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ट्रेन-बसों की घोषणा से भी मज़दूरों की राह आसान नहीं हुई! झाँसी में फँसे हज़ारों लोग

ट्रेन-बसों की घोषणा से भी मज़दूरों की राह आसान नहीं हुई! झाँसी में फँसे हज़ारों लोग

उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सीमा पर झाँसी ज़िले में दो दिनों में हज़ारों की तादाद में बाहर से लौट रहे मज़दूर फँसे हुए हैं। अचानक पहुँचे उन मज़दूरों को झाँसी में रोक लिया गया और आगे नहीं जाने दिया गया।

लॉकडाउन में फँसे मज़दूरों के लिए विशेष ट्रेनें चलाने, राज्यों की ओर से बसें भेजे जाने की कवायद ने भी हालात के मारे लोगों की राह आसान नहीं की है।

उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सीमा पर झाँसी ज़िले में दो दिनों में हज़ारों की तादाद में बाहर से लौट रहे मज़दूर फँसे हुए हैं। अचानक पहुँचे उन मज़दूरों को झाँसी में रोक लिया गया और आगे नहीं जाने दिया गया। बिना इंतज़ाम के रोके गए इन लोगों को 24 घंटे तक खाना-पानी के लिए भटकना पड़ा। जहाँ बड़ी तादाद में मज़दूरों को झाँसी की भोजला मंडी में रखा गया वहीं उनसे भी ज़्यादा लोग अलग-अलग जगहों पर फँसे रहे। शुक्रवार से फँसे इन मज़दूरों में कुछ को रविवार तड़के से रवानगी की जा सकी। हालाँकि सभी की किस्मत इतनी अच्छी नहीं रही और वे अब भी अलग-अलग जगहों पर खुले आसमान के नीचे पड़े हैं। झाँसी में पहुँचे इन मज़दूरों में से कुछ महाराष्ट्र व गुजरात तो कुछ मध्य प्रदेश से आए हैं जिन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज़िलों में अपने-अपने घरों को जाना है। कल ही महाराष्ट्र से लखनऊ जा रहे 18 मज़दूरों को सीमेंट मिक्सर वाले ट्रक से मध्य प्रदेश सीमा पर निकाला गया था।

भोजला मंडी से बसों में भेजा

स्थानीय नेताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं का दबाव बढ़ने पर झाँसी से ज़िला प्रशासन ने भोजला मंडी में रोके गए मज़दूरों को बसों से शनिवार की रात रवाना कर दिया। भोजला मंडी में क़रीब 6000 मज़दूरों को जमा किया गया था। हालाँकि बसों में ले जाए गए मज़दूरों में से कुछ को 50 तो कुछ को 100 किलोमीटर आगे ले जाकर उतार दिया गया। वहाँ से इन मज़दूरों को आगे के लिए पैदल ही भेज दिया गया। एक सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह बताते हैं कि बसों में बैठने वाले लोगों को पहले बताया गया था कि उन्हें गंतव्य स्थान तक ले जाया जाएगा और इन बसों में बैठाए गए मज़दूरों से रास्ते में किराया भी वसूला गया। भोजला मंडी से बसों में भेजे गए सोनभद्र के शिव सिंह से जब इस संवाददाता की बात हुई तो उन्होंने बताया कि रास्ते में ज़्यादा पैसे की माँग करते हुए उन लोगों को उतार दिया गया। आगे का रास्ता पैदल तय करने के बाद वे लोग यह समाचार लिखे जाने तक कानपुर-इलाहाबाद राजमार्ग पर सफर कर रहे थे।

 - Satya Hindi

पेट भरने का खाना नहीं, बिस्किट से काम चलाया

महाराष्ट्र व गुजरात से लौट रहे मज़दूरों के लिए भोजला मंडी में प्रशासन ने जो खाने के पैकेट भेजे वो भी नाकाफ़ी साबित हुए। सीमा पर फँसे मज़दूरों को तो वह भी नसीब नहीं हुआ। इसी झुंड में शामिल सोनभद्र के एक मज़दूर ने बताया कि जब खाने के पैकेट ख़त्म हो गए तो कुछ विस्किट भेजे गए और पानी के टैंकर खड़े करवा दिए गए।

बड़ी तादाद में लोगों को बिस्किट खाकर ही काम चलाना पड़ा। शनिवार देर शाम कुछ सामाजिक संगठनों की ओर से ज़रूर खाने के कुछ पैकेट बाँटे गए। जो मज़दूर पैदल ही अपने घरों के लिए चल दिए हैं उनके पास खाने-पीने को कुछ नहीं है और न ही अब रास्ते में किसी तरह की गुँज़ाइश है।

उरई और रक्सा बॉर्डर पर भी फँसे हैं लोग

बेहाल हज़ारों मज़दूर अभी भी मध्य प्रदेश के शिवपुरी ज़िले से यूपी में प्रवेश के रक्सा बॉर्डर पर एनएच-25 पर फँसे हुए हैं। झाँसी से भेजे गए बड़ी तादाद में मज़दूर उरई तक पहुँच पाए हैं और आगे का रास्ता तय करने की जुगत में हैं। काफ़ी संख्या में मज़दूर रास्ते में मिलने वाले ज़रूरी सामान ढो रहे वाहनों से चिरौरी विनती कर कुछ पैसा देकर भी आगे की ओर जा रहे हैं। आगरा से समाजवादी नेता सीपी राय का कहना है हरियाणा-पंजाब व अन्य राज्यों से लौट रहे सैकड़ों मज़दूरों को पैदल अपने घरों को जाते हुए देखा जा सकता है।

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