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क्या हत्या की सज़ा चाकू की क़ीमत से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए?

क्या हत्या की सज़ा चाकू की क़ीमत से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए?

नए ट्रैफ़िक नियमों के लागू होने के बाद आख़िर वाहन की क़ीमत को ट्रैफ़िक नियमों के उल्लंघन की जुर्माना राशि से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है। 

जब से एक स्कूटी सवार पर विभिन्न ट्रैफ़िक उल्लंघनों के लिए 23 हज़ार का चालान ठोका गया है, तब से कई लोगों द्वारा यह सवाल उठाया जा रहा है कि 15 हज़ार की स्कूटी रखने वाले पर 23 हज़ार का चालान करना - यह कहाँ का इंसाफ़ है। इसपर मेरा एक प्रतिप्रश्न है - कोई अगर अपने सौ रुपये के चाकू से किसी की जान ले ले तो उसे उम्रक़ैद की सज़ा देना, क्या यह भी कोई इंसाफ़ है क्या उसको भी चाकू की क़ीमत यानी अधिक-से-अधिक सौ-दो सौ रुपये का जुर्माना लगाकर छोड़ नहीं दिया जाना चाहिए

जो लोग वाहन की क़ीमत को ट्रैफ़िक नियमों के उल्लंघन की जुर्माना राशि से जोड़कर देख रहे हैं, वे एक बहुत बड़ी ग़लती कर रहे हैं। वे यह नहीं देख रहे हैं कि जिन ट्रैफ़िक नियमों के उल्लंघनों के लिए इतना भारी जुर्माना किया जा रहा है, उससे किसी और का कितना बड़ा नुक़सान हो सकता है। मसलन तेज़ी से आ रही एक कार किसी की जान ले सकती है और उसके परिवार को उजाड़ सकती है। 

अब क्या कोई भी जुर्माना राशि चाहे कितनी भी बड़ी हो, वह किसी की जान की क़ीमत का मुक़ाबला कर सकती है इसी तरह अगर कोई सिग्नल तोड़ता है, तो वह एक तरफ अपने कुछ सेकंड बचा रहा होता है लेकिन दूसरी तरफ़ वह हरी बत्ती पर गाड़ी चला रहे दूसरे वाहनों या सड़क पार कर रहे यात्रियों की ज़िंदगी को भी जोखिम में डाल रहा होता है।

एक और उदाहरण लें। आप शराब पीकर सड़क पर पैदल चलें, आपको कोई पुलिसवाला नहीं टोकेगा जब तक कि आप कोई बदतमीज़ी नहीं करें। लेकिन जब आप शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं तो आप पर भारी जुर्माना हो सकता है क्योंकि शराब के नशे में आप अपना नियंत्रण खो सकते हैं और किसी की जान भी ले सकते हैं। 

यही बात बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी चलाने पर भी है। आप गाड़ी चलाना नहीं जानते और सड़क पर निकल पड़े हैं। ऐसे में किसी को ठोक दिया और किसी परिवार का एकमात्र कमाऊ सदस्य मारा गया तो वह परिवार तो तबाह हो गया। क्या तब भी आप कहेंगे कि शराब पीकर गाड़ी चलाने या बिना लाइसेंस के गाड़ी चलाने पर जो जुर्माना लगाया गया है, वह बहुत ज़्यादा है 

क्या आप चाहेंगे कि शराब पीकर गाड़ी चलाने पर जो जुर्माना लगे, वह एक शराब की बोलत की क़ीमत या लाइसेंस बनवाने की फ़ीस से ज़्यादा न हो

यही कारण है कि वाहन का इंश्योरेंस नहीं कराने या हेलमेट नहीं पहनने, सीट बेल्ट नहीं लगाने आदि पर जुर्माना कम है क्योंकि बीमा नहीं होने या सुरक्षा उपाय नहीं अपनाने से नुक़सान आपका होगा, किसी और का नहीं - आपको अपने दुर्घटनाग्रस्त वाहन का सारा ख़र्च वहन करना होगा और किसी का जान-माल का नुक़सान हुआ तो वह भी आपको ही भरना होगा। लेकिन जिस नियम के उल्लंघन से किसी और की अनमोल जान जा सकती है, उसके लिए तो भारी-भरकम जुर्माना होना ही चाहिए।

कोई यह भी कह सकता है कि जो इन नियमों को तोड़कर दूसरों की जान ले रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ तो मामला बनता ही है और वे उसकी सज़ा भुगतते ही हैं। लेकिन जब तक ऐसा अपराध नहीं हुआ यानी किसी की जान नहीं गई, तब तक केवल अंदेशे के आधार पर इतना भारी जुर्माना लगाना कहाँ का न्याय है।

इसका जवाब मैं आपके ही मुँह से सुनना चाहूँगा एक आख़िरी प्रश्न करके। कल्पना कीजिए, एक आदमी साँप-बिच्छुओं से भरा एक डिब्बा लेकर किसी बस में जा रहा है। डिब्बे पर कोई ताला नहीं लगा है और साँप-बिच्छू कभी भी बाहर निकलकर किसी को भी काट सकते हैं। उस बस में आप भी हैं और आपके बीवी-बच्चे भी। ऐसे आदमी के लिए आप क्या जुर्माना तय करेंगे वही जो साँप-बिच्छू की क़ीमत है या ऐसा कि भविष्य में वह कभी भी बिना ताला लगाए साँप-बिच्छू लेकर बस में चढ़ने की कल्पना से ही काँप जाए

सोचिएगा। जवाब आपको मिल जाएगा।

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