सुप्रीम कोर्ट में तीस्ता मामले की सुनवाई अब 1 को
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तीस्ता सीतलवाड़ की उस याचिका पर सुनवाई 1 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया, जिसमें उनकी जमानत की मांग की गई थी। हालांकि मामले की सुनवाई मंगलवार 30 अगस्त को न होने पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने ऐतराज किया।
तीस्ता पर गुजरात दंगों की कथित साजिश के मामले में राज्य के उच्च लोगों को फंसाने का आरोप है। चीफ जस्टिस यू.यू. ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने गुरुवार, 1 सितंबर को दोपहर 3 बजे मामले की सुनवाई तय की है। जब आज मंगलवार 30 अगस्त दोपहर 3.45 बजे मामले की सुनवाई शुरू हुई तो सॉलिसिटर जनरल ने सुझाव दिया कि इसे परसों के लिए पोस्ट कर दिया जाए।
सीजेआई ने एसजी से कहा कि मिस्टर एसजी, हम पहले ही दिन इसके लिए पीठ का गठन कर चुके थे। हम हम संविधान पीठ बैठे थे, इसलिए 10.30 पर नहीं आ सके। सीजेआई ने मामले को स्थगित करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को संविधान पीठ के 8 मामले सूचीबद्ध किए गए थे।
तीस्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने केस को 1 सितंबर तक टालने पर आपत्ति जताई। बेंच ने कहा कि समय की कमी के कारण, मामले को 30 अगस्त को नहीं लिया जा सका। इस मामले को गुरुवार को दोपहर 3 बजे के लिए सूचीबद्ध करें।
तीस्ता ने अंतरिम जमानत देने से गुजरात हाई कोर्ट के इनकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्हें 26 जून को गुजरात एटीएस द्वारा मुंबई से गिरफ्तार किया गया था।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने से पहले जस्टिस खानविलकर की बेंच ने जकिया जाफरी द्वारा 2002 के गुजरात दंगों के संदर्भ में दायर याचिका को खारिज कर दिया। जिसमें राज्य के उच्च पदस्थ अधिकारियों और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कथित बड़ी साजिश में एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती दी गई थी।
जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करते हुए, जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच ने एसआईटी की अखंडता पर सवाल उठाने के लिए "दुस्साहस" दिखाने के लिए जकिया, तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार को दोषी ठहराया था और कहा था कि इस तरह का दुरुपयोग करने वालों पर कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए। गुजरात को जैसे इसी फैसले का इंतजार था। अगले ही दिन, गुजरात एटीएस ने तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट (जो पहले से ही एक अन्य मामले में कारावास की सजा काट रहे हैं) को 2002 के दंगों के संबंध में जाली दस्तावेजों का उपयोग करके झूठी कार्यवाही दर्ज करने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार किया।
न्यायपालिका के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सवाल उठ गए। जस्टिस खानविलकर की बेंच की इस फैसले की लोगों ने जमकर आलोचना की। लोगों ने कहा कि जिन लोगों ने सत्ता से टकराते हुए गुजरात 2002 दंगों का मामला उठाया, अदालत ने उन्हें ही जेल भिजवा दिया।