बंगाल चुनाव: आख़िरी 3 चरणों पर टिकी हैं टीएमसी की उम्मीदें
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव भले कोरोना संक्रमण की सुर्खियों तले दब गए हों, लेकिन आख़िरी तीन चरण ख़ासकर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और उसकी प्रमुख ममता बनर्जी के लिये बेहद अहम हैं। इस दौर में चार मुसलिम बहुल इलाक़ों की सीटें ममता की सत्ता में वापसी में सबसे निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। ये ज़िले हैं मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण दिनाजपुर। इन चारों ज़िलों में ममता बनर्जी अपनी रैलियों में भी कहती रही हैं कि यहाँ ज़्यादा सीटें जीतने की स्थिति में उसकी सरकार की सत्ता में वापसी संभव होगी।
छठे चरण में 22 अप्रैल को राज्य की 43 सीटों पर मतदान होना है।
वर्ष 2016 के चुनाव में टीएमसी ने भले 294 में से 211 सीटें जीती थीं, इन चारों ज़िलों की 49 सीटों में से उसे महज 11 सीटें ही मिली थीं। उस समय कांग्रेस और सीपीएम ने इस इलाक़े में क्रमशः 26 और 10 सीटें जीती थीं।
ममता ने मंगलवार को मुर्शिदाबाद ज़िले के भगवानगोला की रैली में कहा कि चुनाव में मालदा और मुर्शिदाबाद की भूमिका सबसे अहम होगी। अगर हमें इन दोनों ज़िलों के अलावा दिनाजपुर में ज़्यादा सीटें मिलती हैं तो हम सरकार बना सकेंगे। बीजेपी को वोट देकर राज्य को गुजरात मत बनने दें। उन्होंने लेफ्ट-कांग्रेस गठजोड़ का नाम लिए बिना उन पर बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया।
दूसरी ओर, अगर बीजेपी के प्रदर्शन की बात करें तो बीते लोकसभा चुनाव में इन चारों ज़िलों की 49 में से 10 सीटों पर उसे बढ़त मिली थी।
छठे चरण में चार ज़िलों की जिन 43 सीटों के लिए 22 अप्रैल को मतदान होना है वह मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के लिए एक कड़ी परीक्षा है।
इस दौरान जहाँ उनके सामने अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को कायम रखने की चुनौती है तो दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित करने की चुनौती है कि मतुआ वोट बैंक में कहीं बीजेपी बड़े पैमाने पर सेंधमारी नहीं कर दे। इसके साथ ही उनके समक्ष धार्मिक आधार पर खासकर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण रोकने की भी चुनौती है।
छठे चरण में उत्तर दिनाजपुर की नौ सीटों में से ज़्यादातर पर अल्पसंख्यक ही निर्णायक हैं। लेकिन बीजेपी ने भी हाल में उस इलाक़े में बड़े पैमाने पर चुनाव अभियान चलाया है और पार्टी के तमाम नेता इलाक़े में रैलियाँ कर चुके हैं। यह ज़िला भी बांग्लादेश की सीमा से लगा है। दरअसल इस चरण में पूर्व बर्दवान के अलावा बाक़ी तीनों ज़िलों की सीमा बांग्लादेश की सीमा से लगी है। उत्तर 24-परगना की 17 और नदिया ज़िले की नौ सीटों पर अल्पसंख्यकों के अलावा मतुआ समुदाय का भी खासा असर है।
उत्तर 24-परगना के अलावा नदिया ज़िले में भी तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर नज़र आ रही है। इसी तरह पूर्व बर्दवान और उत्तर दिनाजपुर में तृणमूल कांग्रेस मज़बूत नज़र आ रही है। बीजेपी ने सीमावर्ती इलाक़ों में बांग्लादेशी घुसपैठ और पशुओं की तस्करी को ही मुद्दा बनाया है।