थाईलैंड: पीएम, राजा के ख़िलाफ़ लाखों नौजवान सड़क पर उतरे
थाईलैंड में इन दिनों जैसे विशाल जन-प्रदर्शन हो रहे हैं, वैसे उसके इतिहास में पहले शायद कभी नहीं हुए। लाखों नौजवान बैंकॉक के राजमहल को घेरकर प्रधानमंत्री प्रयुत चन ओत्रा को हटाने की मांग तो कर ही रहे हैं, वे थाईलैंड के राजा महावज्र लोंगकार्न के अधिकारों में भी कटौती की मांग कर रहे हैं।
2017 में जो नया संविधान बना था, उसने थाईलैंड की फौज़ को तो सर्वोच्च शक्ति संपन्न बना ही दिया था लेकिन उसमें राजा को भी कई अतिरिक्त शक्तियां और सुविधाएं दे दी गई थीं। 1932 में जो क्रांति हुई थी, उसमें थाईलैंड के राजा की हैसियत ब्रिटेन के राजा की तरह नाम-मात्र की रह गई थी लेकिन 2014 में सेना के तख्ता-पलट के बाद राजा को सभी कानूनों के ऊपर मान लिया गया और राज्य की अकूत संपत्तियों पर उनके व्यक्तिगत अधिकार को मान्यता दे दी गई।
पाकिस्तान जैसा हाल
राजा और फौज़ की सांठ-गांठ थाईलैंड में वैसी ही हो गई, जैसी पाकिस्तान में इमरान खान और फौज़ की है। इसका नतीजा यह हुआ कि थाईलैंड की फौज़ और प्रधानमंत्री प्रयुत निरंकुश हो गए। उन्होंने और उनके परिवार के लोगों ने अपनी अरबों रुपये की संपत्तियां खड़ी कर लीं, सरकार में भ्रष्टाचार फैल गया और अर्थ-व्यवस्था चरमरा गई।
जब विपक्षी दल ‘फ्यूचर फार्वर्ड पार्टी’ ने लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत बनाने की मांग की और राजा के असीमित अधिकारों के विरुद्ध आवाज उठाई तो थाईलैंड के सर्वोच्च न्यायालय ने उस पार्टी को ही भंग कर दिया।
थाई नौजवानों ने इस क़दम के विरुद्ध जन-आंदोलन छेड़ दिया और अब वह इतना फैल गया है कि फौज़ की भी नाक में दम हो गया है। थाईलैंड की फौज़ी सरकार ने कई अखबारों और टीवी चैनलों का गला घोट दिया है और दर्जनों नेताओं को जेल की सीखचों के पीछे डाल दिया है।
राजा मस्त, जनता त्रस्त
थाईलैंड के राजा महावज्र आजकल जर्मनी के एक होटल में अपनी चार पत्नियों और दर्जनों सुरक्षाकर्मियों के साथ डेरा डाले हुए हैं। वे खुद पर लाखों रुपये रोज खर्च कर रहे हैं। अपने कुत्ते को उन्होंने एयर चीफ मार्शल का खिताब दे रखा है। उन्हें थाई जनता से नहीं, उस कुत्ते से बड़ा प्यार है। उसे, अपने साथ टेबल पर बिठाकर वे डिनर खिलाते हैं और उधर थाईलैंड में लोग भूख और बेरोजगारी के मारे बेहाल हो रहे हैं।
कोई आश्चर्य नहीं कि थाईलैंड के नौजवान फौज़ी प्रधानमंत्री प्रयुत के साथ-साथ राजा महावज्र को हटाने की भी मांग शुरू कर दें।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)