अनुच्छेद 370 पर संविधान की भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या न की जाएः सिब्बल
सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर चल रही सुनवाई को 16वें दिन मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अनुच्छेद 370 पर संविधान की भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या नहीं की जाए। हमें बस दोनों तरफ से संविधान को कायम रखना है।
उन्होंने दलीलें देते हुए कहा कि अगर आप संसद को 356 के तहत ऐसी शक्ति देंगे तो कुछ भी हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस पीठ की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे हैं।
कानून से जुड़ी खबरों की वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें देते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 के मूल में द्विपक्षीयता है। संविधान में इसे लेकर कोई चुप्पी नहीं है। इसकी सिफ़ारिश संसद द्वारा नहीं बल्कि मंत्रिपरिषद द्वारा राष्ट्रपति को की जानी थी। मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना विधानसभा का कोई भी विघटन नहीं हो सकता है और इस प्रकार 21 नवंबर को विधानसभा का विघटन शून्य था और आप भारत के अन्य राज्यों से राज्यपाल की शक्तियों की व्याख्या नहीं कर सकते।
वहीं सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम ने अनुच्छेद 370 पर अपनी दलीलें देते हुए कहा कि प्रारंभ में यह एक अस्थायी प्रावधान रहा होगा। लेकिन इस प्रावधान में यह सुझाव देने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि यह अनुच्छेद बने रहने के लिए था। उन्होंने कहा कि यही इस मामले की जड़ है।
यह भारत का संविधान ही था जिसने जम्मू और कश्मीर के लोगों को अपना राजनीतिक भविष्य निर्धारित करने की क्षमता दी थी।
उन्होंने कहा कि मुझे इस तथ्य पर कड़ी आपत्ति है जिसमें कहा जा रहा है कि यहां याचिका दाखिल करना अलगाववादी एजेंडा है। क्या इसका मतलब है कि हम सभी अलगाववादी एजेंडे के लिए बहस कर रहे हैं?
इस पर सीजेआई ने कहा कि मुझे लगता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है। कोई यह नहीं कह सकता कि इस मामले पर याचिका दायर करना अलगाववादी एजेंडा है। उन्होंने कहा कि हमने भारत के अटॉर्नी जनरल को नहीं सुना है, यह कहते हुए कि इन याचिकाओं को खारिज कर दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इसे एक संवैधानिक मुद्दे के रूप में हल किया जाएगा। जब व्यक्ति इस अदालत के सामने आते हैं, तो हम जानते हैं कि वह पीड़ा में है और न्यायाधीश के रूप में हम जानते हैं कि इससे कैसे निपटना है।
मुख्य याचिकाकर्ता पर लगा था गंभीर आरोप
इससे पहले सोमवार को अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट में 15वें दिन हुई सुनवाई के दौरान मुख्य याचिकाकर्ता मोहम्मद अकबर लोन पर पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने का आरोप सामने आया था। कश्मीरी पंडितों की संस्था "रूट्स इन कश्मीर" की ओर से पेश अधिवक्ता ने कोर्ट के समक्ष कहा कि उनकी जानकारी में एक आश्चर्यजनक तथ्य आया है,इसके बारे में उन्होंने एक हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दायर किया है। इसमें उन्होंने मुख्य याचिकाकर्ता और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन पर पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने का आरोप लगाया था।
"रूट्स इन कश्मीर संस्था की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हस्तक्षेप याचिका में कहा गया था कि मुख्य याचिकाकर्ता मोहम्मद अकबर लोन 2002 से 2018 तक जम्मू और कश्मीर विधानसभा के सदस्य थे। इसमें आरोप लगाया गया था कि विधानसभा में ही वह 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगा चुके हैं।
संस्था के अधिवक्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता अकबर लोन ने विधानसभा में चौंकाने वाले तरीके से पाकिस्तान जिंदाबाद कहा था। हम एक अतिरिक्त हलफनामा देना चाहते हैं। कोर्ट के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरि ने सोमवार को कहा था कि मेरा कोर्ट से सिर्फ एक निवेदन है कि किसी ने देश की सर्वोच्च अदालत में राष्ट्रपति के आदेशों को चुनौती दी है और उसने अपने बयान के लिए क्षमा नहीं मांगी है। अगर वह क्षमा मांगते हैं तो ही उनकी दलीलें मानी जानी चाहिए।
कानून बनाने की शक्ति संघ और राज्य दोनों के पास है
इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर 14वें दिन सुनवाई हुई थी। इसमें अखिल भारतीय कश्मीरी समाज की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी ने दलीलें दी थी कि संविधान सभा की अनुशंसा शक्ति का उद्देश्य संविधान सभा के जीवन के साथ सह-समाप्ति करना था जिसे राज्य का संविधान बनने के बाद भंग कर दिया गया था।शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी ने कहा था कि इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन 27 अक्टूबर 1947 का है। जिसमें महाराजा हरि सिंह के बेटे युवराज कर्ण सिंह की घोषणा पर एक नजर डालें। युवराज के पास अनुच्छेद 370 समेत पूरा संविधान था। एक बार 370 हट जाए और जम्मू-कश्मीर का एकीकरण पूरा हो जाए तो संप्रभुता का प्रतीक कानून बनाने वाली शक्ति है। यह कानून बनाने की शक्ति संघ और राज्य दोनों के पास है।
उन्होंने कहा था कि युवराज कर्ण सिंह के पास कोई भी अवशिष्ट संप्रभुता नहीं थी। उन्होंने सवाल उठाया था कि अनुच्छेद 370 को स्थायी बनाने का तर्क क्यों है? क्या कोई अधिकार प्रदान करने के लिए यह तर्क दिया जा रहा ? स्पष्ट रूप से नहीं। तो सवाल उठता है कि फिर किसलिए? उन्होंने आगे सवाल किया कि वह कौन सा अधिकार है, जिसके बारे में याचिकाकर्ता चिंतित हैं? यहां यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि अनुच्छेद 370(3) के तहत राष्ट्रपति की शक्ति का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण एक कार्यकारी निर्णय नहीं था
द हिंदू अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को हुई 14वें दिन की सुनवाई को दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा था कि अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण एक कार्यकारी निर्णय नहीं था और संपूर्ण संसद जिसमें जम्मू-कश्मीर के संसद सदस्य (सांसद) शामिल थे, को विश्वास में लिया गया था। भारत की संविधान सभा के विपरीत, जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को सीमित शक्तियां प्राप्त थीं और वह हमेशा भारतीय संविधान के आदेशों का पालन करती थी। जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की यह कार्यप्रणाली शक्तियों के हस्तांतरण की न्यायिक अवधारणा के समान है। यह भारत की संविधान सभा की तरह एक स्वतंत्र शक्ति नहीं है। हमारी स्वतंत्रता भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 का अनुदान नहीं है। हमने पहले ही एक गणतंत्र बनाने का संकल्प लिया था। हमने सभी राज्यों के शासकों को यह स्पष्ट कर दिया था कि जिस क्षण आप विलय के दस्तवेज पर हस्ताक्षर करते हैं, आप संघ का हिस्सा हैं, आप अभिन्न हैं।केवल संवैधानिक तर्कों के आधार पर किया जाएगा फैसला
इससे पहले गुरुवार को 13वें दिन सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई को दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि जम्मू और कश्मीर की केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति अस्थायी है। जम्मू और कश्मीर ने 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद काफी बदलाव देखा है। आतंकवाद में 45.2 प्रतिशत, घुसपैठ में 90.2 प्रतिशत, पथराव में 97.2 प्रतिशत और 65.9 प्रतिशत की गिरावट आयी है। सुरक्षाकर्मियों के हताहत होने में 65 प्रतिशत की कमी आई है। 2018 में पथराव की घटनाएं 1,767 थीं, जो 5 साल के बादअब शून्य हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट वकील कपिल सिब्बल ने इस दौरान इन आंकड़ों के पेश किए जाने का विरोध किया था। वहीं मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने हालांकि स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 370 को हटाने के निर्णय को दी गई चुनौती पर फैसला केवल संवैधानिक तर्कों के आधार पर किया जाएगा, न कि केंद्र द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के आधार पर।गुरुवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर में किसी भी समय चुनाव कराने के लिए तैयार है लेकिन पंचायत और म्यूनिसिपल चुनाव के बाद। इससे पूर्व केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट वह निश्चित समय अवधि बताने में असमर्थता जता चुकी है जिसके भीतर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जायेगा।