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नोटबंदी पर जानकारी नहीं दी, बाद में प्रणब से मदद मांगी मोदी ने

नोटबंदी पर जानकारी नहीं दी, बाद में प्रणब से मदद मांगी मोदी ने

मुखर्जी ने अपने संस्मरण ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर्स 2012-2017’ में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के फ़ैसले के पहले उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी, लेकिन उसके बाद यह इच्छा जताई थी कि वे उन्हें इसमें मदद करें क्योंकि वे वित्तमंत्री रह चुके थे।

ऐसे समय जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज और उनकी कार्यशैली पर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं, दिवंगत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संस्मरण में भी इसकी एक झलक मिलती है। 

मुखर्जी ने अपने संस्मरण ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर्स 2012-2017’ में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के फ़ैसले के पहले उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी, लेकिन उसके बाद यह इच्छा जताई थी कि वे उन्हें इसमें मदद करें क्योंकि वे वित्तमंत्री रह चुके थे।

एलान के बाद नोटबंदी पर मदद माँगी

मोदी ने उनसे जब नोटबंदी के मुद्दे पर मदद करने को कहा, तो उन्होंने पूछा था कि आपने नकदी संकट से निपटने के उपाय तो कर लिए हैं न, लेकिन मोदी इस पर चुप रहे। 

उन्होंने कहा कि नोटबंदी के जो कारण बताए गए थे, वे पूरे नहीं हुए। 

उन्होंने कहा कि जिस तरह यकायक मोदी ने नोटबंदी का एलान कर दिया था, उससे लोग चौंक गए थे। लेकिन इस तरह के फ़ैसले बग़ैर बताए यकायक किए जाएं तभी नतीजे निकल सकते हैं। 

मोदी से मतभेद

दिवंगत राष्ट्रपति ने अपनी किताब में इसका खुलासा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कई मुद्दों पर उनके मतभेद थे, लेकिन ऊँचे संवैधानिक पदों पर बैठे दोनों ही लोगों ने इसे समझा और अपनी-अपनी सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने साफ कहा कि वे सरकार की संसदीय प्रणाली और इसके सिद्धान्तों में यकीन करते थे।

प्रणव मुखर्जी ने ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर्स 2012-2017’ में लिखा,

“लोगों ने मोदी को देश चलाने के लिए निर्णायक जनादेश दिया। प्रशासन की शक्तियाँ मंत्रिपरिषद में होती हैं, जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होता है। इसलिए मैंने अपने कार्यक्षेत्र की सीमा का उल्लंघन नहीं किया, जब कभी कोई मसला उठा, उसे सुलझा लिया गया।”


‘द प्रेसिडेंशियल ईयर्स 2012-2017’ का अंश

मुखर्जी ने दिसंबर 2015 में बग़ैर किसी योजना के यकायक लाहौर जाकर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ को जन्मदिन की शुभकामनाएं देने के लिए मोदी की आलोचना की और कहा कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी और ऐसा नहीं करना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि विचारधारा के स्तर पर विदेश नीति को लेकर मोदी की पहले से कोई प्रतिबद्धता नहीं थी और इसलिए वे इस तरह के चौंकाने वाले काम करते रहते थे। इसी तरह उन्होंने चीनी राष्ट्रपति के साथ साल में एक बार बैठक करने की नीति बना ली थी, उनसे 2018 में वुहान और 2019 में मामल्लपुरम में मुलाक़ात की थी। 

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मोदी की आलोचना

इसी तरह प्रणब मुखर्जी ने योजना आयोग भंग किए जाने के फ़ैसले पर भी मोदी की आलोचना की। उन्होंने कहा, “मैं इस फ़ैसले से बहुत उत्साहित नहीं था। यह निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी ग़लती थी।”

दिवंगत राष्ट्रपति ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल  राजखोवा के मुद्दे पर अपनी नाराज़गी और मोदी सरकार से मतभेद पर भी उस किताब में लिखा है। राज्यपाल ने राज्य की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया था और केंद्र सरकार के कहने पर भी इस्तीफ़ा नहीं दिया। बाद में राष्ट्रपति ने उन्हें बर्खास्त कर दिया।

प्रणब मुखर्जी ने कहा कि इस मुद्दे पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उनसे मुलाक़ात की और सरकार के रुख से अवगत कराया। सरकार चाहती थी कि राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करें, उन्होंने किया भी, लेकिन देर होने पर उन्होंने राज्यपाल को हटा दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में राज्यपाल को कई मामलों में दोषी पाया गया।

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ऐसे समय जब कई राज्यों में कांग्रेस का जनाधार छीजता जा रहा है और इसके नेतृत्व पर पार्टी के अंदर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं, इसके सबसे बड़े नेताओं में एक और दिवंगत राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी किताब में कई गंभीर बातें कही हैं।

सोनिया की आलोचना

मुखर्जी ने अपने संस्मरण 'द प्रेसिडेंशियल ईयर्स 2012-2017' में लिखा है कि 2014 के आमचुनाव में कांग्रेस की हार इसके कमज़ोर नेतृत्व के कारण हुई थी। उन्होंने लिखा है कि कांग्रेस में असाधारण नेता नहीं बचे थे और सरकार भी औसत स्तर की सरकार बन कर रह गई थी। 

प्रणब ने सोनिया गांधी की आलोचना करते हुए कहा कि शिवराज पाटिल और सुशील कुमार शिंदे जैसे लोगों को छोड़ कर नहीं जाने देना चाहिए था, यदि उनकी जगह वे रहे होते तो इन दोनों नेताओं को फिर वापस ले आए होते। इसी तरह ममता बनर्जी का गठबंधन छोड़ कर जाना अच्छा नहीं हुआ।

उन्होंने लिखा, "मुझे लगता है कि पार्टी यह नहीं समझ पाई कि उसके पास अब करिश्माई नेता नहीं हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे बड़े कद के नेताओं ने यह सुनिश्चित किया था कि पाकिस्तान के विपरीत भारत एक मजबूत और स्थिर राज्य बने। इस तरह के नेता अब नहीं हैं और यह औसत स्तर की सरकार बन कर रह गई है।" 

बता दें कि यह किताब प्रणब बाबू के संस्मरण का चौथा खंड है। इसके पहले की किताबों में भी उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। उन्होंने इसके साथ ही सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की आलोचना भी की थी। 

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इस पर कांग्रेस नेतृत्व ने खुल कर कुछ  नहीं कहा, पर वे नाराज़ हुए थे, ऐसा समझा जा रहा है। इस कारण इस किताब आने के पहले प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजित मुखर्जी ने प्रकाशक से कहा था कि वह प्रस्तावित किताब न छापें।

लेकिन प्रणब बाबू की बेटी शर्मिष्ठा ने कहा था कि यह किताब प्रकाशित होनी चाहिए। उन्होंने तर्क दिया था कि प्रणब बाबू ने स्वस्थ रहते ही किताब लिख कर तैयार कर ली थी और खुद उस पर नोट्स भी लिखे थे। ऐसे में इसमें जो कुछ है, उनका लिखा है और इसलिए इसे छापे जाने में कोई बुराई नहीं है। 

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