तेलंगाना के बाद एक और दक्षिणी राज्य तमिलनाडु ने विशेष आर्थिक पैकेज का विरोध किया है और केंद्र सरकार की ज़ोरदार आलोचना की है। यह अहम इसलिए भी है कि तेंलगाना के सत्तारूढ़ दल टीआरएस और तमिलनाडु के सत्तारूढ़ दल एआईएडीएमके दोनों ही केंद्र की भारतीय जनता पार्टी के नज़दीक हैं और उनका उनसे मित्रवत रिश्ता है।
क्या कहना है तमिलनाडु का
तमिलनाडु सरकार ने कहा है कि केंद्र सरकार राज्यों से सलाह-मशविरा किए बग़ैर ही बड़े आर्थिक सुधार ज़बरन कर रही है।मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी ने केंद्र को लिखी एक कड़ी चिट्ठी में उस पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने लिखा है,
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‘कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन से तबाह अर्थव्यवस्था में पैसे की कमी होने के कारण ही राज्यों ने 3 प्रतिशत से अधिक क़र्ज़ की ज़रूरत बताई। ये राज्य सरकार के लिए गए क़र्ज़ हैं और उसे ही चुकाने हैं। यह केंद्र से दिया गया अनुदान नहीं है।’
ई. पलानीस्वामी, मुख्यमंत्री, तमिलनाडु
केंद्र का विरोध क्यों
तमिलनाडु सरकार ने अतिरिक्त क़र्ज़ हासिल करने के लिए शर्तें लगाए जाने का विरोध किया है। राज्य सरकार ने इसका विरोध किया है कि अतिरिक्त क़र्ज़ पाने के लिए किसानों को मुफ़्त बिजली देना बंद करना होगा। केंद्र ने कहा है कि यदि राज्य सरकार किसानों की मदद करना ही चाहती है तो सीधे उनके खाते में पैसे डाल दे।पलानीस्वामी ने चिट्ठी में ज़ोर देकर कहा कि ‘आर्थिक सुधार पर अभी कोई सहमति नहीं बनी है, यह मामला अभी विचाराधीन ही है, इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अभी किसी तरह की शर्त न थोपी जाए।’
पलानीस्वामी ने ख़त में साफ़ कहा, ‘हमारी सरकार किसानों को मिलने वाली मुफ़्त बिजली को ख़त्म करने के विचार के सख़्त ख़िलाफ़ है। हमारा यह मानना शुरू से रहा है कि किसानों को बिजली देना पूरी तरह राज्य का अंदरूनी मामला है और यह राज्यों पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए।’
दिलचस्प यह है तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी और मुख्य विपक्ष डीएमके, दोनों ही इस मुद्दे पर एकमत हैं, दोनों केंद्र का विरोध कर रही हैं।
बता दें कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विशेष आर्थिक पैकेज का एलान करते हुए कहा था कि फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंज बजट मैनेजमेंट एक्ट के तहत मिलने वाला क़र्ज बढ़ा कर 3 से 5 प्रतिशत कर दिया गया है। पर इसके लिए कुछ शर्तें होंगी। अब कई राज्य सरकारें इन शर्तों का विरोध कर रही हैं।