हत्यारे गोडसे की फोटो के साथ तिरंगा यात्रा
सावरकर के बाद आप महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को स्थापित करने में कट्टरपंथी हिन्दू संगठन जुट गए हैं। यूपी के मुजफ्फरनगर में 15 अगस्त को तिरंगा यात्रा गोडसे के फोटो के साथ निकाली गई। कर्नाटक में 15 अगस्त को ही शिवमोग्गा में सावरकर की फोटो लगाने को लेकर बवाल हो चुका है, जहां एक शख्स को चाकू मार दिया गया। वहां महान स्वतंत्रता सेनानी टीपू सुल्तान के चित्र को फाड़कर सावरकर की फोटो लगाने की कोशिश की गई थी।
मुज़फ्फरनगर में हिन्दू महासभा ने गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की तस्वीर के साथ निकाली तिरंगा यात्रा!#IndependenceDay2022 pic.twitter.com/Diu243pjIj
— Sulliya Mohammad (@Mo_Sulliya) August 16, 2022
अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने सोमवार को मुजफ्फरनगर में तिरंगा यात्रा निकाली, जिसमें सबसे आगे गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की तस्वीर थी। सोमवार देर रात यात्रा का एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद मामला सामने आया।
हिंदू महासभा के नेता योगेंद्र वर्मा ने कहा, हमने स्वतंत्रता दिवस पर एक तिरंगा यात्रा का आयोजन किया था और रैली ने जिले भर में यात्रा की थी। सभी प्रमुख हिंदू नेताओं ने इसमें भाग लिया था। हमने कई क्रांतिकारियों की तस्वीरें लगाई थीं और गोडसे उनमें से एक हैं।
उन्होंने आगे कहा कि गोडसे को महात्मा गांधी की हत्या करने के लिए केवल उन्हीं नीतियों के कारण मजबूर होना पड़ा, जिनका उन्होंने अनुसरण किया था।
उनके मुताबिक गोडसे ने अपना मामला खुद लड़ा और सरकार को वह सब सार्वजनिक करना चाहिए जो उसने अदालत में कहा था। सरकार नहीं चाहती कि लोगों को पता चले कि गांधी की हत्या क्यों की गई थी। गांधी की कुछ नीतियां हिंदू विरोधी थीं। विभाजन के दौरान, 30 लाख हिंदू और मुसलमान मारे गए और इसके लिए गांधी जिम्मेदार थे। योगेंद्र वर्मा ने आगे कहा कि अगर गोडसे ने गांधी की हत्या की, तो इसके लिए उन्हें मौत की सजा भी भुगतनी पड़ी. उन्होंने कहा, जैसे कुछ लोग गांधी को अपनी प्रेरणा मानते हैं, वैसे ही गोडसे के लिए भी हमारी भावनाएं हैं।
गोडसे, सावरकर से दक्षिणपंथियों का प्रेम क्यों
देश की आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं होने के कारण दक्षिणपंथी संगठन पश्चाताप में जी रहे हैं। उनके पास भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, राजगुरु जैसे नायक नहीं हैं, जिनका उल्लेख कर वे खुद का योगदान बता सकें। उनके पास जो सावरकर, गोलवलकर, हेडगेवार, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नायक हैं, जिन पर अंग्रेजों की तारीफ करने, जिन्ना और हिन्दू महासभा की दो राष्ट्र सिद्धांत को मानने, तिरंगे को स्वीकार न करने जैसे आरोप हैं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तो अविभाजित बंगाल में जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार तक बनाई। आरएसएस तिरंगे का समर्थक नहीं रहा। 52 वर्षों तक उसने नागपुर मुख्यालय में तिरंगा नहीं फहराया। 2002 से उसने तिरंगा फहराना शुरू किया। संघ और बीजेपी के तमाम नेता कहते रहते हैं कि एक दिन भगवा ही राष्ट्रीय झंडा बन जाएगा।मुजफ्फरनगर या कर्नाटक में गोडसे और सावरकर का गुणगान करने की घटनाएं इसी का नतीजा हैं। इतना ही नहीं कर्नाटक सरकार ने तो स्वतंत्रता सेनानियों की सूची से जवाहर लाल नेहरू और टीपू सुल्तान का ही नाम गायब कर दिया।
महात्मा गांधी पर मौजूदा मोदी सरकार चालाकी से काम ले रही है। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय शर्मिन्दगी से बचने के लिए वो गांधी-गांधी करती है तो दूसरी तरफ वो गांधी हत्यारे गोडसे और गोडसे के गुरु सावरकर को महिमामंडित कराती रहती है। इस काम को उसका मातृ संगठन आरएसएस करता है।