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'टाइम' की सदी की 100 महिला शख़्सियतों में शामिल राजकुमारी अमृत कौर कौन थीं?

'टाइम' की सदी की 100 महिला शख़्सियतों में शामिल राजकुमारी अमृत कौर कौन थीं?

पंजाब के कपूरथला राजघराने से ताल्लुक रखने वाली अमृत कौर के नाम इतिहास में बहुत कुछ ऐसा दर्ज है, जो बेमिसाल है।

विश्वप्रसिद्ध पत्रिका 'टाइम' ने बीती सदी की 100 प्रभावशाली महिलाओं की सूची में दो भारतीय महिला शख्सियतों को शुमार किया है। एक हैं इंदिरा गाँधी और दूसरी हैं राजकुमारी अमृत कौर। श्रीमती गाँधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं, जबकि राजकुमारी अमृत कौर देश की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री थीं।

इंदिरा गाँधी के हर पहलू के बारे में समूचा विश्व बखूबी जानता है और राजकुमारी अमृत कौर के बारे में बहुत कम। पंजाब के कपूरथला राजघराने से वाबस्ता अमृत कौर के नाम फिर भी इतिहास में बहुत कुछ ऐसा दर्ज है जो बेमिसाल है।

1947 से पहले बहुत कम राजकुमारियाँ ऐसी हुईं,  जिन्होंने सप्रयास 'महारानी' होना नाक़बूल किया और राजशाही की तमाम ऐशपरस्ती को धता बताकर आज़ादी की लड़ाई में  शिरकत की और 'नेहरूवादी सत्ता' में आकर अपना लोकहितवादी चेहरा अवाम को गहरी प्रतिबद्धता के साथ दिखाया। इससे पहले उन्होंने स्त्री अस्मिता और आत्मसम्मान की पुरज़ोर हिफाज़त की मिसाल कायम की। 

अंग्रेज़ों का विरोध कैसे शुरु हुआ

शिमला के राष्ट्रपति निवास को तब वाइस रीगल लॉज कहा जाता था। भारत पर  राज करने वाले अंग्रेजों ने 1909 में वहाँ एक पार्टी रखी। अंग्रेज हुक़ूमत की साम्राज्यशाही तब पार्टियों में जमकर बजबजाती थी। इसे आप आज की आधुनिकता कह सकते हैं और अपसंस्कृति भी।

अंग्रेज हुक्मरान ने उस पार्टी में राजकुमारी अमृत कौर के पिता राजा सर हरनाम सिंह के परिवार को भी आमंत्रित किया। पार्टी में सर हरनाम सिंह के साथ उनकी बेटी (जो उस वक्त राजकुमारी का खिताब रखती थीं) अमृत कौर भी गईं। 

उनकी उम्र तब 20 साल थी। साम्राज्यशाही पार्टियों की रिवायत के मुताबिक़, शराब के साथ डांस हो रहा था। एक आला अंग्रेज अफसर ने राजकुमारी अमृत कौर को अपने साथ नृत्य करने के लिए आमंत्रित किया।

बार-बार के इसरार के बावजूद 'राजकुमारी' अमृत कौर ने सख्ती से इनकार का रवैया बरकरार रखा और आला अंग्रेज हुकमरान को भरी महफिल में खरी-खोटी सुनाकर पार्टी का बहिष्कार कर दिया।

स्वतंत्रता आन्दोलन में

जाहिरन, अपमानित अंग्रेज आला अफसर का गुस्सा काबू से बाहर हो गया और उसने कहा कि भारतीयों को कभी आज़ादी नहीं देनी चाहिए, वे बिगड़ैल हो चुके हैं।

पार्टी से बाहर जाते जाते यह बात राजकुमारी ने सुन ली और वह बेहद आहत हुईं। इसके बाद उन्होंने राजशाही शान-शौकत को दरकिनार करके स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी का फ़ैसला कर लिया।

इन तथ्यों की पुष्टि इतिहास की गहरी जानकारी रखने वाले दिवंगत पत्रकार-संपादक खुशवंत सिंह ने तो की ही है, चंडीगढ़ में रहने वाले राजकुमारी अमृत कौर के एक वंशज सिद्धांत दास भी करते हैं। सिद्धांत के मुताबिक अमृत कौर उनके परनाना की सगी बहन थीं।

गाँधी ने ली परीक्षा

जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद महात्मा गाँधी अमृतसर दौरे पर आए थे और उसके बाद जालंधर प्रवास किया। वहाँ अमृत कौर ने उनसे मुलाकात की और बाकायदा उनके मिशन से जुड़ने की प्रतिबद्धता जाहिर की।

गाँधीजी बखूबी जानते थे कि अमृत कौर एक राजघराने से ताल्लुक रखती हैं। जालंधर उन दिनों कपूरथला राजघराने के तहत आता था। महात्मा गाँधी ने तय किया कि वह सेवाग्राम आश्रम आ जाएं। वह एक तरह से 'राजकुमारी' अमृत कौर की परीक्षा लेना चाहते थे। 

अमृत कौर सेवाग्राम चली गईं। वहाँ उन्हें हरिजन-सेवा और बाथरूम-टॉयलेट साफ करने का काम दिया गया। मनोयोग से इस काम को उन्होंने बापू और मानवता के आशीर्वाद के तौर पर अच्छी तरह अंजाम दिया।

गाँधीजी ने उन्हें हार्दिक आशीर्वाद से नवाजा और बाकायदा कहा कि वह उनकी 'परीक्षा' में सफल रही हैं और तभी से उन्हें स्वतंत्रता सेनानी मान लिया गया।   

जेल में राजकुमारी!

महात्मा गाँधी से इस मानिंद जुड़ने के बाद राजकुमारी अमृत कौर बाकायदा स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हिस्सेदारी करने लगीं। उन्होंने सरोजनी नायडू के साथ मिलकर ऑल इंडिया वूमेन कांफ्रेंस और ऑल इंडिया वूमेन कांग्रेस की विधिवत स्थापना की।

1942 में अंग्रेज हुक़ूमत ने उन पर देशद्रोह का संगीन मुक़दमा दर्ज किया और बेहद सख़्त पाबंदियों में अंबाला जेल में डाल दिया। अंबाला जेल उन दिनों यातना शिविर के तौर पर भी कुख्यात थी।

अमृत कौर की तबीयत अंबाला जेलबंदी के दौरान काफी बिगड़ गई और हुकूमत ने उन्हें वहां से निकालकर शिमला की मैनोविर्ल हवेली में 3 साल के लिए नज़रबंद कर दिया। 

देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री

अमृत कौर की तबीयत अंबाला जेलबंदी के दौरान काफी बिगड़ गई और हुकूमत ने उन्हें वहां से निकालकर शिमला की मैनोविर्ल हवेली में 3 साल के लिए नज़रबंद कर दिया। 

देश आज़ाद होने के बाद जब भारतीय सरकार का विधिवत गठन हुआ तो अमृत कौर को भारत की पहली केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। उनकी एक बड़ी देन अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान यानी दिल्ली का 'एम्स' है। 

उस समय ऐसे विशाल और तत्कालीन अत्याधुनिक मेडिकल शोध संस्थान के लिए पर्याप्त बजट नहीं था तो उन्होंने देश के बाहर के उद्योगपतियों और भारतवंशी पूंजीपतियों से मदद की गुहार की। धन मिला और एम्स आकार में आया। एम्स में राजकुमारी अमृत कौर के नाम पर ओपीडी ब्लॉक है।

इस परियोजना के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिया था। शिमला में 'राजशाही' की विरासत के तौर पर उनके पास एक घर था, जिसे उन्होंने एम्स के डॉक्टरों और अन्य स्टाफ के लिए रेस्ट हाउस के तौर पर दे दिया था।      

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