मतदान केंद्रों पर मतदान हुआ। करीब  28.13 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। कुल 259 उम्मीदवार चुनावी दौड़ में हैं, जिनमें सिर्फ 20 महिलाएं हैं।

त्रिपुरा में आज गुरुवार को विधानसभा चुनाव 2023 के लिए मतदान हुआ। चुनाव आयोग के मुताबिक 81.11 फीसदी से ज्यादा लोगों ने मतदान किया। यह आंकड़ा शाम 4 बजे तक का है। इसमें बदलाव हो सकता है। चुनाव नतीजे 2 मार्च को आएंगे।राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला है। जहां सत्तारूढ़ बीजेपी को फिर से अपनी सरकार बनने की उम्मीद है। उधर, सीपीएम-कांग्रेस गठबंधन ने उसे कड़ी चुनौती दे दी है। लेकिन अगर त्रिशंकु सदन की स्थिति बनती है तो नई पार्टी टिपरा मोथा किंग मेकर साबित हो सकती है।

मतदान की प्रक्रिया शाम 6 बजे के बाद भी जारी रही। तमाम मतदाता शाम 4 बजे वोट डालने पहुंचे। लेकिन उनका नंबर 6 बजे के बाद ही आ सका।

  • त्रिपुरा में बाद दोपहर तीन बजे तक 69.96 फीसदी मतदान दर्ज किया गया।

  • मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय ने त्रिपुरा कांग्रेस और बीजेपी को अपनी-अपनी पार्टियों के पक्ष में वोट की अपील करने के लिए नोटिस भेजा है। वोट की अपील आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद उनके आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से की गई थी।

  • त्रिपुरा में 1 बजे तक 51.35% वोटिंग हुई है।

  • साउथ त्रिपुरा में पोलिंग बूथ के बाहर झड़प, सीपीआई समर्थक घायल।

  • चुनाव आयोग ने कहा है कि त्रिपुरा में 11 बजे तक  32.06 फीसदी मतदान हुआ है।
  • राज्य के पूर्व सीएम माणिक सरकार ने भी वोट डाला। वो त्रिपुरा के चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

  • त्रिपुरा कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि शांतिर बाजार में बीजेपी के गुंडों ने चंदन दास और शिपान मजूमदार पर हमला किया। पुलिस तमाशबीन बनी है। विसालगढ़ में भी धमाके सुने गए हैं। अभी तक हिंसा को लेकर कोई सरकारी बयान नहीं आया है।

  • त्रिपुरा के सीएम और बीजेपी के टाउन बोरडोवली उम्मीदवार माणिक साहा ने वोट डालने के बाद मीडिया से कहा - हम शांतिपूर्ण मतदान चाहते हैं। लोग मुझसे पूछते हैं कि मेरे सामने क्या चुनौती है? चुनौती यह है कि अपवित्र गठबंधन में एक साथ आए प्रतिद्वंद्वियों (कांग्रेस-वाम) को शांति बनाए रखनी चाहिए। 

त्रिपुरा में 30 वर्षों तक सीपीएम का शासन रहा। 2018 में तब भारी उलटफेर हो गया, जब बीजेपी ने इतिहास बनाते हुए राज्य की 60 में से 36 सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि व्यावहारिक रूप से उसकी राज्य में कोई उपस्थिति नहीं थी। लेकिन यह चमत्कार हुआ।

बीजेपी को 31 के बहुमत से ज्यादा सीटें मिलीं लेकिन उसने क्षेत्रीय आईपीएफटी (इंडिजेनस प्रोग्रेसिव फ्रंट ऑफ त्रिपुरा) के साथ गठबंधन किया। उसे आठ सीटें मिलीं थीं।

वाम मोर्चा राज्य की 60 में से 47 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है, जबकि कांग्रेस सिर्फ 13 सीटों पर।  हालांकि सीपीएम ने 2018 में 16 सीटें जीतीं, लेकिन कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। हालांकि उस समय कांग्रेस वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी थी। सीपीएम को उम्मीद है कि कांग्रेस और उनका गठबंधन करीब 13 सीटों पर वोट जोड़ने में मदद करेगा। हालांकि केरल में सीपीएम और कांग्रेस एक दूसरे के विरोधी हैं। लेकिन त्रिपुरा के हालात अलग हैं।

त्रिपुरा के पूर्व शाही खानदान के प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने अपनी पार्टी टिपरा मोथा खड़ी कर दी है जो ग्रेटर टिपरालैंड की मांग कर रही है। टिपरा मोथा ने बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। हालांकि बीजेपी के पास स्थानीय पार्टी आईपीएफटी है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में कुछ सीटों पर उसकी पकड़ ढीली हुई है। 2021 में, जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद चुनावों में आईपीएफटी का सफाया हो गया था। उसे सिर्फ पांच सीटों जीत नसीब हुई थी।

बीजेपी ने शुरू में टिपरा मोथा के साथ तालमेल बनाने की कोशिश की थी। लेकिन वो नाकाम रही। बीजेपी ने साफ कर दिया कि वो त्रिपुरा के किसी भी विभाजन की अनुमति नहीं देगी, तो टिपरा मोथा ने अपना रुख सख्त कर लिया। उसने बीजेपी को "सीपीएम-कांग्रेस की बी टीम" होने का आरोप लगाया था।

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