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कृषि क़ानून वापस लेने के लिए संसद में बिल लाने को कहा टीएमसी ने

कृषि क़ानून वापस लेने के लिए संसद में बिल लाने को कहा टीएमसी ने

विपक्ष ने किसान आन्दोलन पर लोकसभा में चल रही बहस के दौरान सरकार से कहा कि तीनों कृषि क़ानूनों को तुरन्त वापस ले लिया जाना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि सरकार को इसके लिए एक विधेयक तैयार करना चाहिए।

विपक्ष ने किसान आन्दोलन पर लोकसभा में चल रही बहस के दौरान सरकार से ज़ोर देकर कहा कि तीनों कृषि क़ानूनों को तुरन्त वापस ले लिया जाना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि सरकार को तीनों क़ानून वापस लेने के मक़सद से एक विधेयक 'रिपीलिंग बिल 2021' तैयार करना चाहिए। डेरेक ने कहा कि उन्होंने ऐसा ही एक 'रिपिलिंग बिल 2021' तैयार कर लिया है और वे उसे सरकार को दे सकते हैं। 

बता दें कि विपक्ष ने बजट रखे जाने के अगले दिन यानी मंगलवार को किसान आन्दोलन पर बहस के लिए नोटिस दिया था, जिसे स्पीकर ने यह कह कर खारिज कर दिया था कि इस पर बहस बुधवार को होगी। बुधवार को भी स्पीकर ने कहा कि इस पर अलग बहस नहीं हो सकती, सदस्य चाहें तो राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान यह मुद्दा उठा सकते हैं। 

मार गए किसानों के लिए मौन

डेरेक ओ ब्रायन ने यह माँग भी की कि गणतंत्र दिवस को ट्रैक्टर पर बैठे व्यक्ति की मौत की जाँच की जानी चाहिए। उन्होंने इसके साथ ही किसान आन्दोलन के दौरान मारे गए लोगों की मौत पर एक मिनट का मौन रखने का प्रस्ताव रखा, उनके साथ विपक्षी दलों के सदस्यों ने भी एक मिनट का मौन रखा। 

तृणमूल सांसद ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि वह हर मोर्चे पर नाकाम रही है। डेरेक ने कहा कि सरकार संविधान में तय संघीय ढाँचे को ध्वस्त कर रही है, उसने बजट में केंद्रीय सेस लगा दिया, जिसका पैसा उसे राज्यों को नहीं देना होगा। इससे राज्यों की आमदनी कम हो जाएगी। 

आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने सत्तारूढ़ दल पर हमला बोलते हुए कहा कि लाल किले में घुस कर तिरंगे का अपमान करने वाला व्यक्ति दीप सिंह संधू बीजेपी का आदमी है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल चुका है।

'ट्वीट से लोकतंत्र कमज़ोर नहीं'

उन्होंने यह भी कहा कि ट्रैक्टर परेड के दिन रूट तय थे, लेकिन दीप संधू ने ही लाल किले में गड़बड़ी की, हिंसा की। 

राष्ट्रीय जनता दल सांसद मनोज झा ने किसान आन्दोलन के पक्ष में ट्वीट करने वालों पर सरकार के पलटवार की आलोचना करते हुए कहा कि किसी के ट्वीट करने भर से भारत का लोकतंत्र कमज़ोर नहीं हो जाएगा। 

उन्होंने मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि मीडिया का एक हिस्सा किसान आन्दोलन को खालिस्तान और पाकिस्तान से जोड़ कर पेश कर रहा है, जो गल़त है। 

 - Satya Hindi

कांग्रेस सदस्य दिपेंदर हुड्डा ने किसानों के साथ हो रहे व्यवहार का मुद्दा उठाते हुए कहा कि उनके साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा है, उनके पास बैरिकेड खड़ा कर दिया गया है, इंटरनेट काट दिया गया है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह अड़ियल रुख न अपनाए और किसानों की बात मान ले। 

सिंधिया ने किया कांग्रेस पर कटाक्ष

बीजेपी सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कुछ पार्टियाँ पहले इन कृषि क़ानूनों का समर्थन करती थीं और वैसा ही क़ानून लाना चाहती थी। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र को उद्धृत करते हुए कहा कि पहले इन क़ानूनों का समर्थन करने वालों ने रास्ता बदल लिया है। बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले कांग्रेस में ही थे, उन्होंने पिछले साल पार्टी छोड़ी और बीजेपी में शामिल हो गए। 

बता दें कि बीते अक्टूबर में भारी शोर-शराबे और हो-हल्ला के बीच तीन कृषि क़ानूनों को संसद से पारित कराया गया था। राज्यसभा में सत्तारूढ़ दल का बहुमत नहीं होने से उसके पारित होने की संभावना कम थी। लेकिन सदन के पीठासीन अधिकारी और उपाध्यक्ष हरिवंश ने शोरगुल के बीच ही उसे पारित घोषित कर दिया। विपक्ष का कहना है कि राज्यसभा में विधेयक पर मत-विभाजन यानी वोटिंग की माँग की गई थी, जिसे हरिवंश ने अनसुना कर दिया। 

क्या हुआ था राज्यभा में?

उपाध्यक्ष हरिवंश ने कहा था कि मत-विभाजन की माँग करते समय सदस्य अपनी सीट पर नहीं थे, लिहाज़ा, नियम के अनुसार उस पर विचार नहीं किया जा सकता। लेकिन वोटिंग की मांग करने वाले सदस्यों का कहना था कि वे अपनी सीट पर ही थे। वे विधेयक इन स्थितियों में पारित घोषित किए गए। 

उसके बाद पंजाब में जगह-जगह कृषि क़ानूनों का विरोध शुरू हो गया। दो महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश और हरियाणा के इलाक़ों में हज़ारों किसान धरने पर बैठे हैं। किसान संगठनों और सरकार के बीच दस दौर की बातचीत नाकाम हो चुकी है। किसान तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की माँग पर अड़े हैं, सरकार का कहना है कि वह उन्हें किसी कीमत पर वापस नहीं लेगी। जिच बरक़रार है। 

संसद में बहस इस जिच के बीच हुई। लेकिन सरकार के रवैए में किसी तरह का बदलाव नहीं दिखा है।

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