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उत्तर बंगाल: तृणमूल की सबसे कमजोर कड़ी  

उत्तर बंगाल: तृणमूल की सबसे कमजोर कड़ी  

उत्तर बंगाल के नाम से मशहूर पश्चिम बंगाल का उत्तरी इलाका सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए साख औऱ नाक का सवाल बनता जा रहा है। इस इलाके में 56 सीटें हैं। तृणमूल यहाँ कमजोर रही है। बीते लोकसभा चुनावों में तो उसका खाता तक नहीं खुल सका था। 

उत्तर बंगाल के नाम से मशहूर पश्चिम बंगाल का उत्तरी इलाका सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए साख औऱ नाक का सवाल बनता जा रहा है। इस इलाके में 56 सीटें हैं। तृणमूल यहाँ कमजोर रही है। बीते लोकसभा चुनावों में तो उसका खाता तक नहीं खुल सका था।

इसलिए सत्ता की दावेदार के तौर पर उभरी बीजेपी ने सत्तारूढ़ पार्टी की इस कमजोर नस पर वार करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। लोकसभा चुनावों में पार्टी ने इलाक़े की आठ में से सात सीटों पर जीत हासिल की थी। इस इलाके में राजवंशी, आदिवासी और गोरखा वोटरों की ख़ासी तादाद है। इसलिए तमाम राजनीतिक दलों ने इनको लुभाने की क़वायद शुरू कर दी है।

चाय मजदूरों को रिझाने की होड़

चाय बागानों वाले इस इलाके में आदिवासी चाय मज़दूर दर्जन भर से ज्यादा सीटों पर किसी का भी खेल बना या बिगाड़ सकते हैं। इसलिए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के पहले बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस ने इन वोटरों को लुभाने की कोशिशें तेज कर दी हैं।

इसी क़वायद के तहत केंद्र सरकार ने जहां अपने बजट में चाय बागान मजदूरों के लिए एक हजार करोड़ का प्रावधान किया है वहीं ममता बनर्जी भी इलाके में पहुँच कर सरकारी योजना के तहत मजदूरों को पक्के मकानों के कागज बाँट रही हैं। चुनावी आचार संहिता लागू होने के बाद यह काम फिलहाल बंद है। लेकिन ममता ने इन मजदूरों की समस्याएं दूर करने के लिए बड़े-बड़े वादे किए हैं।

उत्तर बंगाल में कुल 56 विधानसभा सीटें हैं। एबीपी न्यूज़- सी वोटर के ओपिनियन पोल के मुताबिक़, उत्तर बंगाल में ममता बनर्जी को झटका लगता नज़र आ रहा है। यहाँ बीजेपी उसका खेल बिगाड़ सकती है।

आँकड़ों की बात करें तो तृणमूल कांग्रेस को इलाक़े की 14 से 18 तक सीटें मिल सकती हैं। दूसरी ओर बीजेपी को 21-25 सीटें मिलने की संभावना है। कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन 13 से 15 सीटों के साथ उत्तर बंगाल में तीसरे स्थान पर नज़र आ रहा है।

 - Satya Hindi

टीएमसी की मुश्किलें

पिछले चुनावी नतीजों की बात करें तो यह इलाका तृणमूल कांग्रेस के लिए कभी मुफीद नहीं रहा है। वर्ष 2016 के चुनावों में उसे महज 26 सीटें मिली थीं जबकि वर्ष 2011 में ममता की भारी लहर में भी उसे महज 16 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। इसी तरह लोकसभा चुनावों के दौरान भी पार्टी को महज दर्जन भर सीटों पर ही बढ़त मिली थी।

बीते लोकसभा चुनावों के बाद ही ममता बनर्जी इस इलाके में पार्टी की जड़ें मजबूत करने के लिए लगातार दौरे करती रही हैं।

वोटरों का भरोसा जीतने की रणनीति के तहत उन्होंने कुछ दागी नेताओं पर कार्रवाई तो की ही है, कई मंत्रियों के पर भी काटे हैं। लेकिन बावजूद इसके इलाक़े पर बीजेपी उसके मुकाबले मजबूत नज़र आ रही है।

कोच राजवंशी वोटरों पर नज़र

जहाँ तक मुद्दों का सवाल है इलाके में चाय बागान मजदूर और उनकी समस्याओं का मुद्दा तो बरसों से चला आ रहा है। इसके लिए इलाक़े में कोच राजवंशी और कामतापुरी तबके के वोट निर्णायक हैं। यही वजह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी अपने कूचबिहार दौरे के दौरान इस तबके के नेताओं से मिले थे।

लाख टके का सवाल यह है कि क्या ममता की कवायद इलाके में तृणमूल कांग्रेस के पैरों तले खिसकती जमीन पर अंकुश लगाने में कामयाब होगी? इस सवाल का जवाब तो आने वाले दिनों में ही मिलेगा। लेकिन पिछले रिकार्ड और मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसकी संभावना तो कम ही है।

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