क्या ममता की पार्टी में विवाद के पीछे प्रशांत किशोर हैं?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने 'एक व्यक्ति, एक पद' की नीति पर पार्टी के भीतर बढ़ती क़लह और विवाद पर अंकुश लगाने के लिए भले ही अध्यक्ष के अलावा तमाम सांगठनिक पदों को ख़त्म कर एक राष्ट्रीय कार्यसमिति का गठन कर दिया हो, बंगाल के राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि क्या इससे इस विवाद पर अंकुश लगाने और इस मुद्दे पर पुरानी और नई पीढ़ी के नेताओं की बढ़ती दूरी को पाटने में कामयाबी मिलेगी?
इस विवाद के बाद अब तृणमूल और उसके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके के संबंधों पर भी सवाल उठने लगा है। पार्टी के नेता ही दावा कर रहे हैं कि अब यह रिश्ता नहीं चलेगा। ममता ने कहा है कि वे इस मुद्दे पर पीके से बात करेंगी। एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, "अभिषेक के क़रीबी युवा नेताओं की ओर से ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के समर्थन में चलाए जा रहे इस अभियान ने पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को सांसत में डाल दिया था। इसकी वजह यह थी कि ऐसे तमाम नेता किसी न किसी सरकारी पद पर हैं।”
ममता ने इस पूरे विवाद पर नाराज़गी जताते हुए बैठक में कहा कि तृणमूल के इतिहास में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था और वे इस विवाद को बढ़ावा देने वाले लोगों को जानती हैं। बैठक में शामिल एक नेता ने बताया, ममता ने कहा कि जो भी हुआ है वह बहुत ख़राब है। इससे पार्टी की साख को नुक़सान पहुँचा है।
ममता के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी और उनके क़रीबी नेताओं ने सबसे पहले इस नीति को लागू करने पर जोर दिया था। इसके बाद इन दोनों के बीच दूरी बढ़ने के भी संकेत मिलने लगे हैं। तृणमूल की स्थापना के दो दशक से भी लंबे इतिहास में यह पहला मौक़ा है जब पार्टी में किसी नीतिगत मुद्दे पर विवाद सार्वजनिक रूप से सामने आया है।
अब तक ममता की कही बात ही पार्टी में पत्थर की लकीर होती थी। शायद विरोधी स्वर में बात करने वाले नेताओं को सबक़ सिखाने के लिए ही ममता ने अचानक तमाम सांगठनिक पद ख़त्म कर दिए हैं।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि इस फ़ैसले से पहले ममता ने किसी से भी राय नहीं ली थी। इसके ज़रिए उन्होंने दिखाया है कि पार्टी में अब भी वही सर्वेसर्वा हैं और उनसे अलग कोई दूसरा गुट नहीं हो सकता, वह चाहे उनका अपना भतीजा ही क्यों न हो।
बीते कुछ दिनों से पार्टी में चल रही उठापटक और अभिषेक बनर्जी के महासचिव पद से इस्तीफ़े की अटकलों और अफ़वाहों को ध्यान में रखते हुए शनिवार शाम को ममता के कालीघाट स्थित आवास पर होने वाली बैठक को काफी अहम माना जा रहा था। बैठक में कुल आठ नेता मौजूद थे। इसमें ममता की ओर से हाल में बनाई गई कोर कमिटी के सदस्यों के अलावा सांसद सुदीप बनर्जी को भी बुलाया गया था। उसी में ममता ने अचानक अध्यक्ष के अलावा तमाम सांगठनिक पदों को ख़त्म करते हुए 20-सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यसमिति का एलान कर दिया। ममता की अध्यक्षता में यही समिति अब पार्टी का कामकाज देखेगी।
तृणमूल कांग्रेस नेताओं का कहना है कि अभिषेक बनर्जी की ओर से ‘एक व्यक्ति, एक पद’ की नीति पर जोर देने के कारण ही पार्टी में विवाद शुरू हुआ था। पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने के बाद उन्होंने इस नीति को लागू करने का प्रयास किया था। इस दिशा में कुछ पहल भी की गई थी। लेकिन कोलकाता नगर निगम चुनाव से पहले मंत्री और मेयर फिरहाद हकीम के मामले में पहली बार इसकी अनदेखी की गई। इस नीति के उलट फिरहाद को नगर निगम चुनाव का टिकट दिया गया था। उसके बाद ही पार्टी में असंतोष की सुगबुगाहट होने लगी थी।
लेकिन 108 शहरी निकायों के चुनावों के समय पार्टी के उम्मीदवारों की सूची के मुद्दे पर यह विवाद चरम पर पहुँच गया। इसके लिए पार्टी के उम्मीदवारों की दो-दो सूची सामने आई थी। तब कहा गया था कि पार्टी के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल (फ़ेसबुक और ट्विटर पर) से जो सूची जारी की गई थी उसे प्रशांत किशोर उर्फ पीके की फर्म आई--पैक ने तैयार किया था जबकि दूसरी सूची पार्थ चटर्जी और सुब्रत बख्शी ने बनाई थी। इस वजह से मतभेद और भ्रम बढ़ा। कई ज़िलो में नेताओं ने विरोध प्रदर्शन भी किया। आख़िर में ममता को हस्तक्षेप करते हुए सफ़ाई देनी पड़ी कि पार्थ और सुब्रत के हस्ताक्षर से जारी सूची ही अंतिम और आधिकारिक है।
उधर, पीके की फर्म ने हालांकि इस आरोप का खंडन कर दिया। लेकिन तब तक यह विवाद काफी बढ़ गया। आख़िर में ममता को हस्तक्षेप करते हुए कड़ा फ़ैसला लेना पड़ा।
लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या इससे पार्टी के पुराने और नई पीढ़ी के नेताओं के बीच चौड़ी हो चुकी खाई को पाटने में मदद मिलेगी? फ़िलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है।