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एक समय लगा था नीरज चोपड़ा टोक्यो जा ही नहीं पाएंगे

एक समय लगा था नीरज चोपड़ा टोक्यो जा ही नहीं पाएंगे

2018 में नीरज चोपड़ा की दाहिनी कुहनी में चोट लगी, ऑपरेशन हुआ और वे पूरे एक साल खेल से दूर रहे। लेकिन उसके बाद उन्होंने इतिहास रच दिया। कैसे हुआ यह चमत्कार?

टोक्यो ओलंपिक 2020 में भाला फेंक (जैवलिन थ्रो) में स्वर्ण पदक झटक कर नीरज चोपड़ा अभिनव बिंद्रा के साथ उन दो लोगों की विरल श्रेणी में शामिल हो गए, जिन्होंने ओलंपिक खेलों में भारत के लिए सोना जीता है।

लेकिन यह रास्ता बहुत आसान नहीं था और एक समय तो ऐसा भी आया था जब लगा था कि नीरज टोक्यो जा ही नहीं पाएंगे।

घायल टूटे हुए नीरज से स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज की कायापलट दिलचस्प ही नहीं रोमांचक भी रही है। 

टोक्यो के स्टेडियम में शनिवार को जब भारत का राष्ट्र गीत बजाया गया तो लोगों को 13 साल पहले की वह घटना याद आई जब बीजिंग में ऐसा ही हुआ था और बिंद्रा ने शूटिंग में सोना जीत कर इतिहास रच दिया था। 

वही इतिहास नीरज चोपड़ा ने भी रचा क्योंकि अब तक किसी ओलंपिक में किसी भारतीय को ट्रैक एंड फ़ील्ड इवेंट में स्वर्ण पदक नसीब नहीं हुआ था। 

टोक्यो ओलंपिक 2020 का जैवलिन थ्रो इवेंट बहुत ही बड़े उलटफेर और रोमांच से शराबोर इसलिए भी रहा कि सबसे मजबूत दावेदार जर्मन एथलीट जोहानस वेटेर फ़ाइनल के लिए क्वालीफ़ाई भी नहीं कर सके।

हैरत में लोग

लेकिन, नरीज ने 87.58 मीटर दूर भाला फेंक कर सबको हैरत में डाल दिया। 

लेकिन यह बहुत आसान सफर नहीं था। दोहा में 2019 में होने वाले विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए उन्होंने 2018 में क्वालीफ़ाई किया तो पहली बार नीरज के मन में ओलंपिक का विचार आया। 

नीरज चोपड़ा को 2018 में दाहिनी कुहनी में चोट लगी और उन्हें ऑपरेशन से गुजरना पड़ा। वह लगभग पूरे 2019 ही खेलों से दूर रहे। ऐसा लगने लग था कि पता नहीं वह कब फ़ील्ड में वापस लौटेंगे।

87.86 मीटर

लेकिन दक्षिण अफ्रीका के पोचेफ्स्ट्रूम में उन्होंने 87.86 मीटर तक भाला फेंक कर सबको ग़लत साबित कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने ओलंपिक में अपनी जगह पक्की कर ली।

उसके बाद कोरोना लॉकडाउन का बुरा वक़्त भी आया और टोक्यो ओलंपिक जिसे 2020 में ही होना था, टाल दिया गया। 

नीरज चोपड़ा ने सबसे पहले 2016 के अंडर 20 चैंपियनशिप में अपनी छाप छोड़ी। इसके अगले ही साल भुबनेस्वर में हुए एशियन चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीत कर यह एलान कर दिया कि वे अब वरिष्ठ श्रेणी में भी पहुँच चुके हैं। 

 - Satya Hindi

चोपड़ा ने 2918 में कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स, दोनों ही प्रतिस्पर्द्धाओं में सोना जीत कर अपनी दावेदारी पक्की कर ली। लेकिन उसके बाद ही उन्हें चोट लगी और दाहिनी कुहनी का ऑपरेशन करवाना पड़ा। 

अभी नीरज चोपड़ा 23 साल के हैं और उनमें बहुत खेल बचा हुआ है। आने वाले दिनों में वे और बेहतर कर सकते हैं और उनका फेंका गया भाला ज़्यादा दूरी तय कर और सोना बटोर सकता है। 

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