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एक मामूली लड़की के बंगाल की 'दीदी' बनने की 'अनकही' कथा

एक मामूली लड़की के बंगाल की 'दीदी' बनने की 'अनकही' कथा

ममता बनर्जी की जीवनी उनके संघर्ष की दस्तान तो है ही, पश्चिम बंगाल की राजनीति और उसमें हुई उथल-पुथल के बारे में भी  विस्तार से बताती है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक संघर्ष को बयान करती किताब 'दीदी: द अनटोल्ड स्टोरी' बाज़ार में पहुँच चुकी है। पत्रकार सुतपा पॉल की लिखी इस पुस्तक में बात सिर्फ़ ममता बनर्जी की नहीं कही गई है। इसमें बीते तक़रीबन 40 साल की पश्चिम बंगाल की राजनीति और उसकी उठापटक की भी विस्तार से जानकारी दी गई है। बिल्कुल सामान्य परिवार में जन्मी और मामूली परिवेश में बड़ी हुई ममता बनर्जी का राजनीतिक स्कूल उनका वह कॉलेज था, जहाँ उन्होंने बीए की पढ़ाई की और छात्र संघ से जुड़ीं।   पुरुष वर्चस्व वाली छात्र राजनीति में ममता का रास्ता सुगम नहीं था। पर तमाम विरोधों के बीच उन्होंने अपना रास्ता बनाया और आगे बढ़ती गईं। इसी तरह उनका आगे का रास्ता भी कठिन था। पर उनके लिए साल 1984 सबसे सुखद था। उन्होंने सबको अचरज में डालते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को उनके ही इलाके में शिकस्त दे दी। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। पुस्तक वाम मोर्चा शासन से लोगों के मोहभंग और जनता के उससे दूर होने की बात भी कहती है। कैसे ममता बनर्जी ने अपने लिए बड़ा आधार बनाया, कई तरह के आंदोलनों को खड़ा किया और अजेय समझी जाने वाली वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका। अगले लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की क्या भूमिका हो सकती है, इसे भी इस किताब में टटोला गया है। यह किताब ऐमज़ॉन पर उपलब्ध है। इसका किंडल संस्करण भी मौजूद है। सुतपा पॉल पेशे से पत्रकार हैं। उन्होंने ममता बनर्जी को नज़दीक से देखा है और उन पर ख़बरें की हैं। 

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