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बारिश की आड़ लेकर टमाटर की कीमतें बेतहाशा बढ़ीं

बारिश की आड़ लेकर टमाटर की कीमतें बेतहाशा बढ़ीं

महंगाई वैसे भी काबू नहीं आ रही है और उस पर अब टमाटर की कीमतों ने लोगों की मुसीबत बढ़ा दी है। टमाटर का इस्तेमाल सब्जियों में सबसे ज्यादा होता है, इसलिए इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।

महंगाई से जूझ रही जनता को टमाटर की बढ़ती कीमतों ने लाल कर दिया है। दिल्ली समेत तमाम शहरों की खुदरा मार्केट में टमाटर के दाम सौ रुपये प्रति किलोग्राम से लेकर सवा सौ रुपये तक पहुंच गए। थोक बाजारों में कीमतों में बढ़ोतरी के बाद स्थानीय बाजारों में कीमतें 80 रुपये से 120 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच बढ़ गई हैं। इसी खास वजह बारिश को बताया जा रहा है।

दिल्ली में पिछले कुछ दिनों में टमाटर की कीमतें दोगुनी हो गई हैं, क्योंकि उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों से आपूर्ति कम हो गई है। दिल्ली में टमाटर 80 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि बेंगलुरु में दाम 100 रुपये प्रति किलो के पार पहुंच गए हैं। 

किसानों ने हालिया मूल्य वृद्धि के लिए अत्यधिक गर्मी और मानसून के देरी से आने के कारण उत्पादन में कमी को जिम्मेदार ठहराया है। बेमौसम बारिश से भी फसलों को नुकसान हुआ, जिससे कीमतों में बढ़ोतरी हुई।

टमाटर की कीमतें बढ़ने की वजह कम उत्पादन को भी बताया गया है। बढ़ती कीमतों ने उपभोक्ताओं के रसोई बजट पर भी भारी असर डाला है। एएनआई ने एक उपभोक्ता के हवाले से लिखा है- "पहले टमाटर की कीमत 30 रुपये प्रति किलो थी, उसके बाद मैंने इसे 50 रुपये प्रति किलो खरीदा और अब यह 100 रुपये किलो हो गया है। कीमतें और बढ़ने वाली हैं और हम मजबूर हैं, हमें खरीदना होगा।" एएनआई ने आम लोगों के हवाले से देशभर से इस तरह की सूचना दी है। लोग टमाटर की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं।

हालांकि लोगों ने कहा कि बारिश की आड़ लेकर कीमतें बढ़ाना गलत है। बढ़े हुए रेट का फायदा किसानों को वैसे भी नहीं मिल रहा है। बढ़ी हुई कीमतों का पैसा बिचौलिए या आढ़ती खा रहे हैं। बिचौलिए हमेशा मौसम के हिसाब से सब्जी की कीमतों का यही हाल करते हैं। हाल ही में बारिश का सबसे ज्यादा असर हिमाचल और उत्तराखंड में हुआ है। जबकि दिल्ली जैसी मार्केट में सप्लाई हरियाणा और पश्चिमी यूपी से होती है। वहां से टमाटर समेत सभी सब्जियों के आने में कोई दिक्कत नहीं आई है। 

हालांकि सरकार खुदरा महंगाई कम होने के दावे कर रही है। खुदरा महंगाई 25 महीने के निचले स्तर 4.25 प्रतिशत पर पहुँची हुई है। यह आंकड़ा मई का है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट है। खुदरा महंगाई आज भी और अभी भी आसमान छू रही है। सरकार के आंकड़े आम लोगों की समझ से बाहर हैं, जिनके जेब से पैसा निकलता है। सरकारी आंकड़ों की बात करें तो अप्रैल 2023 में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति दर  4.7 प्रतिशत रही थी। वहीं एक साल पहले मई, 2022 में खुदरा मुद्रास्फीति 7.04 प्रतिशत के स्तर पर थी। खुदरा महंगाई अप्रैल 2021 में 4.23 प्रतिशत पर थी। 

इस तरह मई लगातार चौथा महीना है जब महंगाई दर में कमी आई है। यह लगातार तीसरा महीना है जब खुदरा मुद्रास्फीति भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तय सीमा के अंदर है। आरबीआई ने खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत के अंतराल के साथ चार प्रतिशत पर यानी 2-6 के बीच में रखने की रणनीति बनाई है।

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