ये करेंगे अयोध्या विवाद की मध्यस्थता
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में समाधान के लिए मध्यस्थों को चुन दिया है। कोर्ट ने जस्टिस एफ़. एम. कलीफ़ुल्लाह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है, जिसमें इसमें आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पाँचू भी हैं।
पहले भी कर चुके हैं मध्यस्थता
कमेटी के तीन लोगों में से श्री श्री रविशंकर एक ऐसे व्यक्ति हैं जो पहले भी इस विवाद पर मध्यस्थता करने की कोशिश करते रहे हैं। उन्होंने अक्टूबर 2017 में मध्यस्थता की कोशिश की पहल की थी। पिछली बार स्वघोषित मध्यस्थ बने श्री श्री रविशंकर ने कहा था कि इस विवाद को सुलझाने के लिए एक ऐसे मंच की ज़रूरत हैं जहाँ दोनों समुदाय के लोग भाई चारा दिखा सकें। उन्होंने कहा था कि ऐसी कोशिशें पहले भी हो चुकी हैं, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। वहीं जब उनसे इस विवाद को सुलझाने के लिए फ़ॉर्मूला के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह किसी फ़ॉर्मूले के साथ नहीं, बस एक खुले दिमाग और विचारों के साथ इस मुद्दे पर बातचीत करना चाहते हैं। उन्होंने दोनो पक्षों से मुलाकात भी की थी।
श्री श्री रविशंकर ने निर्मोही अखाड़ा और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों से भी मुलाक़ात की थी। इसके अलावा वह इस मुद्दे को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिले थे। लेकिन अंत में उनका यह प्रयास किसी सफल नतीज़े पर नहीं पहुँच पाया था।
इस बीच आध्यात्मिक गुरू रविशंकर का देश के कई कोनों से विरोध भी हुआ। लोगों ने उन पर राजनीति करने का आरोप भी लगाया। मुसलिम पक्ष भी उनसे सहमत नहीं हुआ था। इसके अलावा पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने श्री श्री की कोशिशों को दिशाहीन और व्यर्थ बताया था।वहीं श्री श्री रविशंकर मंदिर विवाद पर विवादित बयान भी दे चुके हैं। उन्होंने कहा था कि अगर अयोध्या मामले का फैसला जल्द नहीं निकला तो भारत सीरिया बन जाएगा। और मसलिम समुदाय को अपना दावा छोड़ने की भी सलाह दी थी।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2017 में भी मंदिर विवाद को कोर्ट के बाहर ही सुलझाने की सलाह दी थी। कोर्ट ने कहा था कि यह विवाद धर्म और आस्था से जुड़ा है, इसमें दोनों पक्ष आपस में बातचीत करके मुद्दे को सुलझाने की कोशिश करें। और अगर ज़रूरत पड़ी तो कोर्ट मध्यस्थता के लिए तैयार है।
क्या है यह विवाद
1528 में बाबर ने यहाँ एक मसजिद बनवाई, जिसको आज हम बाबरी मसजिद कहते हैं। वहीं दूसरी ओर हिंदुओं का मानना है कि जहाँ पर यह मसजिद बनी है वहाँ पर पहले भगवान राम का मंदिर था। और फिर बाबर ने मंदिर को तोड़कर मसजिद बनवा दी थी। जिसके बाद यह मुद्दा हर दिन गरमाता ही गया।
और इस विवाद ने एक बार फिर तूल तब पकड़ा जब 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने मसजिद को ढहा दिया।
उसके बाद संप्रदायिक दंगे भी हुए। वहीं इसको लेकर 30 दिसंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया। उसने विवादित ज़मीन को तीन भागों में बाँट दिया। राम मंदिर, सुन्नी वक्फ़ बोर्ड, और निर्मोही अखाड़ा को इसमें हिस्सा मिला। लेकिन 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी और उसके बाद से यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में ही लटका हुआ है।
ग़ौरतलब है कि विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने आज इस विवाद को सुलझाने के लिए तीन लोगों के पैनल का गठन किया। जिसमें जस्टिस एफ़ एम कलीफ़ुल्लाह, श्री श्री रविशंकर प्रसाद और सीनियर वकील श्रीराम पाँचू को नियुक्त किया गया है।