झूठे निकले एनआईए के दावे? ज़मानत पर छूटे 4 मुसलिम नौजवान
क्या कोई जाँच एजेंसी बिना किसी सबूत के किसी को भी आतंकवादी संगठन से जुड़े होने के शक में या हमले की साज़िश रचने के आरोप में गिरफ़्तार कर सकती है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाक़ों से आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के एक मॉड्यूल 'हरकत-उल हर्ब-ए-इस्लाम' से जुड़े होने के शक में 14 मुसलिम नौजवानों को गिरफ़्तार करने वाली एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी को अदालत से झटका लगा है। पटियाला कोर्ट स्थित एनआईए की विशेष अदालत ने मंगलवार को इनमें से चार मुसलिम नौजवानों को जमानत पर रिहा कर दिया है। बाक़ी 10 नौजवानों की ज़मानत अर्जी पर गुरुवार को सुनवाई होनी थी लेकिन यह सुनवाई 29 जुलाई तक के लिए टल गई है।
दिल्ली के सीलमपुर और ज़ाफ़राबाद इलाक़े से उठाए गए 5 लोगों का मुक़दमा लड़ने वाले जाने-माने वकील एमएस ख़ान ने ‘सत्य हिन्दी’ को बताया कि एनआईए ने 21 जून को इस मामले में अपनी चार्जशीट दाख़िल की थी। चार्जशीट में मोहम्मद इरशाद, रईस, ज़ुबेर मलिक और मोहम्मद आज़म के ख़िलाफ़ आतंकी गतिविधियों में शामिल होने या किसी भी आतंकी संगठन से तार जुड़े होने का कोई सबूत एनआईए पेश नहीं कर पाई। लिहाज़ा अदालत ने इन्हें जमानत पर छोड़ दिया है। एमएस ख़ान के मुताबिक़, अभी तक अदालत से उन्हें चार्जशीट की सर्टिफ़ाइड कॉपी नहीं मिली है। इस मामले में 29 जुलाई को बाक़ी 10 लोगों की जमानत अर्जी पर अदालत सुनवाई करेगी। उन्होंने उम्मीद जताई है कि बाक़ी नौजवानों को भी अगली तारीख़ पर ज़मानत मिल जाएगी।
जमानत पर छूटकर घर लौटे सभी नौजवान बेहद ख़ुश हैं। लेकिन वे अंदर से इतने डरे हुए हैं कि मीडिया से बात करने से कतरा रहे हैं।
जिंदगी को सामान्य बनाने की कोशिश
सीलमपुर में मेडिकल स्टोर चलाने वाले मोहम्मद आज़म के पिता हाफ़िज़ अहमद ने ‘सत्य हिंदी’ को बताया कि क़रीब 7 महीने जेल में रहने के बाद मोहम्मद आज़म अपनी जिंदगी को सामान्य बनाने में जुटा है। फिलहाल वह अपना मेडिकल स्टोर दोबारा से शुरू करके काम-धंधे में जुटेगा। उन्होंने कहा कि उन्हें पहले से ही यकीन था कि उनका बेटा किसी ग़लत रास्ते पर नहीं है, लिहाजा क़ानून पर उनका भरोसा पहले से था और जमानत मिलने के बाद उन्हें पूरी उम्मीद है कि अदालत से बाइज्ज़त बरी होने की दिशा में यह पहला क़दम है।
ज़मानत पर जेल से बाहर आए बाक़ी नौजवान और उनके परिवार वाले फिलहाल इस बारे में बात नहीं करना चाहते। फ़ोन पर संपर्क करने पर उन्होंने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया और फिलहाल मिलने से भी मना कर दिया।
न्यू ज़ाफ़राबाद में अपना शोरूम चलाने वाले ज़फ़र के चाचा अब्दुल मन्नान ने बताया कि उनको अगली तारीख़ पर अपने भतीजे को जमानत मिलने की पूरी उम्मीद है। चार नौजवानों को जमानत मिलने से जहाँ सीलमपुर और ज़ाफ़राबाद में ख़ुशी का माहौल है, वहीं पाँचवें आरोपी जफ़र के भी ज़मानत पर जेल से बाहर आने का इंतजार है। बता दें कि एनआईए ने पिछले साल 26 दिसंबर की रात को दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अमरोहा और हापुड़ से एक आतंकवादी मॉड्यूल 'हरकत-उल हर्ब-ए-इस्लाम' में शामिल होने के शक में 10 मुसलिम नौजवानों को गिरफ़्तार किया था। इस सिलसिले में बाद में चार और लोगों को गिरफ़्तार किया गया। एनआईए ने पकड़े गए 14 में से 10 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल की थी।
एनआईए की 5000 पेज की चार्जशीट में कहा गया है कि अमरोहा के एक मदरसे में पढ़ाने वाले दिल्ली निवासी मुफ़्ती मोहम्मद सोहेल ने मोहम्मद फैज़ के साथ एक आतंकी मॉड्यूल बनाया है और इसे ‘हरकत-उल हर्ब-ए-इस्लाम’ का नाम दिया है। एनआईए के मुताबिक़, यह संगठन अपने स्तर पर धन जुटाता है और इसकी योजना दिल्ली के भीड़-भाड़ वाले इलाक़ों में फिदायीन हमले करने की थी।
एनआईए ने छापेमारी के दौरान 25 किलोग्राम विस्फोटक सामग्री, एक देसी रॉकेट लॉन्चर, 12 पिस्तौल, 112 अलार्म घड़ियाँ और बड़े पैमाने पर मोबाइल फ़ोन की बरामदगी दिखाई थी। उस वक़्त एनआईए के इस ख़ुलासे से देश भर में सनसनी फैल गई थी।
इसके बाद भी एनआईए ने देश के कई हिस्सों में आईएस के आतंकी मॉड्यूल में शामिल होने के शक के आधार पर मुसलिम नौजवानों को गिरफ़्तार किया था। लेकिन इनमें से ज़्यादातर मामलों में एनआईए अदालत में अपने दावों को साबित नहीं कर पाई और गिरफ़्तार किए गए नौजवानों को अदालत से ज़मानत मिल गई।एनआईए की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड की गई जानकारी के मुताबिक़, पिछले साल 19 दिसंबर को उसे गृह मंत्रालय से दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा देश के कई और हिस्सों में आईएस आतंकियों के मौजूद होने की ख़ुफ़िया जानकारी मिली थी।
20 दिसंबर को एनआईए ने भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी, 121, 121 ए और 122, ग़ैर क़ानूनी गतिविधि निरोधक क़ानून की धारा 17, 18, 22, 38 और 39 के अलावा विस्फोटक सामग्री क़ानून की धारा 4 और 5 के तहत मामला दर्ज करके जाँच शुरू की थी और 26 दिसंबर की रात को दिल्ली, अमरोहा और हापुड़ में छापेमारी करके के लोगों की गिरफ़्तारी की गई।एनआईए के मुताबिक़, उसे पुख़्ता जानकारी दी गई थी कि दिल्ली में मुफ़्ती मोहम्मद सोहेल ने आईएस आतंकी संगठन से प्रेरित होकर एक आतंकवादी संगठन बनाया है जो कि भारत सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने की तैयारियों में जुटा हुआ है। इस संगठन से जुड़े लोग अपने स्तर पर पैसा जुटाते हैं। इन्होंने बड़ी मात्रा में हथियार, आईडी बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में विस्फोटक सामग्री, रॉकेट और फिदायीन हमले की तरह हमले करने के लिए विशेष जैकेट जमा की हुई हैं। संगठन से जुड़े लोगों ने दिल्ली और इसके आसपास महत्वपूर्ण जगहों पर फिदायीन हमले के लिए पूरी तैयारी कर रखी है।
बता दें कि ‘सत्य हिन्दी’ ने छापेमारी के अगले ही दिन सीलमपुर और ज़ाफ़राबाद इलाक़े से गिरफ्तार किए गए 5 नौजवानों के घर जाकर पड़ताल की थी। इन सभी के घर वालों ने बताया था कि पुलिस ने देर रात उनके घर की कई घंटे तक तलाशी ली। लेकिन उन्हें कुछ भी आपत्तिजनक सामान नहीं मिला। सभी को एनआईए के अधिकारी यह बता कर गए थे कि उनके यहाँ से कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है। एनआईए के अधिकारियों ने सभी के घरवालों से कोरे कागज पर दस्तखत भी कराए थे और कहा था कि उनके बच्चों को सिर्फ़ पूछताछ के लिए ले जाया जा रहा है जबकि बाद में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था और बड़े पैमाने पर हथियारों और विस्फोटकों की बरामदगी दिखाई थी। एनआईए की इस कार्रवाई पर तब भी गंभीर सवाल उठे थे क्योंकि उसके दावे और जमीनी सच्चाई में काफी फ़र्क़ था।
अब जबकि 4 नौजवान ज़मानत पर छूट गए हैं। ऐसे में वे तमाम सवाल सही साबित हुए हैं जो एनआईए की इस कार्रवाई के बाद उठे थे। इससे मुसलिम समाज में यह संदेश जा रहा है कि एनआईए मुसलिम नौजवानों को बदनाम करने के लिए आतंकवाद से तार जुड़े होने के नाम पर गिरफ़्तार तो कर लेती है लेकिन बाद में ज़्यादातर नौजवान आरोपों से बरी हो जाते हैं।
पिछले 10 साल में ऐसे हज़ारों नौजवान हैं जिन्हें पुलिस, एटीएस या एनआईए ने आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आधार पर गिरफ़्तार किया और बाद में वे बरी हो गए।
जमानत पर छूटे आज़म दुखी मन से कहते हैं, 'छह महीने से ज़्यादा का वक़्त जेल में बीता है। मेरी निजी, कारोबारी और सामाजिक जिंदगी 6 महीने पीछे चली गई है। अब मैं सामान्य होने की कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन जिंदगी को पटरी पर लाने में काफ़ी वक़्त लगेगा।'
आज़म ने तो 6 महीने का वक़्त जेल में बिताया है लेकिन उन लोगों पर क्या गुज़रती होगी जो कई साल जेल में गुजारने के बाद अदालत से बाइज़्ज़त बरी होते हैं। इसके बावजूद समाज उन्हें शक की निगाह से देखता है। जब भी जाँच एजेंसी नौजवानों को गिरफ़्तार करती है तब टीवी चैनलों और अख़बारों में यह ख़बर सनसनीख़ेज़ तरीके से दिखाई और छापी जाती है। लेकिन जब अदालत उन्हें छोड़ती है तो यह ख़बर टीवी चैनलों और अख़बारों में दिखाई नहीं देती। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एनआईए आतंकवाद के नाम पर मुसलिम नौजवानों को बदनाम करने का एक हथियार बनकर रह गई है।