माणिक साहा को सोमवार को सर्वसम्मति से त्रिपुरा में बीजेपी के नवनिर्वाचित विधायकों का नेता चुन लिया गया। इसके साथ ही लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री का पद संभालने का उनका रास्ता साफ हो गया। क़रीब 10 महीने पहले ही उन्हें तब अप्रत्याशित रूप से मुख्यमंत्री बनाया गया था जब बिप्लब देब को अचानक पद से हटा दिया गया था।
मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह 8 मार्च को होगा। समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के शामिल होने की संभावना है। हाल ही में संपन्न राज्य चुनाव में बीजेपी ने 60 सदस्यीय विधानसभा में से 32 सीटें जीतीं। बीजेपी की सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा ने एक सीट जीती है।
कांग्रेस के पूर्व नेता माणिक साहा 2016 में भाजपा में शामिल हुए थे। राजनीति में आने से पहले वह पेशे से एक डॉक्टर रहे थे और हापनिया स्थित त्रिपुरा मेडिकल कॉलेज में पढ़ाते थे।
पहले भले ही मुख्यमंत्री की दौड़ में माणिक साहा को दौड़ में सबसे आगे बताया जा रहा था, लेकिन राज्य की पार्टी में एक धड़ा केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक का भी समर्थन कर रहा था।
माणिक साहा के नाम पर मुहर लगने से पहले असम के मुख्यमंत्री और भाजपा के पूर्वोत्तर रणनीतिकार हिमंत बिस्व सरमा ने त्रिपुरा का दौरा किया था और अगले मंत्रिमंडल के गठन पर मुख्यमंत्री और पार्टी के वरिष्ठ सहयोगियों के साथ बैठकें की थीं। इसके अगले दिन उन्होंने रविवार को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी।
माणिक साहा ने चुनाव से पहले कहा था कि राज्य में बीजेपी की 'सुनामी' आएगी, लेकिन इस तरह का प्रदर्शन नहीं था। दोनों दलों ने 2018 में अपने प्रदर्शन की तुलना में कम सीटें हासिल कीं। तब उन्होंने 36 सीटें हासिल की थीं।
हालाँकि चुनाव परिणाम आने के बाद माणिक साहा ने दावा किया कि त्रिपुरा में पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप था। उन्होंने कहा, 'भाजपा की जीत की उम्मीद थी.. हम इसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। अब हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई है। हम उस दिशा में चलेंगे जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमें दिखाएंगे।'
डेंटल सर्जन से राजनेता बने माणिक साहा ने लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से स्नातक किया। 2016 में भाजपा में शामिल होने से पहले वह कांग्रेस के सदस्य थे। साहा 2020 से 2022 तक पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष भी थे। पिछले साल 3 अप्रैल से 4 जुलाई तक राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी उनका छोटा कार्यकाल रहा था।