शी जिनपिंग के पहुँचने के पहले चीन के ख़िलाफ़ तिब्बतियों का प्रदर्शन
भारत में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों के एक छोटे समूह ने चेन्नई में उस होटल आईटीसी चोला के सामने विरोध प्रदर्शन किया, जहाँ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ठहरेंगे। जिनपिंग थोड़ी देर में यानी दोपहर 2.10 पर चेन्नई हवाई अड्डे पर उतरेंगे। वे शुक्रवार और शनिवार को इस होटल में टिकेंगे।
Five Tibetans protested outside Chennai airport taken in custody hours before Chinese President Xi's arrival @IndianExpress
— Arun Janardhanan (@arunjei) October 11, 2019
चेन्नई पुलिस ने 5 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया है। एक प्रदर्शनकारी ने हाथ में तिब्बत का झंडा ले रखा था और उसने ज़ोरदार नारेबाजी की थी। इन लोगों ने यकायक नारेबाजी शुरू कर दी और झंडा लहराने लगे। होटल समेत पूरे चेन्नई और महाबलीपुरम को क़िले में तब्दील कर दिया गया है। सुरक्षा के ज़बरदस्त इंतजाम हैं और चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात है। इसके बावजूद प्रदर्शन हुए।
चीन तिब्बत को अपना अभिन्न अंग मानता रहा है और तिब्बत पर किसी से किसी तरह की बातचीत से साफ़ इनकार करता है। उसने तिब्बत को स्वायत्त क्षेत्र घोषित कर रखा है, इसे तिब्बत एसएआर यानी तिब्बत स्पेशल ऑटोनोमस रीज़न मानता है। पर तिब्बत के लोगों का कहना है कि वह एक अलग देश है, जिस पर चीन ने कब्जा कर रखा है। तिब्बतियों के जत्थे 1949 से लेकर 1954 तक भाग कर भारत आते रहे। तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा अपने हज़ारों अनुयायियों के साथ 1949 में चीन से भाग कर भारत पहँचे। वे लोग यहीं बस गए, पर अभी भी वे शरणार्थी की हैसियत से ही यहाँ रह रहे हैं और उन्हें नागरिकता नहीं दी जाती है।
भारत सरकार का शुरू से ही मानना रहा है कि तिब्बत चीन का हिस्सा है और दलाई लामा भारत में रहने वाले तिब्बतियों के धर्मगुरु हैं। दलाई लामा ने यह मान लिया है कि तिब्बतियों को अलग देश नहीं चाहिए, वे चीन के अंदर ही रहेंगे, जहाँ उन्हें पूर्ण स्वाायत्तता हो और उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की पूरी रक्षा की जाए। क़रीब 5 साल पहले दलाई लामा के प्रतिनिधियों के साथ चीन सरकार की बातचीत नाकाम रही, बीजिंग ने किसी तरह की कोई रियायत देने से इनकार कर दिया।