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‘लूपलपेटा’ का फलसफा- कभी हार न मानें

‘लूपलपेटा’ का फलसफा- कभी हार न मानें

तापसी पन्नू और ताहिर राज भसीन की लूपलपेटा फिल्म आई है। जानिए फ़िल्म समीक्षा में, कैसी है फिल्म और कैसा अभिनय किया है किरदारों ने।

जर्मन फ़िल्म रन लोला रन पर आधारित तापसी पन्नू और ताहिर राज भसीन की लूपलपेटा मस्त फिल्म है। यह एक कॉमिक थ्रिलर लव स्टोरी है जिसमें निर्देशक आकाश भाटिया ने सावित्री सत्यवान के पौराणिक प्रतीक नये ज़माने के नायक नायिका के भेस में पेश किये हैं। यह इत्तिफ़ाक़ नहीं है कि नेटफ्लिक्स पर आज से दिखाई जा रही इस फिल्म के नायक नायिका को बोलचाल में सावी और सत्या का नाम दिया गया है।

फिल्म फ़लसफ़ा देती है- कभी हार न मानें। कोशिश करते रहें। ज़िंदगी में गोल गोल घूमते रहने और फँसे रहने के बजाय सीधा और सही चलना बेहतर है। जहाँ हम हार मान लेते हैं, कई बार जिंदगी वहीं पर एक मौका और दे देती है, शायद आखिरी मौका। अगर वो चांस नहीं लिया तो बाद में अफ़सोस हो सकता है। इंसान के बस में सिर्फ प्रयास करना है। 

जूलिया, रॉबर्ट और जैकब की साइडस्टोरी के बहाने फिल्म का एक संदेश यह भी है कि अगर प्यार है तो उसके लिए लड़ना भी चाहिए, बिना अड़े और लड़े मोहब्बत नहीं मिलती।

2022 की शुरुआत में मैंने ताहिर राज भसीन के बारे में लिखा था कि यह साल उनके लिए ख़ास होने वाला है। रंजिश ही सही और ये काली काली आँखें के पेचीदा किरदारों के बाद लूपलपेटा में ताहिर कॉमेडी कर रहे हैं। उनका अभिनय अच्छा है लेकिन फिल्म को लगातार उठाए रखा है तापसी पन्नू ने। बहुत शानदार काम किया है। 

सावी के किरदार की कई परतें हैं और तापसी ने बख़ूबी हर पेचीदगी को अभिव्यक्त किया है। वैसे भी देखा जाए तो सावित्री सत्यवान की कहानी में ज़्यादा अहम किरदार सावित्री का है जो यमराज के शिकंजे से अपने पति को छुड़ा कर लाती है। 

 - Satya Hindi

लूपलपेटा में यमराज कौन है? 

दिव्येंदु भट्टाचार्य की लाल रंग की कार को ध्यान से देखेंगे तो बोनट  पर सींग दिख जाएगा। विक्टर की भूमिका में दिव्येंदु अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं।

जूलिया के किरदार में श्रिया धन्वन्तरि ने बढ़िया काम किया है। हाल ही में अमेज़न प्राइम पर दिखाई गई अनपॉज्ड नया सफ़र की एक कहानी में भी उनका अभिनय अच्छा था। 

फिल्म चुस्त है, संवाद चुटीले हैं और गीत-संगीत मज़ेदार है। बेहतरीन एडिटिंग कहानी की दिलचस्प पैकेजिंग का सबसे प्रभावशाली पक्ष है। मुमकिन है कि बहुत से लोगों को फिल्म कई जगह ऊटपटाँग भी लगे। लीनियर ट्रीटमेंट के लॉजिक को किनारे रख कर देखेंगे तो मज़ा आएगा।

(अमिताभ की फ़ेसबुक वाल से)

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