एक देश एक चुनाव को लेकर बनी समिति की पहली बैठक हुई
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में शनिवार को 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' को लेकर बनाई गई उच्च स्तरीय समिति की पहली बैठक हुई।
फाइनेंसियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस पहली बैठक में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने पर उनके विचार जानने के लिए राजनीतिक दलों और विधि आयोग को आमंत्रित करने का निर्णय लिया है। इनके साथ जल्द ही बैठक आयोजित की जाएगी।
बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल हुए। जाने-माने वकील हरीश साल्वे इस बैठक में वर्चुअली शामिल हुए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पैनल ने मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय दलों, राज्यों में सरकारों वाले दलों, संसद में अपने प्रतिनिधियों वाले दलों, अन्य मान्यता प्राप्त राज्य दलों को देश में एक साथ चुनाव के मुद्दे पर सुझाव और उनके दृष्टिकोण मांगने के लिए आमंत्रित करने का निर्णय लिया है।
कानून मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि समिति एक साथ चुनाव के मुद्दे पर अपने सुझाव और दृष्टिकोण के लिए विधि आयोग को भी आमंत्रित करेगी।
बयान में कहा गया है कि लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, जिन्होंने पहले समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था, बैठक में मौजूद नहीं थे।
इससे पहले केंद्र सरकार ने 2 सितंबर को घोषणा की कि उसने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए जांच करने और सिफारिशें करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय समिति का गठन किया है था।
6 सितंबर को गृहमंत्री ने की थी मुलाकात
एक देश एक चुनाव को लेकर बनाई गई समिति की पहली बैठक आयोजित होने से पूर्व 6 सितंबर को को नई दिल्ली में समिति के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से गृहमंत्री अमित शाह और कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने मुलाकात की है। इसे तब शिष्टाचार मुलाकात बताया गया था।इस समिति में विशेष सदस्य के तौर पर कानून राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल भी शामिल हैं। इस समिति को एक ही समय में लोकसभा सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव और स्थानीय निकायों के चुनाव को कराने को लेकर विचार-विमर्श कर अपनी रिपोर्ट देनी है।
समिति मौजूदा कानूनी ढ़ांचे को ध्यान में रख कर देश में एक साथ चुनाव की व्यवहार्यता की जांच करेगी। केंद्र सरकार ने 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि सरकार एक देश, एक चुनाव पर विधेयक ला सकती है। देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने को लेकर भाजपा पूर्व में वादे करती आयी है। ऐसे में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले इसको लेकर बड़ा निर्णय लिया जा सकता है
मेघवाल ने कहा था, यह एक चुनाव सुधार है
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कानून और न्याय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल से कांग्रेस नेता अधीर रंजन को लेकर एक सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि यह एक चुनाव सुधार है और इसका राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। उनकी (चौधरी की) कोई राजनीतिक मजबूरी रही होगी कि उन्हें खुद को पैनल से अलग करना पड़ा।उन्होंने कहा था कि 2019 में भी जब पीएम मोदी ने 'एक देश, एक चुनाव' की बात कही थी, तब भी कांग्रेस ने बैठक का बहिष्कार किया था। उन्होंने सवाल उठाया कि जब 1957, 1962 और 1967 में एक साथ चुनाव हुए थे तब केंद्र में सरकार का नेतृत्व कौन कर रहा था? मेघवाल ने कहा कि स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव 1952 से लेकर 1967 तक पूरे देश में एक साथ चुनाव होते रहे हैं।
वहीं गृह मंत्री अमित शाह को लिखे पत्र में अधीर रंजन चौधरी ने कहा था कि वह उस समिति का हिस्सा नहीं हो सकते, जिसके "संदर्भ की शर्तें" "इसके निष्कर्षों की गारंटी देने के लिए तैयार की गई हैं"। उन्होंने एक देश एक चुनाव की संभावना पर विचार करने और इसकी जांच करने को लेकर बनी समिति और इसके काम को एक धोखा बताया था।
सरकार समय से पहले भी चुनाव करवा सकती है?
कई राजनैतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि अगर देश में एक साथ लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जाते हैं तो वर्तमान राजनीति को देखते हुए इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। आगामी चार राज्यों के चुनाव में राज्य के मुद्दें अगर हावी रहते हैं तो भाजपा की उन राज्यों में स्थिति खराब हो सकती है।वहीं अगर राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़े जाए तो पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव केंद्रित हो सकता है और इससे भाजपा के लिए जीत की राह आसान होगी। राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबिक भाजपा नेतृत्व यह सोच रहा है कि आने वाले दिनों में अगर लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होते हैं तो राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर भाजपा की लोकसभा और विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में बड़ी जीत हो सकती है।
दूसरी तरफ विपक्षी नेताओं का मानना है कि अचानक से संसद का विशेष सत्र बुलाना और एक देश एक चुनाव के लिए समिति बनाने का फैसला बताता है कि भाजपा इंडिया गठबंधन से डर गई है। गठबंधन को एकजुट होने या रणनीति बनाने का मौका नहीं मिले इसलिए भाजपा इस तरह की घोषणाएं कर रही है। विपक्षी नेता लगातार बयान भी दे रहे हैं कि सरकार समय से पहले भी चुनाव करवा सकती है।