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डिमेंशिया मरीज़ के बहाने हर घर के बुजुर्गों का दर्द बयां करती है ‘द फ़ादर’

डिमेंशिया मरीज़ के बहाने हर घर के बुजुर्गों का दर्द बयां करती है ‘द फ़ादर’

‘द फ़ादर’ डिमेंशिया के मरीज़ और उनकी बेटी के रिश्ते की कहानी है। इनके किरदार में आपको किसी परिचित बुज़ुर्ग की झलक दिखाई दे यह बहुत मुमकिन है। पढ़िए ‘द फ़ादर’ फ़िल्म की समीक्षा। 

समाज और परिवार के बदलते ढाँचों और प्राथमिकताओं के बीच अकेले पड़ गये बुज़ुर्गों की देखभाल पूरी दुनिया में इस समय बहुत संवेदनशील मसला है। उम्र की दिक़्क़तों में अगर डिमेंशिया जैसा लाइलाज मानसिक रोग भी जुड़ जाए तो कठिनाई और बढ़ जाती है। ऑस्कर से सम्मानित फ़िल्म 'द फ़ादर'  इस विषय को असाधारण मार्मिकता से अभिव्यक्त करती है। इस फ़िल्म के केंद्रीय चरित्र के अभिनय के लिए एंथनी हाॅपकिंस को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर सम्मान मिला है। 83 साल के एंथनी हाॅपकिंस यह सम्मान पाने वाले सबसे बुज़ुर्ग सक्रिय अभिनेता हैं। फ़िल्म में उनके किरदार का नाम भी एंथनी ही है। लाजवाब काम किया है उन्होंने। साइलेंस ऑफ़ द लैंब्स में सिहरन पैदा करने वाली एंथनी हाॅपकिंस की आँखें यहाँ करुणा, असमंजस, उदासी, अकेलापन, झुँझलाहट, क्रोध, अजनबियत के भाव दर्शाती हैं।

‘द फ़ादर’ डिमेंशिया के मरीज़ एंथनी और उनकी बेटी एन के रिश्ते की कहानी है जो विदेशी पृष्ठभूमि की होते हुए भी अपनी सी लगेगी अगर आपके परिवार में बुज़ुर्ग हैं या हाल तक थे या आपकी अपनी उम्र बढ़ रही है। एंथनी के किरदार में आपको किसी परिचित बुज़ुर्ग की झलक दिखाई दे यह बहुत मुमकिन है।

फ़िल्म शुरू होते ही एक महिला स्क्रीन पर तेज़ तेज़ क़दमों से चलती हुई दिखाई देती है। लंदन के एक शानदार बड़े से अपार्टमेंट में रह रहे अपने बुज़ुर्ग पिता एंथनी से मिलने जा रही एन की चाल-ढाल में बेचैनी की वजह जल्द समझ में आ जाती है। एंथनी की देखभाल के लिए रखी गई सेविका एंजेला उनकी बदमिज़ाजी की वजह से काम छोड़ गई है। एंथनी को शक है कि वह चोरी करती थी और उसने उनकी घड़ी चुरा ली है। घड़ी हालाँकि घर में ही मिल जाती है। 

शुरुआती दृश्यों में ही एंथनी हाॅपकिंस और उनकी बेटी का किरदार निभा रही अभिनेत्री ओलिविया कोलमैन की बातचीत कहानी की पेचीदगियों का संकेत दे देती है। बेटी बताती है कि वह पेरिस जा रही है। पिता कहता है मेरा क्या होगा। बेटी एक केयरटेकर को लेकर आती है जिसमें पिता को अपनी छोटी बेटी की झलक दिखती है जिसका देहांत हो चुका है।

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निर्देशक ने एंथनी की दिमाग़ी उलझन, गुम होती याददाश्त, अकेलापन दिखाने के लिए जो तरकीबें इस्तेमाल की हैं, वे बहुत दिलचस्प हैं। पूरी फ़िल्म एक फ़्लैट के भीतर ही चलती है, कुछेक दृश्यों को छोड़कर। कुछ संवाद दोहराये जाते हैं एक ही किरदार के अलग-अलग चेहरों के साथ और फ़्लैट की साजसज्जा बदल जाती है। गुम होती याददाश्त के साथ लोगों को पहचानने की ताक़त भी कमज़ोर पड़ती जाती है। एंथनी की बेटी के दो चेहरे दिखते हैं। उसके पति के भी। हाथ से फिसलते जा रहे समय का प्रतीक है कलाई घड़ी जो खोती-मिलती रहती है।

बेटी पिता से प्यार करती है, उनकी देखभाल को लेकर परेशान है, ख़ामोशी से, अपमान सहते हुए उसे पिता का ग़ुस्सा झेलना पड़ता है। ग़ुस्सैल पिता बेटी पर फ़्लैट पर क़ब्ज़े की नीयत का आरोप लगा देता है। कहता है- मैं तुमसे ज़्यादा जियूँगा। बेटी रोती है। उसके आँसू पोंछने वाला कोई नहीं है। उसका अकेलापन बाँटने वाले भी कोई नहीं। ओलिविया कोलमैन ने बहुत अच्छा काम किया है। फ़िल्म के अंतिम दृश्य में अपनी माँ को याद करके बच्चे की तरह बिलखते हुए एंथनी हाॅपकिंस का अभिनय भावुक कर देता है। 

द फ़ादर अब ओटीटी प्लेटफ़ार्म पर उपलब्ध है। लायंसगेट प्ले पर देखी जा सकती है। अच्छे सिनेमा का शौक़ है तो ज़रूर देखें।

(अमिताभ श्रीवास्तव की फ़ेसबुक वाल से)

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