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वक्फ विधेयक: टीडीपी के मुस्लिम विधायकों का मोदी सरकार पर दबाव है?

वक्फ विधेयक: टीडीपी के मुस्लिम विधायकों का मोदी सरकार पर दबाव है?

मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने वक्फ विधेयक संसद में पेश किया, लेकिन उसको पीछे हटना पड़ गया। आख़िर ऐसा क्यों? क्या टीडीपी जैसे दलों से दबाव है? जानिए टीडीपी के मुस्लिम विधायक क्या कहते हैं।

एन चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी के मुस्लिम विधायक क्या मोदी सरकार के वक्फ विधेयक के पक्ष में हैं? क्या विधेयक में जो प्रावधान किए गए हैं उनका समर्थन वे करते हैं? यदि ऐसा है तो फिर मोदी सरकार ने वक्फ विधेयक को जेपीसी के पास क्यों भेजा?

इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर वक्फ़ विधेयक को लेकर क्या-क्या घटनाक्रम हुआ है। संसद के हाल ही में संपन्न बजट सत्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया। इस पर विपक्षी इंडिया गठबंधन ने विरोध जताया है। इनके साथ ही टीडीपी के मुस्लिम विधायक भी विधेयक के कई प्रावधानों को लेकर गंभीर आपत्ति जता रहे हैं। टीडीपी भी पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का हिस्सा है। 

टीडीपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के महासचिव फतुल्लाह मोहम्मद ने विधेयक के कुछ हिस्सों को 'चिंताजनक' बताया है और अपनी पार्टी से संसद में इसका समर्थन करने से पहले मुस्लिम नेताओं से सलाह लेने का आग्रह किया है। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में फतुल्लाह मोहम्मद ने चिंताओं को साझा किया है। 

इस सवाल पर कि वक्फ विधेयक के बारे में आपकी क्या चिंताएँ हैं, फतुल्लाह मोहम्मद ने कहा, 'इस विधेयक में कम से कम 40 धाराएँ ऐसी हैं जो मुसलमानों और वक्फ बोर्डों के कामकाज के लिए हानिकारक हैं। टीडीपी विधेयक का स्वागत करती है लेकिन मसौदा विधेयक में किए गए बदलाव चिंता का विषय हैं।'

उन्होंने कहा, 'संशोधनों का उद्देश्य कानून को मजबूत करना होता है लेकिन इसके बजाय मसौदे में हम पाते हैं कि सब कुछ कमजोर किया जा रहा है। पाँच या छह प्रमुख बिंदु हैं जिन पर ध्यान देने की ज़रूरत है।'

अंग्रेज़ी अख़बार से उन्होंने कहा, 'सेंट्रल वक्फ काउंसिल में दो मुस्लिम सांसदों को सदस्य बनाने का प्रावधान है। इस नियम को खत्म कर दिया गया है और दो महिलाओं को सदस्य बनाने का प्रावधान किया गया है। हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यह तथ्य हटा दिया गया है कि वे मुस्लिम होनी चाहिए। वक्फ बोर्ड का काम मस्जिदों और दरगाहों जैसे धार्मिक स्थलों पर जाना है और केवल आस्था के बारे में जानकारी रखने वाले मुस्लिम ही कुछ कर्तव्यों को पूरा कर सकते हैं।'

उन्होंने कहा, "वक्फ न्यायाधिकरण को कमजोर करना, जिसे सरकार नियुक्त करती है और जिसका प्रमुख एक मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है, विवाद का एक और मुद्दा है। न्यायाधिकरण यह सुनिश्चित करता है कि वक्फ संपत्तियों को अतिक्रमण से बचाया जाए। अब, विधेयक जिला कलेक्टरों को अधिकार देता है। उनसे राज्य सरकार के आदेशों का पालन करने की संभावना रहती है। इससे वक्फ भूमि पर 'कलेक्टर राज' शुरू हो जाएगा।"

उन्होंने कहा कि इसके साथ ही राज्य वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रस्ताव वक्फ के उद्देश्य को ख़त्म करता है, हमें डर है कि इन संशोधनों से वक्फ संपत्तियों पर और अधिक अतिक्रमण होगा।

चंद्रबाबू नायडू की क्या राय है?

इस सवाल पर टीडीपी विधायक फतुल्लाह मोहम्मद ने कहा, 'हम टीडीपी में विधेयक में संशोधन का स्वागत करते हैं। हम इसके खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हमें लगता है कि बदलावों के माध्यम से वक्फ बोर्ड को मजबूत किया जाना चाहिए, न कि इसके विपरीत। ...मैंने इस मुद्दे को अपने सांसदों और पार्टी नेतृत्व के समक्ष उठाया और जमात-ए-इस्लामी हिंद के सचिव एम अब्दुर रफीक, सहायक सचिव इनामुर रहमान और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हसीबुर रहमान के साथ मिलकर अपनी चिंताओं पर चर्चा की। हमारे सांसदों ने सीएम से संपर्क किया जिन्होंने उन्हें विधेयक को संयुक्त समिति को भेजने की सलाह दी।'

हालाँकि टीडीपी एनडीए में भागीदार है, लेकिन हमें लगता है कि चर्चा और बहस की गुंजाइश है, जिसका नतीजा सभी को स्वीकार्य होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि यह अच्छा है कि नायडू हमारी चिंताओं को समझते हैं और उन्होंने विधेयक को संयुक्त समिति को भेजने की सलाह दी। 

बता दें कि आंध्र प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की संख्या लगभग 12-13% है, इसलिए टीडीपी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि प्रस्तावित विधेयक के 'विवादास्पद' खंडों का समर्थन करके वह समुदाय को नाराज़ न करे। राज्य के रायलसीमा क्षेत्र में केंद्रित यह समुदाय टीडीपी का एक महत्वपूर्ण वोट बैंक माना जाता है और हाल ही में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भारी जीत सुनिश्चित करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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