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मणिपुर में राजनीतिक समाधान की ज़रूरत: शीर्ष सैन्य अधिकारी

मणिपुर में राजनीतिक समाधान की ज़रूरत: शीर्ष सैन्य अधिकारी

मणिपुर में हिंसा शुरू हुए छह महीने से ज़्यादा हो गए हैं, लेकिन अभी भी हिंसा की छिट-पुट घटनाएँ क्यों हो जा रही हैं? इसका समाधान क्या है? जानिए, शीर्ष सैन्य अधिकारी ने क्या कहा है। 

दो दिन पहले ही एक सुरक्षाकर्मी और उनके ड्राइवर की हमले में मौत के बीच सेना के पूर्वी कमान के प्रमुख ने कहा है कि मणिपुर की स्थिति को राजनीतिक समाधान की ज़रूरत है। पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता ने कहा है कि समुदायों के बीच काफ़ी ज़्यादा ध्रुवीकरण के कारण पूर्वोत्तर राज्य में छिटपुट हिंसा की घटनाएँ जारी हैं। तो सवाल है कि दो समुदायों के बीच ध्रुवीकरण कौन कर रहा है और उनके बीच किसने नफरत फैलाई?

इस सवाल का जवाब बाद में पहले यह जान लें कि लेफ्टिनेंट जनरल का यह बयान क्यों आया है। उनका गुवाहाटी में यह बयान तब आया है जब एक सुरक्षाकर्मी और उनके ड्राइवर की हत्या के विरोध में मणिपुर के कांगपोकपी जिले में 48 घंटे के बंद के बीच आई है। सोमवार को घात लगाकर किए गए हमले में इंडिया रिजर्व बटालियन के एक कर्मी और उसके ड्राइवर की मौत हो गई थी। बंद का आह्वान करने वाली जनजातीय एकता समिति ने कहा है कि पीड़ित कुकी-ज़ो समुदाय से थे।

लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता ने मंगलवार को कहा कि हिंसा के दौरान लूटे गए 4,000 से अधिक हथियार अभी भी लोगों के हाथ में हैं और इन हथियारों का इस्तेमाल हिंसा की घटनाओं में किया जा रहा है। उन्होंने कहा, 'यह राज्य में एक राजनीतिक समस्या है जहाँ दो समुदाय, कुकी और मेइती ध्रुवीकृत हैं। मणिपुर की स्थिति का राजनीतिक समाधान होना चाहिए।' 

बता दें कि मई महीने में शुरू हुई हिंसा मेइती और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच तनाव का नतीजा है। राज्य में जो बड़े पैमाने पर हिंसा भड़की उसके पीछे मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिये जाने को मुख्य कारण बताया जा रहा है।

मणिपुर में बीजेपी की सरकार है। मेइती समुदाय को अदालत के आदेश पर अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया। आदेश के खिलाफ राज्य के जनजातीय समूहों में विरोध हुआ।

मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इंफाल घाटी के इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं।

आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है। लेकिन इस बीच कुछ बदलावों ने समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा दिया।

दरअसल, हुआ यह कि इंफाल घाटी में उपलब्ध भूमि और संसाधनों में कमी और पहाड़ी क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा भूमि खरीदने पर प्रतिबंध के कारण 12 साल पहले मेइती के लिए एसटी का दर्जा मांगने की मांग उठी थी। मामला मणिपुर हाई कोर्ट पहुँचा। इस साल 19 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को एसटी सूची में मेइती को शामिल करने पर विचार करने के लिए केंद्र को सिफारिशें देने और अगले चार सप्ताह के भीतर मामले पर विचार करने का निर्देश जारी किया था।

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