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मेटा ने हिंसा भड़काने वाले राजनीतिक विज्ञापनों को मंजूरी दी: द गार्डियन

मेटा ने हिंसा भड़काने वाले राजनीतिक विज्ञापनों को मंजूरी दी: द गार्डियन

भारत में मेटा प्लेटफार्मों पर इस्लामोफोबिक घृणास्पद भाषण, हिंसा वाले संदेशों को रोकने में विफल रहने का आरोप लगता रहा है। जानिए, अब लोकसभा चुनाव में क्या आरोप लगाए गए हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक और इंस्टाग्राम की पैरेंट कंपनी मेटा ने भारत के चुनाव के दौरान एआई से हेरफेर किए गए राजनीतिक विज्ञापनों को मंजूरी दी। ये वे विज्ञापन थे जो गलत सूचना पर आधारित थे और धार्मिक हिंसा भड़काने वाले थे। ब्रिटेन के प्रसिद्ध अख़बार द गार्डियन की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। 

अंग्रेजी अख़बार ने कहा है कि इसको इसकी रिपोर्ट मिली है कि हिंसा भड़काने वाले और ग़लत सूचना पर आधारित ऐसे विज्ञापनों को प्रकाशित करने के लिए मेटा ने मंजूरी दे दी थी। रिपोर्ट के अनुसार फ़ेसबुक ने भारत में मुसलमानों के प्रति प्रचलित अपशब्दों- 'इस कीड़े-मकोड़े को जला दो' और 'हिंदुओं का खून बह रहा है, इन आक्रमणकारियों को जला दो' वाले विज्ञापनों को मंजूरी दे दी थी। इसके साथ ही हिंदू वर्चस्ववादी भाषा और राजनीतिक नेताओं के बारे में दुष्प्रचार को भी मंजूरी दे दी गई।

एक ऐसे विज्ञापन को भी मंजूरी दी गई जिसमें पाकिस्तान के झंडे की तस्वीर के बगल में एक विपक्षी नेता को फाँसी देने का आह्वान किया गया। इसमें झूठा दावा किया गया कि वे 'भारत से हिंदुओं को मिटाना' चाहते थे। हालाँकि इन विज्ञापनों को प्रकाशित किए जाने से पहले ही उन्होंने हटवा लिया जिन्होंने यह रिपोर्ट तैयार करने के लिए ऐसे विज्ञापन दिए थे। 

इन विज्ञापनों को इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल यानी आईसीडब्ल्यूआई और एक कॉर्पोरेट जवाबदेही संगठन ईको द्वारा तैयार किया गया और मेटा की विज्ञापन लाइब्रेरी - फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सभी विज्ञापनों का डेटाबेस में सबमिट किया गया था। ये संगठन मेटा की पड़ताल करना चाहते थे कि वह भारत के चुनाव के दौरान भड़काऊ या हानिकारक भाषणों पर किस तरह का प्रतिबंध लगाने में सक्षम है।

रिपोर्ट के अनुसार, ये सभी विज्ञापन भारत में प्रचलित वास्तविक घृणा भाषण और दुष्प्रचार के आधार पर बनाए गए थे। 

बता दें कि मानवाधिकार समूह, कार्यकर्ता और विरोधी आरोप लगाते रहे हैं कि मोदी सरकार के दौरान भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और उत्पीड़न बढ़ गया है। हालाँकि, सरकार ने लगातार इसका खंडन किया है।

प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं। राजस्थान में एक रैली के दौरान पीएम मोदी ने मुसलमानों को लेकर बयान दिया था। इसके बाद भी वह ऐसा भाषण लगातार दे रहे हैं।

उन्होंने एक चुनावी रैली में कहा था, 'उन्होंने (कांग्रेस ने) कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब, ये संपत्ति इकट्ठी कर किसको बाँटेंगे? जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बाँटेंगे। घुसपैठिए को बाँटेंगे। ...ये कांग्रेस का मैनिफेस्टो कह रहा है... कि माताओं-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे। ...जानकारी लेंगे और फिर संपत्ति को बाँट देंगे। और उनको बाँटेंगे जिनको मनमोहन सिंह जी की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। ये अर्बन नक्सल की सोच, मेरी माताओ, बहनो, ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे।' 

हालांकि बाद में उन्होंने इस बात से इनकार किया कि यह मुसलमानों के लिए था। उन्होंने कहा कि गरीबों के बच्चे भी ज़्यादा होते हैं। उन्होंने कहा था कि इनके कई मुस्लिम दोस्त हैं।

प्रधानमंत्री ने एक अन्य भाषण में कहा था, 'कांग्रेस ने जिस तरह का घोषणापत्र जारी किया है, उससे वही सोच झलकती है, जो आजादी के आंदोलन के समय मुस्लिम लीग में थी। कांग्रेस के घोषणापत्र में पूरी तरह मुस्लिम लीग की छाप है और इसका जो कुछ हिस्सा बचा रह गया, उसमें वामपंथी पूरी तरह हावी हो चुके हैं। कांग्रेस इसमें दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती है।'

 - Satya Hindi

बहरहाल, रिपोर्ट तैयार करने वाले शोधकर्ताओं ने मेटा को अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली, गुजराती और कन्नड़ में 22 विज्ञापन दिए थे। इनमें से 14 को मंजूरी दे दी गई। अन्य तीन को छोटे बदलावों के बाद मंजूरी दे दी गई, जिससे समग्र उत्तेजक संदेश में कोई बदलाव नहीं आया। मेटा द्वारा उनको मंजूरी मिलने के बाद उन्हें प्रकाशन से पहले शोधकर्ताओं द्वारा तुरंत हटा दिया गया।

द गार्डियन की रिपोर्ट में कहा गया है कि मेटा का सिस्टम यह पता लगाने में विफल रहा कि सभी मंजूर विज्ञापनों में एआई द्वारा हेरफेर की गई तस्वीरें थीं। ऐसा तब है जब कंपनी ने कहा था कि एआई से तैयार तस्वीरों को रोका जाएगा। नफरत फैलाने वाले भाषण और हिंसा पर मेटा की कम्युनिटी स्टैंडर्ड पॉलिसी को तोड़ने के लिए पांच विज्ञापनों को खारिज कर दिया गया, जिसमें मोदी के बारे में गलत जानकारी वाला विज्ञापन भी शामिल था। लेकिन जिन 14 को मंजूरी दी गई थी, उन्होंने बड़े पैमाने पर मुसलमानों को निशाना बनाया गया था। 

ईको के प्रचारक मेन हम्माद ने मेटा पर नफरत भरे भाषण के प्रसार से लाभ उठाने का आरोप लगाया। अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार जवाब में मेटा के एक प्रवक्ता ने कहा कि जो लोग चुनाव या राजनीति के बारे में विज्ञापन चलाना चाहते हैं, उन्हें 'हमारे प्लेटफार्मों पर ज़रूरी मंजूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा और वे सभी लागू कानूनों का पालन करने के लिए जिम्मेदार हैं'।

कंपनी ने कहा, 'जब हमें विज्ञापन सहित ऐसी सामग्री मिलती है, जो हमारे सामुदायिक मानकों या सामुदायिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन करती है, तो हम इसे हटा देते हैं, भले ही इसकी निर्माण प्रक्रिया कुछ भी हो। एआई-जनरेटेड सामग्री हमारे स्वतंत्र फैक्टचेकर्स के नेटवर्क द्वारा समीक्षा और मूल्यांकन के भी योग्य है।  एक बार जब किसी सामग्री को 'परिवर्तित' के रूप में लेबल किया जाता है तो हम उसकी रीच को कम कर देते हैं।'

मेटा पर पहले भी भारत में इसके प्लेटफार्मों पर इस्लामोफोबिक घृणास्पद भाषण, हिंसा के आह्वान और मुस्लिम विरोधी साजिश के प्रसार को रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया गया है। कुछ मामलों में पोस्ट के कारण दंगे और लिंचिंग के वास्तविक मामले सामने आए हैं।

मेटा के वैश्विक मामलों के अध्यक्ष निक क्लेग ने हाल ही में भारत के चुनाव को 'हमारे लिए एक बहुत बड़ी, बहुत बड़ी परीक्षा' बताया था और कहा था कि कंपनी ने 'भारत में महीनों और महीनों की तैयारी' की है। मेटा ने कहा है कि उसने सभी प्लेटफार्मों पर स्थानीय और तीसरे पक्ष के फैक्टचेकर्स के अपने नेटवर्क का विस्तार किया है, और 20 भारतीय भाषाओं में काम कर रहा है।

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