दो महीने बाद जेल से रिहा हुईं तीस्ता सीतलवाड़
एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ शनिवार को जेल से रिहा हो गईं। उनको कथित तौर पर गुजरात दंगों से संबंधित सबूत गढ़ने के आरोप में 25 जून को गिरफ्तार किया गया था और वह 26 जून से जेल में बंद थीं। 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक दिन पहले ही शुक्रवार को अंतरिम जमानत दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने शुक्रवार को सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर फ़ैसला दिया था। जमानत को लेकर अदालत ने गुरुवार को ही संकेत दे दिया था कि गुजरात पुलिस की बातों में इस गिरफ्तारी को लेकर बहुत दम नहीं है, इसलिए क्यों न तीस्ता को जमानत दे दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, सीतलवाड़ को जमानत की औपचारिकताओं के लिए सत्र न्यायाधीश वी ए राणा के समक्ष पेश किया गया था। पीटीआई ने सरकारी वकील अमित पटेल के हवाले से कहा है, 'सत्र अदालत ने शीर्ष अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों के अलावा दो शर्तें लगाईं। सत्र अदालत ने आरोपी को 25,000 रुपये का निजी मुचलका भरने और उसकी पूर्व अनुमति के बिना भारत नहीं छोड़ने को कहा।'
बता दें कि तीस्ता पर आरोप है कि 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में मामले दर्ज करने के लिए दस्तावेजों में साजिश की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में रिटायर्ड जस्टिस ए एम खानविलकर की कोर्ट ने जकिया जाफरी से जुड़ी याचिका को खारिज करते हुए अपने फैसले में लिखा था कि ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करना चाहिए। इसके अगले ही दिन गुजरात पुलिस ने तीस्ता को गिरफ्तार कर लिया। हाईकोर्ट ने तीस्ता की जमानत याचिका नामंजूर कर दी। उसी को तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। चीफ जस्टिस यू.यू. ललित की बेंच में जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया भी थे।
सीतलवाड़ की गिरफ्तारी की स्थिति तब बनी जब सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 24 जून को दंगा पीड़ित जकिया जाफरी द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया था।
इसमें विशेष जांच दल यानी एसआईटी द्वारा दंगों से संबंधित मामलों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित गुजरात की तत्कालीन सरकार के अधिकारियों को दी गई क्लीन चिट को चुनौती दी गई थी।
याचिका खारिज किए जाने के अगले दिन अहमदाबाद डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच ने सेवानिवृत्त डीजीपी आरबी श्रीकुमार, जिनकी भूमिका पर अदालत ने सवाल उठाया था, और तीस्ता सीतलवाड़, जिन्होंने जकिया जाफरी का समर्थन किया था, को गिरफ़्तार किया था।
श्रीकुमार और सीतलवाड़ पर एक पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज प्राथमिकी के आधार पर आपराधिक साजिश, जालसाजी और आईपीसी की अन्य धाराओं का आरोप लगाया गया था।
सीतलवाड़ को 30 जुलाई को अहमदाबाद के एक न्यायाधीश ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। गुजरात उच्च न्यायालय ने उनकी अपील को 19 सितंबर को सुनवाई के लिए तय किया। लेकिन सीतलवाड़ ने अहमदाबाद अदालत के आदेश और हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले को एक सामान्य अपराध माना, जिसमें आरोपी को आसानी से जमानत मिल सकती है। तीस्ता के वकील कपिल सिब्बल की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट ने तरजीह दी कि इस केस में गुजरात सरकार और गुजरात पुलिस के पास सिवाय जस्टिस खानविलकर के फैसले की टिप्पणी के अलावा कोई सबूत नहीं है। चीफ जस्टिस की बेंच ने गुरुवार को कहा भी था कि इस मामले में कोई अपराध नहीं है जो इस शर्त के साथ आता हो कि यूएपीए, पोटा की तरह जमानत नहीं दी जा सकती है। ये सामान्य आईपीसी अपराध हैं।